Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 456
________________ १८:जैन पुराणकोश सावित्री-सिंहनाद सावित्री-कुशध्वज ब्राह्मण की स्त्री। यह प्रभासकुन्द की जननी थी। पपु० १०६.१५८-१५९ दे० कुशध्वज सासादन-दूसरा गुणस्थान-सम्यक्त्व-मिथ्यात्व की ओर अभिमुख होने की जीव की प्रवृत्ति । हपु० ३.६० साहसगति-राजा चक्रांक और रानी अनुमति का पुत्र । यह ज्योतिपुर नगर के राजा अग्निशिख की पुत्री सुतारा पर आसक्त था। सुतारा का सुग्रीव से विवाह हो जाने पर भी इसकी आसक्ति कम नहीं हुई थी। इसने सुतारा को पाने के लिए रूप बदलने वाली सेमुखी विद्या सिद्ध की थी। उषसे इसने अपना सुग्रीव का रूप बनाकर सच्चे सुग्रीव के साथ युद्ध किया तथा गदा से उसे आहत किया था । अन्त में राम ने इसे युद्ध करने के लिए ललकारा। राम को आया देख ताली विद्या इसके बारीर से निकल गई। यह स्वाभाविक रूप में प्रकट हुआ और राम के द्वारा मारा गया था । पपु० १०.२-१८, ४७. १०७, ११६-११९, १२६ सिंह-(१) विजयाई पर्वत की उत्तरश्रेणी में विद्यमान उन्नीसा नगर। हपु० २२.८७ (२) एक वानर कुमार । यह विद्यासाधना में रत रावण को कुपित करने की भावना से लंका गया था । पपु० ७०.१५, १७ (३) तीर्थंकर के गर्भ में आने के समय उनकी माता के द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में तीसरा स्वप्न । पपु० २१.१२-१४ (४) रावण का पक्षधर एक योद्धा । इसने गजरथ पर बैठकर राम की सेना से युद्ध किया था । पपु० ५७.५७ (५) मेघदल नगर का राजा। इसकी रानी कनकमेखला और पुत्री कनकावती थी । पाण्डव भीम ने इसकी पुत्री को विवाहा था। हपु० ४६.१४-१६ (६) राजा बसुदेय तथा रानी नीलयशा का ज्येष्ठ पुत्र । मतंगज इसका छोटा भाई था। हपु० ४८.५७ (७) भीमकूट पर्वत के पास रहनेवाला भीलों का राजा। यह भयंकर पल्ली (भीलों का निवास स्थान) का स्वामी था। कालकभील ने चन्दना इसे ही सौंपी थी। यह प्रथम तो चन्दना को देखकर उस पर मोहित हुआ, किन्तु माता के कुपित होने पर इसने चन्दना अपने मित्र मित्रवीर को दी और वह उसे सेठ वृषभदत्त के पास ले गया। मपु० ७५.४५-५० सिंहकटि-(१) जरासन्ध के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० ५२.३३ (२) राम का सिंहरथवाही सामन्त । इसने रावण के प्रथित नाम के योद्धा को मार गिराया था। पपु० ५८.१०-११, ६०.११, ७०.१९ सिंहकेतु-(१) विद्याधर-वंश का नृप । यह राजा सिंहसप्रभु का पुत्र तथा राजा शशांकमुख का पिता था। पपु० ५.५० (२) भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के राजा प्रभंजन और रानी मुकण्डू का पुत्र । इसका विवाह इसी देश में वस्वालय नगर के राजा वजचाप की पुत्री विद्युन्माला के साथ हुआ था। चम्पापुर के राजा चन्द्रकीर्ति के बिना पुत्र के मरने पर मंत्रियों ने इसे अपना राजा बनाया था। मृकण्ड्ड का पुत्र होने से चम्पापुर की प्रजा इसे "मार्कण्डेय" कहती थी। शौर्यपुर नगर के राजा शूरसेन इमी के वंश में हुआ था । मपु० ७०.७५-९३, पापु० ७.११८-१३१ (३) तीर्थङ्कर महावीर के पूर्वभव का जीव । यह सिंह पर्याय में अजितंजय मुनि से उपदेश सुनकर तथा श्रावक के व्रतों को पालते हुए देह त्यागकर सौधर्म स्वर्ग में इस नाम का देव हुआ था। मपु० ७४.१७३-२१९, ७६.५४०, वीवच० ४.२-५९ सिंहगिरि-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में गंगा नदी के पास विद्यमान एक वन । त्रिपृष्ठ का जीव नरक से निकलकर इस वन में सिंह हुआ था। मपु० ७४.१६९ सिंहघोष-हिडम्ब वंश में उत्पन्न, सन्ध्याकार नगर का राजा । इसको रानो सुदर्शना और पुत्री हृदयसुन्दरी थी । पाण्डव भीम ने इसकी इस पुत्री से विवाह किया था। हपु० ४५.११४-११८, पापु० १४.२६-६३ सिंहचन्द्र -(१) भरतक्षेत्र में सिंहपुर नगर के राजा सिंहसेन और रानी रामदत्ता का पुत्र । यह पूर्वभव में प्राप्त रामदत्ता के स्नेहवश निदान के कारण इन्द्रत्व की उपेक्षा कर रामदत्ता का पुत्र हुआ था। इसका छोटा भाई पूर्णचन्द्र था। राहुभद्र गुरु के समीप इसके दीक्षित हो जाने पर पूर्णचन्द्र राज्यसिंहासन पर बैठा था। मपु० ५९.१४६, १९२, २०२-२०३, हपु० २७.२०-२४, ४५-४७, ५८-५९ (२) आगामी पाँचाँ बलभद्र। मपु० ७६.४८६, हपु० ६०. ५६८ (३) जम्बूद्वीप में मृगांकनगर के राजा हरिचन्द्र का पुत्र । यह मरकर आहारदान के प्रभाव से देव हुआ था। पपु० १७.१५० १५२ सिंहजघान-रावण का पक्षधर राक्षसवंशी एक योद्धा राजा। इसने राम की सेना से युद्ध किया था। पपु० ६०.२ सिंहजबन-रावण का सिंहर थारूढ़ एक सामन्त । पपु० ५७.४५ सिंहदंष्ट-इक्कीसवें तीर्थङ्कर नमिनाथ के तीर्थ में हुए असितपर्वत नगर के मातंग वंशी राजा विद्याधर प्रहसित और उनकी रानी हिरण्यवती का पुत्र। इसकी स्त्री नीलांजना और नीलयशा थी। यह वसुदेव का श्वसुर और उसका हितैषी था। हपु० २२.१११-११३, २३.१०, ५१.१-२ सिंहध्वज-विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणो का छठा नगर । यहाँ महलों के अग्रभाग पर सिंह के चिह्न से चिह्नित ध्वजाएं फहराती थीं । मपु. १९.३७,५३ सिंहनन्दिता-रत्नपुर नगर के राजा श्रीषेण की बड़ी रानी। इसके पुत्र ____ का नाम इन्द्रसेन था। इसने आहारदान की अनुमोदना करके उत्तर कुरु क्षेत्र में उत्तम भोगभूमि की आयु का बन्ध किया था । मपु० ६२. ३४०-३४१, ३५० सिंहनाव-(१) राजा जरासन्ध के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु. ५२.३४ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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