Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
View full book text
________________
सहदेवी-सहस्ररश्मि
जैन पुराणकोश : ४३३
(३) अवन्ति देश की उज्जयिनी नगरी के धनदेव सेठ का पुत्र । अपने पिता सुलोचन को मारनेवाले विद्याधर पूर्णधन के नगर को नागदत्त का भागीदार । इसका नकुल नामक एक भाई था। ये दोनों घेरकर युद्ध में पूर्णधन को मार डाला था। यह पूर्णपन के पुत्र मेघभाई नागदत्त के साथ पलाशनगर गये थे। नागदत्त ने पलाशनगर में वाहन को भी मारना चाहता था किन्तु तीर्थकर अजितनाथ के समवप्राप्त कन्या पद्मलता तथा सम्पत्ति जहाज पर पहुंचाकर जैसे ही इन सरण में चले जाने से यह उसे पकड़ने स्वयं समवसरण में पहुँचा । दोनों भाइयों को भी जहाज पर चढ़ाया कि इन दोनों ने जहाज पर वहाँ पहुँचते ही इसके परिणाम निर्मल हुए और इसने अपना वैर चढ़ने की रस्सी नागदत्त को नहीं दी और जहाज लेकर अपने नगर छोड़ दिया । पपु० ५.५८-९५ आ गये थे । नागदत्त के न आने पर उसकी माता दुखी हुई । नागदत्त सहापर्वा-पर्वतवासिनी औषधिज्ञात्री एक विद्या । धरणेन्द्र ने यह विद्या को एक विद्याधर ने दया करके उसे मनोहर वन में उतार दिया। नमि और विनमि विद्याधरों को दी थी । हपु० २२.६७-६९, ७३ यहाँ से वह बहिन के यहाँ गया । वहाँ पद्मलता के नकुल के साथ सहस्रपात्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२१ विवाहे जाने का सन्देश पाकर घर आया और उसने राजा से सम्पूर्ण सहस्रबल-राजा शतबल का पिता । इसने पुत्र को राज्य देकर जिनदीक्षा वृत्त कहा। फलस्वरूप नकुल पद्मलता को न विवाह सका । यह ले ली और कर्मनाश कर मुक्त हुआ । मपु० ५.१४६-१४९ संसार में चिरकाल तक भ्रमण कर कौशम्बी नगरी में मित्रवीर नाम
___ सहस्रबाहु-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में कोशल देश के साकेतनगर का का वैश्य पुत्र हुआ । इसी ने चन्दना वृषभसेन सेठ को दी थी। मपु०
राजा। कान्यकुब्ज देश के राजा पारत की पुत्री चित्रमती इसकी रानी ७५.९५-९८, १०९-१५५, १७२-१७४
और कृतवीर पुत्र था । इसके चाचा शतबिन्दु थे तथा जमदग्नि चचेरे सहदेवी-(१) अयोध्या के राजा अनन्तवीर्य की रानी और सनत्कुमार भाई। जमदग्नि के इन्द्र और श्वेतराम दो पुत्र थे । एक दिन यह अपने चक्रवर्ती की जननी । मपु० ६१.१०५, पपु० २०.१५३
पुत्र कृतवीर के साथ जमदग्नि के तपोवन पहुँचा। वहाँ कृतवीर ने (२) अयोध्या के राजा कीर्तिधर की रानी । ये कौशल देश के
मौसी रेणुकी से कामधेनु की याचना की और रेणुकी के स्वीकृति न राजा की पुत्री और सुकौशल की जननी थीं । इसके पति ने मुनिदीक्षा देने पर जमदग्नि को मारकर यह नगर की ओर चला गया था। ले ली थी । पुत्र सुकौशल के अपने पिता से दीक्षा धारण कर लेने पर जमदग्नि का मरण सुनकर जमदग्नि के दोनों पुत्र अयोध्या की ओर यह आतंध्यान से मरकर तिर्यंच योनि में व्याघ्रो हुई । इसने इस गये तथा वहाँ संग्राम कर उन्होंने उसे मार दिया था। मपु० ६५.५६पर्याय में पूर्व पर्याय के अपने ही पुत्र सुकौशल के पूर्व वैरवश पैर खा ६०, ९२, ९९-११२ लिये थे । अन्य अंग भी विदार्ण कर दिये थे। अन्त में सुकौशल के ___सहस्रभाग-रत्नपुर नगर के श्रेष्ठी गोमुख और उसकी पत्नी धरणी का पिता कीर्तिधर के उपदेश से इसने संन्यास ग्रहण किया तथा देह त्याग पुत्र । इसने सम्यग्दर्शन प्राप्तकर अणुव्रत धारण किये थे । अन्त में करके यह स्वर्ग गयी । पपु० २१.७३-७७, १४०-१४२, १५९, १६४- यह मरकर शुक्र स्वर्ग में देव हुआ । पपु० १३.६०-६१ १६५, २२. ४४-४९, ८५, ९०-९२, ९७
सहस्रमति-रावण का मंत्री । इसने रावण के बचाव सम्बन्धी अनेक सहस्र-मुनिवेलाव्रतधारी एक पुरुष । इसने मुनि को आहार दिया था,
उपाय उसे सुझाये थे । पपु० ४६.२१०-२२९ जिसके प्रभाव से इसके घर रत्नवृष्टि हुई थी । अन्त में मरकर यह सहस्ररश्मि-(१) रथनूपुर के राजा विद्याधर अमिततेज के पाँच सौ कुबेरकान्त सेठ हुआ । पपु० १४.३२८
पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र । अमिततेज इसे साथ लेकर महाज्वाला विद्या सहस्रकिरण-एक अस्त्र । इससे तामस अस्त्र नष्ट किया जाता था। सिद्ध करने के लिए ह्रीमन्त पर्वत पर श्रीसंजयन्त मुनि की प्रतिमा के पपु० ७४.१०८
पास गया था। मपु० ६२.२७३-२७४ । सहस्रग्रीव-(१) बलि के वंश में हुआ एक विद्याधर राजा। हपु० (२) माहिष्मती नगरी का राजा । इसने नर्मदा के किनारे रावण २५.३६
की पूजा में विघ्न किया । इस विध्न के फलस्वरूप रावण और इसका (२) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित विजया पर्वत की दक्षिण
युद्ध हुआ, जिसमें यह जीवित पकड़ा गया था। इसके पिता शतबाह श्रेणी के मेघकूट नगर के राजा विनमि विद्याधर के वंश में हुआ
मुनि के कहने से रावण ने इसे छोड़ दिया था और इसे अपना चौथा रावण का पूर्वज एक विद्याधर राजा । यह यहाँ से निकाले जाने पर भाई मान लिया था। रावण ने मन्दोदरी की छोटी बहिन स्वयंप्रभा लंका गया था । मातग्रीव इसका पुत्र था। रावण इसी की वंश भी देने का प्रस्ताव रखा था किन्तु उसे अस्वीकृत कर इसने पुत्र को परम्परा में हुआ मपु० ६८.७-१२
राज्य सौंपकर दशानन से क्षमा याचना करते हुए पिता शतबाह के सहस्रघोष-विद्याधर अशनिघोष का पुत्र । यह पोदनपुर के राजा पास दीक्षा ले ली थी। पूर्व निश्चयानुसार जैसे ही अनरण्य के पास
श्रीविजय से युद्ध में पराजित हुआ था। मपु० ६२.२७५-२७६ इसकी दीक्षा का समाचार गया कि अनरण्य भी पुत्र को राज्य देकर सहनदिक-राजा जरासन्ध के अनेक पुत्रों में एक पुत्र । हपु० ५२.३९ मुनि हो गया था। पपु० १०.६५, ८६-९२, १३०-१३१, १४७, सहस्रनयन-विहायस्तिलक नगर के राजा सुलोचन का पुत्र । यह चक्रवर्ती १६०-१७६
सगर का साला था। इसने सगर से विद्याधरों का आधिपत्य पाकर (३) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.४०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org