Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 441
________________ सत्यक- सत्यविज्ञान जैन पुराणकोश : ४२३ यह धर्म वैराग्यवृद्धि का कारण होता है। मपु० ३६.१५७, वीवच० और राजा के भण्डार में अगन्धन नामक सर्प हुआ। मपु० ५९. ६.८ १४६-१७७ (३) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७५ ।। सत्यदत्त-तीर्थकर धर्मनाथ का मुख्य प्रश्नकर्ता । मपु० ७६.५३१ सत्यक-(१) राजा शान्तन का पौत्र और राजा शिव का पुत्र । इसके सत्यदेव-(१) वृषभदेव के उन्तालीसवें गणधर । हपु० १२.६२ पुत्र का नाम वजधर्मा था। इसने कृष्ण और जरासन्ध के बीच हुए (२) पुष्कलावती देश संबंधी शोभानगर के राजा प्रजापाल के युद्ध में कृष्ण की ओर से युद्ध दिया था। मपु०७१.७४, हपु० ४८. शक्तिषेण सामन्त का पुत्र । इसने अमितगति गणनी से साधुओं के ४०-४१, ५०.१२४, ५२.१४ स्तबन करने का नियम लिया था। इसकी अकर्मण्यता से शक्तिषण (२) रत्नपुर नगर का निवासी एक ब्राह्मण । इसने जम्बूद्वीप के क्षुब्ध था । इसने दुःखी होकर आगामी भव में भी पिता का स्नेहपात्र मगध देश में अचलग्राम के धरणीजट ब्राह्मण की दासी के पुत्र कपिल होने का निदान किया तथा यह द्रव्यालिंगी मुनि हो गया था। पिता के साथ अपनी पुत्रो विवाही थी । मपु० ६२.३२५-३२९ के स्नेह से मोहित होकर यह मरा और लोकपाल हुआ । मपु० ४६. (३) नन्दिवर्धन मुनि के संघ के एक मुनि । अग्निभूति और वायु- ९४-९६, १००, १२१-१२२ भति ब्राह्मणों ने इनसे शास्त्रार्थ किया था। इसमें ये दोनों पराजित सत्यनेमि-राजा समुद्रविजय का पुत्र । वसुदेव द्वारा रचे गये गरुडव्यूह हा । पराजय होने से क्षब्ध होकर दोनों ब्राह्मण इन्हें मारने को उद्यत में यह श्रीकृष्ण के साथ था। हप० ४८.४३. ५०.१२० हए, किन्तु सुवर्णयक्ष ने उन्हें कील दिया था। उसने जैनधर्म स्वीकार सत्यपरायण-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० कर लेने पर ही उन्हें मुक्त किया था। मपु०७२.३-२२ २५.१७५ (४) गान्धार देश के महीपुर नगर का राजा। इसने राजा चेटक सत्यप्रवाव-पूर्वगत श्रुत का एक भेद । इसमें एक करोड़ छः पद हैं, की ज्येष्ठा पुत्री के लिए प्रस्ताव रखा था, किन्तु स्वीकृत न होने से जिसमें बारह प्रकार की भाषा तथा दस प्रकार के वचनों का कथन इसने चेटक से युद्ध भी किया था। युद्ध में पराजित हो जाने से किया गया है । हपु० २.९८, १०.९१ लज्जित होकर दमवर मुनि के पास दीक्षित हो गया था। मपु० ७५. सत्यभामा-(१) विजयाध पर्वत पर रथनूपुर नगर के राजा सुकेतु और १३-१४ रानी स्वयंप्रभा की पुत्री । इसका विवाह श्रीकृष्ण से हुआ। सुभानु सत्यकोति-(१) मलय देश के भद्रिलपुर नगर के राजा मेघरथ का इसका पुत्र था । अन्त में इसने दीक्षा धारण कर ली थी। मपु० ७१. मंत्री । इसने राजा मेघरथ को जिनेन्द्र द्वारा कथित दान का स्वरूप ३१३, ७२.१५६, १६९, हपु० ३६.५७, ६१.४० समझाते हुए कहा था-राजन् ! अनुग्रह के लिए अपना धन या । (२) रत्नपुर नगर के सत्यक ब्राह्मण को पुत्री। इसका विवाह अपनो कोई वस्तु दूसरों को देना दान है । देनेवाले को पुण्यवृद्धि तथा धरणीजट ब्राह्मण के दासीपुत्र कपिल के साथ हुआ था। इसने दान लेनेवाले को गुणवृद्धि होने से दोनों का अनुग्रह (उपकार) होता है। की अनुमोदना से उत्तरकुरु को आयु का बन्ध किया था। इसके "अनुग्रहार्थ स्वस्यातिसर्गो दानं" यहाँ स्व का अर्थ धन है। मंत्री के फलस्वरूप यह धातकीखण्ड के उत्तरकुरु में उत्पन्न हुई थी। मपु० इस प्रकार समझाने पर भी राजा नहीं माना और उसने कन्यादान, ६२.३२५-३३१, ३५०, ३५७-३५८, पापु० ४.१९४-१९७ ।। हस्तिदान, सुवर्णदान, अश्वदान, गोदान, दासीदान, तिलदान, रथ सत्यमहावत--पाँच महाव्रतों में दूसरा महाव्रत । राग द्वष मोहपूर्वक दान, भूमिदान और गृहदान को दान कहकर उनका प्रचलन किया परतापकारी वचनों का त्याग करके हित-मित और प्रियवचन बोलना था । मपु० ५६.६४, ८८-८९, ९६ (२) लक्ष्मण और उनको पटरानी भगवती का पुत्र । पपु० सत्य महाव्रत है । इसकी पाँच भावनाएं होती है-क्रोध, लोभ, भय ९४.३४ और हास्य विरति तथा प्रशस्त वचन का बोलना । इसे मुनि पालते सत्कृत्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३० हैं । मपु० २०.१५९-१६२, हपु० २.११८, ९.८४, ५८.११९ सत्यघोष-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में स्थित सिंहपुर नगर के राजा सिंह- सत्ययश-तीर्थकर वृषभदेव के उनसठवें गणधर । हपु० १२.६५ सेन का श्रीभूति ब्राह्मण मंत्री । यह सेठ भद्रमित्र के धरोहर के रूप सत्यवती-(१) मत्स्यकुल में उत्पन्न धीवर को पुत्री । बुद्धिमान् व्यास में रखे हुए रत्न देने से मुकर गया था। भद्रमित्र के रोने चिल्लाने की यह जननी थी। मपु० ७०.१०२-१०३ पर रानी रामदत्ता ने इसके साथ जुआ खेला और जुए में इसका (२) लोकपाल राजा वरुण और रानी सुदेवी की पुत्री। वरुण के यज्ञोपवीत तथा अँगूठी जीतकर युक्तिपूर्वक भद्रमित्र के रत्न इसके निवेदन पर रावण ने इससे विवाह किया था । पपु० १९.९७-९९ घर से मँगा लिए तथा भद्रमित्र को दे दिये। राजा ने भद्र मित्र को सत्यवाक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. राजश्रेष्ठी बनाया और उसका उपनाम सत्यघोष रखा तथा इस मंत्री १७५ को तीन दण्ड दिये-१. इसका सब धन छीन लिया गया २. वन- सत्यवान्-वृषभदेव के तैंतालीसवें गणधर । हपु० १२.६२ मुष्टि पहलवान ने तीस चूंसे मारे ३. कांसे की तीन थाली गोबर सत्यविज्ञान-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. खिलाया गया । अन्त में राजा से वैर बांधकर यह आर्तध्यान से मरा १७५ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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