Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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शिवघोष-शीतलनाथ
जैन पुराणकोश : ४०३ (३) एक मुनि । लक्ष्मण के बड़े भाई राम ने इन्हीं से धर्म का प्रथम इसे मनुष्य उठाते हैं। उनके पश्चात् विद्याधर और अन्त में स्वरूप सुनकर श्रावक के व्रत लिये थे। मपु० ६८.६७९-६८६
देव । मपु० १७.८१,४८.३७-३८ (४) एक यति । आगम-ज्ञान प्राप्त करने के लिए वशिष्ठ को इन्हीं शिशपाल-(१) कौशल नगरी के राजा भेषज और रानी मद्री का पुत्र । यति के पास भेजा गया था। हपु० ३३.७१-७२
इसके तीन नेत्र थे। किसी निमित्तज्ञानी ने बताया था कि जिसके (५) अर्हद्बलि के पूर्ववर्ती एक आचार्य । हपु० ६६.२५
देखने से इसका तीसरा नेत्र नष्ट हो जावेगा वही इसका हन्ता होगा। शिवघोष-(१) एक मुनि । इन्हें वत्स देश में सुसीमा नगरी के समीप एक बार इसके माता-पिता इसे लेकर कृष्ण के पास गये। वहाँ कृष्ण केवलज्ञान प्रकट हुआ था। मपु० ४६.२५६
के प्रभाव से इसका तोसरा नेत्र अदृश्य हो गया । यह घटना घटते ही (२) बलभद्र नन्दिषेण के दीक्षागुरु । ये जगत्पादगिरि से मुक्त इसकी माता को कृष्ण के द्वारा पुत्र-मरण की आशंका हुई। उसने हुए । मपु० ६५.१९०, ६८.४६८
कृष्ण से पुत्रभिक्षा मांगी । कृष्ण ने भी सौ अपराध होने पर ही इसे शिवचन्द्रा-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी में जम्बुपुर नगर के राजा मारने का वचन दिया। इसने अहंकारी होकर कृष्ण के विरुद्ध सौ
विद्याधर जाम्बव की रानी । विश्वसेन इसका पुत्र और जाम्बवती अपराध कर लिये थे। इसके पश्चात् जाम्बवती को पाने के लिए इसकी पुत्री थी । हपु० ४४.४-५
कृष्ण और इसके बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में यह कृष्ण द्वारा मारा शिवताति-मौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । हपु० २५.२०२ गया। मपु०७१.३४२-३५७, हपु० ४२.५६,९४,५०.२४, पापु० शिवदत्त-महावीर की आचार्य परम्परा में लोहाचार्य के पश्चात् हुए १२.९-१३
चार आचार्यों में तीसरे आचार्य । ये अंग और पूर्वश्रुतों के एक देश (२) पाटलिपुत्र नगर का राजा । यह प्रथम कल्की का पिता था। ज्ञाता थे । वीवच० १.५१
मपु०७६.३९८-३९९ शिवदेव-लवणसमुद्र के उदवास पर्वत का अधिष्ठाता देव । हपु० शिष्ट-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. ५.४६१
१७२ शिवदेवी-हरिवंशी एवं काश्यप गोत्री अन्धकवृष्टि के पुत्र समुद्रविजय
(२) क्षमा, शौच आदि गुणों से युक्त पुरुष । मपु० ४२.२०३ की पत्नी । यह तीर्थङ्कर नेमिनाथ की जननी थी । मपु० ७१.३०-३२,
शिष्टपालन-राजधर्म । न्यायपूर्वक आजीविका करनेवाले पुरुषों का ३८,४६
पालन करना शिष्टपालन कहलाता है । मपु० ४२.२०२ शिवनन्द-राजा समुद्रविजय का पुत्र । हपु० ४८.४४
शिष्टभुक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. शिवप्रद-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०२ १७२ शिवभूति-मगध देश की वत्सा नगरी के अग्निमित्र ब्राह्मण का पुत्र ।। शिष्टेष्ट-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०१
सोमिला ब्राह्मणी इसकी पत्नी और चित्रसेना इसकी बहिन थी । यह शीतगृह-भरतक्षेत्र का एक पर्वत । दिग्विजय के समय भरतेश का मरकर वंग देश के कान्तपुर नगर में महाबल नाम का राजपुत्र हुआ सेनापति ससैन्य कवाटक पर्वत को लांघकर इस पर्वत पर आया था। था। मपु०७५.७१-८१
मपु० २९.८९ शिवमति-ऐरावत क्षेत्र में दितिनगर के विहीत सम्यग्दृष्टि की पत्नी। शीतवा-शीतलता प्रदायिनी एक विद्या। विद्याधर अमिततेज ने यह यह मेघदत्त की जननी थी । पपु० १०६.१८७-१८८
विद्या सिद्ध की थी। मपु० ६२.३९८ शिवमन्दिर-(१) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी का नौवां नगर । मपु०
शीतपरीषह-मुनियों के बाईस परीषहों में एक परीषह । शीत-वेदना को ६३.११६, हपु० २२.९४
जीतना शीतपरोषह है । हपु० ६३.९१,९४ (२) विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का पन्द्रहवां नगर। मपु० । शीतलनाथ-अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा चौथे काल में उत्पन्न १९.७९,८७
शलाकापुरुष एवं दसवें तीर्थंकर । जम्बूद्वीप-भरतक्षेत्र के मलय देश शिवसेन-श्रेयपुर नगर का स्वामी । वीतशोका इसकी पुत्री थी। मपु० में भद्रपुर नगर के इक्ष्वाकुवंशी राजा दृढ़रथ इनके पिता तथा रानी ४७.१४२-१४३
सुनन्दा माता थीं। मां के गर्भ में इनके आने के छः मास पहले से शिवा-शौर्यपुर के राजा समुद्रविजय की पटरानी । यह तीर्थंकर नेमिनाथ ही राजा दृढ़ रथ के घर रत्नवृष्टि होने लगी थी। ये सोलह स्वप्न
की जननी थी। इसका अपर नाम शिवदेवी था। पपु० २०.५८, पूर्वक चैत्र कृष्ण अष्टमी को रात्रि के अन्तिम पहर में माँ के गर्भ हपु० १८.१८०, पापु० ११.१९५,१९८, दे० शिवदेवी
में आये थे। उस समय पूर्वाषाढ़ नक्षत्र था। गर्भवास के नौ मास शिवाकर-कुशाग्रपुर का राजा । यह छठे नारायण पुण्डरीक का पिता स्ततीत होने पर माघ कृष्ण द्वादशी के दिन विश्वयोग में इनका जन्म - था । लक्ष्मी इसकी रानी थी। पपु० २०.२२१-२२६
हुआ था। देवों ने इन्हें सुमेरु पर्वत पर ले जाकर इनका अभिषेक शिवि-राजा उग्रसेन के चाचा शान्तनु का पुत्र । हपु० ४८.४०
किया और इनका यह नाम रखा । इनका जन्म तीर्थकर पुष्पदन्त के शिविका-दीक्षाबन जाने के लिए तीर्थंकरों द्वारा प्रयुक्त पालकी । सर्व- मुक्त होने के बाद नौ करोड़ सागर का समय व्यतीत हो जाने पर
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