Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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४०८ : जैन पुराणकोश
श्रीकान्त-श्रीचन्द्र
अवरुद्ध हो जाने से दुःखी होकर इसने इस पर्वत के आगे जाने का निश्चय किया था । फलस्वरूप यह वज्रकंठ पुत्र को राज्य सौंप करके निर्ग्रन्थ मुनि हो गया था। वानरद्वीप में रहने से इसकी सन्तति वानरवंश के नाम से विख्यात हुई । पपु० ६.३-१५१, २०६
(२) अनागत प्रथम प्रतिनारायण । हपु० ६०.५६९-५७० श्रीकान्त-(१) आगामी सातवें चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८३, हपु० ६०..
(२) विदेहक्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तरी तट पर स्थित सुगन्धि देश के श्रीपुर नगर के राजा श्रीवर्मा का पुत्र । श्रीवर्मा इसे राज्य देकर संयमी हुए । मपु० ५४.९-१०, २५, ८०
(३) रावण के पूर्वभव का जीव । यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एकक्षेत्र नामक नगर का निवासी वणिक था। यह इसी नगर के सागरदत्त वणिक् की पुत्री गुणवती पर आसक्त था किन्तु गुणवतो के भाई ने गुणवती को इसे न देकर धनदत्त को देने का निश्चय किया था। धनदत्त का छोटा भाई वसुदत्त इसे अपने भाई का विरोधी जानकर मारने को उद्यत हुआ। परिणामस्वरूप इसने वसुदत्त को और वसुदत्त ने इसे मार डाला था। इस प्रकार दोनों मरकर मृग हुए । पपु० १०६.१०-२० श्रीकान्ता-(१) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र सम्बन्धी पुष्कलावती देश की
वीतशोका नगरी के राजा अशोक और रानी श्रीमती को पुत्री । यह जिनदत्ता आर्यिका के पास दीक्षा लेकर और रत्नावली-तप करते हुए देह त्याग करके माहेन्द्र स्वर्ग के इन्द्र की देवी हुई । मपु० ७१.३९३३९६, हपु० ६०.६८-७०
(२) मेरु की पश्चिमोत्तर (वायव्य) दिशा की प्रथम वापी । हपु० ५.३४४
(३) मथुरा नगरी के सेठ भानु को पुत्रवधू और शूर की पत्नी । यह अन्त में दीक्षित हो गयी थी। हपु० ३३.९६-९९, १२७
(४) अरिष्टपुर नगर के राजा हिरण्यनाभ की रानी। कृष्ण की पटरानी पद्मावती इसी की पुत्री थी । हपु० ४४.३७-४३
(५) हस्तिनापुर के कौरववंशी राजा शूरसेन की रानी । यह तीर्थकर कुन्थुनाथ की जननी थी। मपु० ६४.१२-१३, २२, पापु० ६.५-७, २८-३०
(६) विदेहक्षेत्र के गन्धिल देश में स्थित पाटली ग्राम के नागदत्त वैश्य की पुत्री । इसके नन्द, नन्दिमित्र, नन्दिषेण, वरसेन और जयसेन ये पाँच भाई तथा मदनकान्ता नाम की एक बहिन थी। मपृ० ६. १२६-१३०
(७) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की पुण्डरी किणी नगरी के राजा वज्रसेन की रानी। वजनाभि की यह जननी थी। मपु० ११.८-९
(८) पूर्व मेरु के पश्चिम विदेहक्षेत्र में सुगन्धि देश के श्रीपुर नगर के राजा श्रीषेण की रानी। श्रीवर्मा की यह जननी थी। मपु० ५४. ९-१०, ३६, ३९, ६७-६८
(९) कौशाम्बी नगरी के राजा महाबल और रानी श्रीमती की पुत्री। इसका विवाह इन्द्रसेन से हुआ था। अनन्तमति इसकी दासी और उपेन्द्रसेन देवर था। मपु० ६२३५१ दे० इन्द्रसेन
(१०) घातकीखण्ड द्वीप के पूर्व भरतक्षेत्र सम्बन्धी विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी में स्थित नन्दपुर नगर के राजा हरिषेण की रानी । हरिवाहन की यह जननी थी । मपु०७१.२५२-२५४
(११) साकेत नगर के राजा श्रीषेण की रानी। हरिषेणा और श्रीषेणा इसकी पुत्रियाँ थीं। मपु० ७२.२५३-२५४
(१२) सुग्रीव की पांचवीं पुत्री। राम के भाई भरत की यह भाभी थी। पपु० ४७.१३८, ८३.९६
(१३) रावण की रानी । पपु० ७७.१३ श्रीकूट-(१) हिमवत् कुलाचल का छठा कूट । हपु० ५.५४
(२) विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का तैतीसवाँ नगर । हपु० २२.९७ श्रीकेशो-लक्ष्मण और उसकी पत्नी रतिमाला का पुत्र । पपु० ९४.३४
दे० अतिवीर्य श्रीगर्भ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११८ श्रीकटन-भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक पर्वत । दिग्विजय के समय
चक्रवर्ती भरतेश के सेनापति ने यहाँ के शासक को पराजित किया ___था । मपु० २९.८९ श्रीगुहापुर-विद्याधरों का एक नगर । यहाँ का राजा अपने मंत्री सहित
रावण की सहायतार्थ उसके पास आया था। पपु० ५५.८६ श्रोगह-(१) एक नगर । लक्ष्मण ने इस नगर के राजा को अपने अधीन किया था । पपु० ९४.७
(२) अयोध्या नगरी के राजा नाभिराय का एक महल । यहाँ वृषभदेव का जन्म हुआ था । भरतेश के मणि, चर्म और काकिणीरत्न
इसी महल में प्रकट हुए थे । मपु० १४.७२-७४, ३७.८५ श्रीगोव-राक्षसवंशी राजा हरिग्रीव का पत्र । यह समख का पिता था। इसने सुमुख को राज्य सौंपकर मुनिव्रत धारण कर लिया था।
पपु० ५.३९१-३९२ श्रीचन्द्र-आगामी छठा बलभद्र । इन्हें महापुराण में नौवा बलभद्र कहा है । मपु० ७६.४८६, हपु० ६०.५६८
(२) आठवें बलभद्र पद्म के पूर्वभव का नाम । पपु० २०.२३३ (३) कुरुवंशी एक राजा । यह मन्दर का पुत्र और सुप्रतिष्ठ राजा का पिता था। यह जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र संबंधी कुरूजांगल देश में हस्तिनापुर नगर का राजा था। इसकी रानी श्रीमतो थो। यह सुप्रतिष्ठ पुत्र को राज्य सौंपकर सुमन्दर यति से दीक्षित हुआ और अन्त में मुक्त हुआ। मपु० ७०.५१-५३, हपु० ३४.४३-४४, ४५.११-१२
(४) किष्किन्ध नगर के राजा सुग्रीव का मंत्री। इसने कृत्रिम सुग्रीव के साथ युद्ध करने को तत्पर देखकर सुग्रीव को रीक दिया था। पपु० ४७.५७
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