Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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जय
शतघ्नी - सौ व्यक्तियों पर एक साथ प्रहार करने वाली तोप । इसका रावण की सेना ने वरुण की सेना के साथ युद्ध करते समय प्रयोग किया । पपु० १९.४२-४३ शतघोष-अशनपोष विद्याधर के पांच सौ पुत्रों में एक पुत्र इसने श्री विजय के साथ पन्द्रह दिन युद्ध किया और अन्त में यह पराजित हो गया था । मपु० ६२.२७५-२७६ दे० अशनिघोष शतज्वलकूट - मेरु पर्वत के दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित स्वर्णमय विद्युत्प्रभ पर्वत का सातवाँ कूट । हपु० ५.२१२, २२२ शतद्वार - धातकीखण्ड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र का एक नगर । सुमित्र और प्रभव दोनों विद्वान् इसी नगर के थे। पपु० १२.२२-२३ शतद्रुत — जरासन्ध का एक पुत्र । हपु० ५२.३५ शतधनु - (१) हरिवंशी राजा देवगर्भ का एक पुत्र । यह धनुर्धर था । हपु० १८.२०
(२) बलदेव का एक पुत्र । हपु० ४८.६८, ५०.१२६ शतपति - हरिवंशी राजा निहतशत्रु का पुत्र । यह बृहद्रथ का पिता था । हपु० १८.२१-२२
शतपर्वा - एक विद्या । घरणेन्द्र ने यह विद्या नमि और विनमि विद्याघरों को दी थी । हपु० २२.६७
शतबल - महाबल विद्याधर का दादा । यह सहस्रबल का पुत्र था । इसने सम्यक्त्व होकर श्रावक के व्रत ग्रहण किये थे । यह आयु के अन्त में यथाविधि समाधिमरणपूर्वक देह त्याग कर माहेन्द्र स्वर्ग में देव हुआ और इसके पिता मोक्ष गये । इसका अपर नाम शतबलि, पिता का अपर नाम सहस्रायुध और बाबा का अपर नाम वज्रायुध था । मपु० ५.१२९-१४९ ६२.१२८-१३९
शत (१) विजयापर्यंत पर स्थित मन्दरपुर के राजा विद्यार बीन्द्र ( प्रतिनारायण ) का पुत्र । यह युद्ध में दत्त नारायण द्वारा मारा गया था। मपु० ६६.१०९-११०, ११८
(२) विजयार्ध पर्वत की अलका नगरी के निवासी विद्याधर महाबल और विद्याघरी ज्योतिर्माला का पुत्र हरिवाहन का भाई । इसने हरिवाहन को राज्य से निकाल दिया था। हपु० ६०.१८-२० शतबाहु - माहिष्मती नगरी के राजा सहस्ररश्मि का पिता । यह पुत्र को राज्य सौंप करके मुनि हो गया था। इसे जंघाचारण ऋद्धि प्राप्त था। रावण द्वारा पुत्र के पकड़े जाने पर यह रावण के पास उसे निर्बन्ध कराने गया था। पपु १०.६५, १३९-१४७, १६८ दात (१) एक निमित्तश प्रतिनारायण अवधी ने अपने यहाँ विनाश सूचक हुए उत्पातों का फल इसी से पूछा था । मपु० ६२.११३ ११५, पापु० ४.५५-५६
(२) राजा सहस्रबाहु का चाचा श्रीमती इसकी रानी और जमदग्नि पुत्र था । मपु० ६५.५७-६० शतभिषा - एक नक्षत्र । तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म इसी नक्षत्र में हुआ
था । पपु० २०.४८
शतभोगा - भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड की एक नदी । दिग्विजय के समय
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मैनपुराणको ३९५
चक्रवर्ती भरतेश को सेना ने इस नदी को पार किया था। मपु० २९.६५
शतमख —— इन्द्र का अपर नाम । हपु० १६.१८ शतमति - विजयार्धं पर्वत की अलकापुरी के राजा महाबल का एक मिथ्यादृष्टि मन्त्री यह मैम्यवादी (शून्यवादी) या मिध्यात्व के कारण मरकर यह नरक गया । मपु० ४.१९०-१९१, ५.४४,
१०.८
शतमन्यु — एक ऋषि । इसका एक आश्रम था । चम्पा नगरी के राजा जनमेजय की माता नागवती कालकल्प राजा के आक्रमण करने पर पुत्री को लेकर सुरंग मार्ग से इसी के आश्रम में आयी थी । यह नागवती का पति तथा जनमेजय का पिता था । पपु० ८.३०-३०३, ३९२
शतमुख - राजा धरण का चौथा पुत्र । हपु० ४८.५०
शतरथ - अयोध्या में हुए इक्ष्वाकुवंशी राजाओं में एक राजा । यह राजा हेमरथ का पुत्र और राजा पृथु का पिता था। पपु० २२.१५३ - १५४, १५९
शतसंकुला - एक विद्या । अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने यह विद्या सिद्ध की थी । मपु० ६२.३९६ शतहृद विजयार्थ पर्वत की दक्षिणश्रेणी का अठारहवां नगर। हपु० २२.९५
शतहृवा -- कांचनस्थान नगर के राजा कांचनरथ की रानी । इसकी दो पुत्रियाँ थीं— मन्दाकिनी और चन्द्रभाग्या । पपु० ११०.१-१९ 'शतानीक - (१) वत्स देश की कौशाम्बी नगरी का एक चन्द्रवंशी राजा । चेटक की दूसरी पुत्री मृगावतो इसी की रानी थी। मपु० ७५.३-५, ९
(२) राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३८ (३) विद्याधर विनमि का पुत्र । हपु० २२.१०५
शतायुध - कौरवों का पक्षधर एक राजा । इसने कृष्ण और अर्जुन को दुःसाध्य समझकर देवी गदा का स्मरण किया था। जैसे ही गदा इसके हाथ आयी कि इसने कृष्ण के गले पर उससे प्रहार किया था। यह गदा कृष्ण के पास पुष्पहार की भाँति लटक गयी थी और उससे फैलने लगी थी । कृष्ण ने इसी गदा से इसे मारा था । पापु सुगन्ध २०.१३१-१३९ शतार -- ऊर्ध्वलोक में स्थित ग्यारहवाँ कल्प । पपु० १०५.१६६-१६९, हपु० ६.३७
शतारक - सहस्रार स्वर्ग का इन्द्रक विमान । हपु० ६.५० शतारेन्द्र - शतार स्वर्ग के देवों का स्वामी इन्द्र । वीवच० १४.४६
शत्रु जय - ( १ ) भरतक्षेत्र का एक पर्वत । यहाँ पाँचों पाण्डवों ने आकर प्रतिमायोग से ध्यान लगाया था । दुर्योधन के भानजे कुर्यधर अपर नाम क्षुयवरोधन ने पाण्डवों को लोहे के तप्त वस्त्र और आभूषण इसो पर्वत पर पहनाये थे। उपसर्ग जीतकर युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन इसी पर्वत से मुक्त हुए और नकुल तथा सहदेव सर्वार्थसिद्धि विमान
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