Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan

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Page 370
________________ ३५२ : जैन पुराणकोश वशी-बसु जाने पर यह शान्त हो गया था और इसने उनसे दीक्षा ले ली थी। व्यन्तर देव इसके तप के प्रभाव से प्रसन्न हो गये थे । यहाँ से विहार करके यह मथुरा आया था। यहाँ इसने एक मास के उपवास का नियम लेकर आतापनयोग धारण किया था। मथुरा के राजा उग्रसेन ने इसके दर्शन किये थे । इनसे प्रभावित होकर उसने नगर में घोषणा कराई थी कि ये मुनिराज महल में ही आहार करेंगे अन्यत्र नहीं। पारणा के दिन ये मगर में आये किन्तु नगर में आग लग जाने से इन्हें निराहार ही लौट जाना पड़ा था। एक मास बाद पुनः पारणा के लिए आने पर इन्हें हाथी के क्षुब्ध हो जाने से पुनः निराहार लौट जाना पड़ा । तीसरी बार आहार के लिए आने पर राजा उग्रसेन व्याकुलित चित्त होने से ध्यान न दे सके । यह इस घटना से कुपित हुआ। इसने उग्रसेन का पुत्र होकर राज्य छीनने का निदान किया । आयु के अन्त में मरकर यह निदान के कारण राजा उग्रसेन का रानी पद्मावती के गर्भ से कंस नाम का पुत्र हुआ। कंस को पर्याय में इसने उग्रसेन को बन्दी बनाकर उसे बहुत दुःख दिये थे । मपु० ७०.३२२-३४१, ३६७ ३६८, हपु० ३३.४६-८४ वशी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१६० वशीकरणी-एक विद्या । विद्याधर अमिततेज ने अनेक अन्य विद्याओं के साथ यह विद्या भी सिद्ध की थी। मपु० ६२.३९२ । वश्येन्द्रिय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम,। मपु० २५. १८६ बसन्त-(१) एक पर्वत । अयोध्या का राजा वजबाह अपनी रानी मनोदया और साले उदयसुन्दर के साथ यहाँ आया था। यहाँ उस समय गुणसागर मुनि थे। धर्मोपदेश सुनकर वहीं दीक्षित हो गया पपु० २१.७३-१२७ दे० वज्रबाहु-४ (२) राम का एक योद्धा । इसने रावण को सेना से युद्ध किया था। पपु० ५८.२१-२३ (३) एक विद्याधर । प्रद्युम्नकुमार ने इसकी इसके वैरी मनोवेग विद्याधर से मित्रता कराकर एक कन्या और नरेन्द्र-जाल प्राप्त किया था । हपु० ४७.४० वसन्तडमरा-पोदनपुर नगर के ब्राह्मण मृदुमति की स्त्री। मृदुमति ने चोरी करते समय शशांक-नगर के राजा नन्दिवर्धन को अपनी रानी से यह कहते हुए सुना था कि वह विषयों का त्याग करके प्रातः दीक्षा धारण कर लेगा। यह सुनकर मृदुमति को बोधि प्राप्त हुई । उसने इसे त्याग कर दीक्षा ले ली थी । पपु० ८५.११८-१३७ वसन्ततिलक-इक्ष्वाकुवंश के राजा रविमन्यु का पुत्र । यह कुबेरदत्त का पिता था । पपु० २२.१५६-१५९ वसन्ततिलका-(१) अंजना की सखी । इसका अपर नाम वसन्तमाला था। इसने अंजना के समक्ष पवनंजय की प्रशंसा की थी। यह आकाश में मण्डलाकार भ्रमण करने में समर्थ थी। पपु० १५.१४७, १६० (२) पद्मिनी नगरी का निकटवर्ती एक उद्यान । विध्यश्री को सर्प के काटने पर सुलोचना ने उसे पंच-नमस्कार मंत्र इसी उद्यान में सुनाया था । मपु० ४५.१५५, पपु० ३९.९५-९७ बसन्तभद्र-एक व्रत । इसमें पांच उपवास एक पारणा, छः उपवास एक पारणा, सात उपवास एक पारणा, आठ उपवास एक पारणा और नौ उपवास एक पारणा के क्रम से पैंतीस उपवास और पाँच पारणाएं की जाती हैं । हपु० ३४.५६ वसन्तमाला-अंजना की सखी। इसका अपर नाम वसन्ततिलका था। पपु० १५.१४७, १६०, १७.२५० दे० वसन्ततिलका वसन्तसुन्दरी-वसुन्धरपुर के राजा विध्यसेन और रानी नर्मदा को पुत्री। इसे गुरुजनों ने युधिष्ठिर को देना निश्चित किया था किन्तु युधिष्ठिर के लाक्षागृह की आग में जलकर मर जाने के समाचार से इसका युधिष्ठिर के साथ विवाह नहीं हो सका। तब यह संसार से विरक्त हुई और इसने दीक्षा ले ली थी। पाण्डवपुराण में इसके पिताकौशाम्बी के राजा, माता का नाम विध्यसेना तथा इसका नाम वसन्तसेना बताया है । हपु० ४५.७०-७२, पापु० १३.७३-९९ वसन्तसेना-(१) वस्त्वोकसार नगर के राजा विद्याधर समुद्रसेन और रानी जयसेना की पुत्री । यह कनकशान्ति की दूसरी रानी थी। मपु० ६३.११७-११९, पापु० ५.४०-४१ (२) कौशाम्बी के राजा विध्यसेन की पुत्री । पपु० १३.७३-९९ दे० वसन्तसुन्दरी (३) विजयनगर के राजा महानद की रानी। यह हरिवाहन को जननी थी। मपु० ८.२२७-२२८ (४) चम्पापुरी की वेश्या कलिंगसेना की पुत्री । चारुदत्त इस पर आसक्त होकर इसके घर बारह वर्ष तक रहा। मपु० ७२.२५८, हपु० २१.४१, ५९, ६४.१३४ वसु-(१) विनीता नगरी के इक्ष्वाकुवंशी राजा ययाति और रानी सुरकान्ता का पुत्र । यह क्षीरकदम्बक गुरु का शिष्य और पर्वत तथा नारद का गुरुभाई था । सत्यवादी होते हुए भी इसने गुरु की पत्नी के कहने से उसके पुत्र पर्वत का पक्ष पुष्ट करने को "अजैर्यष्टव्यम्" शब्द का अर्थ "बकरे से यज्ञ करना बताया था। इसके परिणामस्वरूप यह मरकर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ। महापुराण में इसे भरतक्षेत्र में धवल देश की स्वास्तिकावती नगरी के राजा विश्वावसु और रानी श्रीमती का पुत्र बताया है । हरिवंशपुराण के अनुसार इसके पिता चेदि राष्ट्र के संस्थापक तथा शुक्तिमती नगरी के राजा अभिचन्द्र तथा माँ उनकी रानी वसुमती थी। राजा अभिचन्द्र ने इसे राज्य सौंपकर दीक्षा ले ली थी। यह सभा में आकाश-स्फटिक स्तम्भ के ऊपर स्थित सिंहासन पर बैठता था। इसको दो रानियाँ थीं-एक इक्ष्वाकुवंश की और दूसरी कुरुवंश की । इन दोनों रानियों से इसके दस पुत्र हुए थे। वे हैं-वृहद्वसु, चित्रवसु, वासव, अर्क, महावसु, विश्वावसु, रवि, सूर्य, सुवसु और बृहद्ध्वज । इन दोनों पुराणों में भी "अजयंष्टव्यं" की कथा थोड़े अन्तर के साथ आयो है । दोनों ही जगह इस कथा के परिणामस्वरूप वसु का पतन हुआ है। मपु० ६७.२५६-२५७, ४१३-४३९, पपु० ११.१३-१४, ६८-७२, हपु० १७.३७, ५३-५९, १४९-१५२ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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