Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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विमलाभा-विराट
जैन पुराणकोश : ३७७
विमानपंक्तिवेराज्य-एक व्रत । इस व्रत का पारी मार्गशीर्ष सुदी चतुर्थी
के दिन वेला करता है। व्रती को इस व्रत के फलस्वरूप विमानों की
पंक्ति का राज्य प्राप्त होता है । हपु० ३४.१२९ विमुक्तात्मा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१८६ विमुखी-भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी की सैंतालीसवीं
नगरी । मपु० १९.५२-५३ विमुचि-दारू ग्राम का एक ब्राह्मण। इसकी अनुकोशा भार्या तथा
अतिभूति पुत्र था। मुनि होकर इसने धर्मध्यान पूर्वक मरण किया
और यह ब्रह्म स्वर्ग में देव हुआ था । पपु० ३०.११६, १२२-१२५ विमोच-विजया पर्वत की दक्षिणश्रेणी का पन्द्रहवां नगर । मपु०
१९.४३, ५३ वियोग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२५ वियोनिक-भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३२ विरजस्का-विजया पर्वत की दक्षिणणी की इक्कीसवीं नगरी । मपु०
(३) तीर्थकर चन्द्रप्रभ को दीक्षा-शिविका । मपु० ५४.२१५- २१६
(४) विजयाध पर्वत की दक्षिणश्रेणी में शिवमन्दिर नगर के राजा मेघवाहन की रानी । इसकी पुत्री कनकमाला थी। मपु० ६३.११६- ११७
(५) सौधर्म स्वर्ग के इन्द्र की इन्द्राणी। यह स्वर्ग से चयकर साकेत नगर के राजा श्रीषेण की पुत्री हरिषेणा हुई थी। मपु० ७२.२५१
(६) तीर्थकर पार्श्वनाथ की दीक्षा-शिविका । पार्श्वनाथ इसी में बैठकर अश्ववन गये थे । मपु०७३.१२७-१२८ ।
(७) राजपुर नगर के सेठ सागरदत्त और सेठानी कमला की पुत्री। निमित्तज्ञानी के कहे अनुसार इसका विवाह जीवन्धर-कुमार के साथ हआ था। जीवन्धर के दीक्षा ले लेने पर इसने भी चन्दना-आयिका से संयम धारण कर लिया था । मपु०७५.५८४-५८७, ६७९-६८४
(८) राजपुर नगर के ही सेठ कुमारदत्त की स्त्री। यह गुणमाला की जननी थी । मपु० ७५.३५१ दे० गुणमाला ।
(९) नभस्तिलक नगर के राजा चन्द्रकुण्डल की रानी । यह मार्तण्ड- कुण्डल की जननी थी । पपु० ६.३८४-३८५
(१०) सिद्धार्थनगर के राजा क्षेमंकर की महारानी । देशभूषण और कुलभूषण इसके पुत्र थे । पपु० ३९.१५८-१५९ विमलाभा-लंका के राजा महारक्ष विद्याधर की रानी । अमररक्ष,
उदधिरक्ष और भानुरक्ष ये तीनों इसके पुत्र थे। पपु० ५.२४३-
२४४ विमान-(१) तीर्थकर के गर्भावतरण के समय उनकी माता द्वारा देखे गये सोलह स्वप्नों में तेरहवां स्वप्न । पपु० २१.१२-१५ ।।
(२) देवों के प्रासाद । इनके तीन भेद होते हैं। वे हैं-इन्द्रक विमान, श्रेणीबद्ध विमान और प्रकीर्णक विमान । हपु० ६.४२-४३, ६६-६७, ७७, १०१
(३) आकाशगामी वाहन । इसका उपयोग देव और विद्याधर करते हैं । मपु० १३.२१४ विमानपंक्ति-एक व्रत । इसमें वेसठ इन्द्रक विमानों की चारों दिशाओं
में विद्यमान श्रेणीबद्ध विमानों की अपेक्षा चार उपवास और चार पारणाएं तथा प्रत्येक इन्द्रक की अपेक्षा एक बेला और एक पारणा करने के पश्चात् एक तेला किया जाता है । इस प्रकार प्रत्येक इन्द्रक
विरजा-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११२
(२) विदेह के नलिन देश की राजधानी । मपु० ६३.२०८-२१६, हपु० ५.२६१-२६२ विरत-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२४ विरति-चित्त को कलुषित करनेवाले राग आदि के नष्ट होने से उत्पन्न
निस्पृहता । मपु० २४.६३ विरलवेगिका-एक विद्या । अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने अनेक विद्याओं __ में यह विद्या भी सिद्ध की थी। मपु० ६२.३९६ विरस-(१) अवसर्पिणी काल के अन्त में सरस मेषों के बरसने के बाद सात दिन तक वर्षा करनेवाले मेघ । मपु० ७६.४५२-४५३ ।।
(२) एक नृप । यह भरतेश के साथ दीक्षित होकर अन्त में परम पद को प्राप्त हुआ था। पपु०८८.१-४ विराग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१२४ विरागविचय-धर्मध्यान का छठा भेद । शरीर अपवित्र है और भोग
किंपाक फल के समान मनोहर है अत: इनसे विरक्त रहना ही बयस्कर है ऐसा चिन्तन करना विरागविचय धर्मध्यान है। हपु.
इन्द्रक का एक बेला करने से प्रेसठ वेला और अन्त में एक तेला किया जाने का विधान होने से कुल तीन सौ सोलह उपवास और इतनी हो पारणाएं की जाती हैं। यह व्रत पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा के क्रम से होता है । चारों दिशाओं के चार उपवास के पश्चात् वेला किया जाता है और वेसठ वेला करने के बाद एक तेला करने का विधान है। ऐसा व्रती विमानों का स्वामी होता है। पु० ३४.८६-८७
विराजी-राजा धृतराष्ट्र और रानी गान्धारी का छियासीवां पुत्र । पापु०
८.२०३ विराट-(१) एक देश । महावीर यहाँ विहार करते हुए आये थे ।पापु० १.१३४, १७.२४६
(२) एक नगर । राजा विराट यहाँ के राजा थे। मपु० ७२. २१६, हपु० ४६.२३, पापु० १७.२३०
(३) विराट नगर का राजा । पाण्डव छद्मवेश में इसी राणा के पास उनके सेवक बनकर बारह मास पर्यन्त रहे थे। इसका गोकुल
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