Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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रुक्मी- रुचकवर
इसे हर लाये थे। उन्होंने गिरिनार पर्वत पर इसे विवाहा और अपनी पटरानी बनाया था । प्रद्युम्न इसका पुत्र था । वैर वश धूमकेतु ज्योतिषी देव जन्मते ही प्रद्युम्न को उठा ले गया था। उसने उसे खदिरसार अटवी में तक्षशिला के नीचे दबाया था। पुत्र-वियोग से यह दु:खी हुई । नारद से ज्ञातकर कृष्ण ने इसे इसका पुत्र पुण्डरीकिणी में बताया था तथा यह भी कहा था कि वह अपने पुत्र से सोलह वर्ष बाद मिल सकेगी । भविष्यवाणी के अनुसार नियत समय पर इसकी से भेंट हुई। कृष्ण के द्वारा अनुमति दिये जाने पर अन्त में यह पुत्र कृष्ण की सभी पटरानियों और पुत्रवधुओं के साथ दीक्षित हो गयी थी । मपु० ७१.३५५-३५८, ७२.४७-५३, ६८-७२, १४९-१५३, ० २०,२२८, ० ४२.१३-३४, ४२.३९-४८, ८९-९६ ६१. ३७-४०, पापु० १२.३-१५
रुक्मी - (१) जम्बूद्वीप का पाँचवाँ कुलाचल । इस पर्वत के आठ कूट हैं - सिद्धायतनकूट, रुक्मिकूट, रम्यककूट, नारीकूट, बुद्धिकूट, रूप्यकूट, हैरण्यवत्कूट और मणिकांचनकूट । मपु० ६३.१९३, पपु० १०५. १५७-१५८, ०५.१५, १०२-१०४
(२) यादवों का पक्षधर एक महारथी राजा । यह कुण्डिनपुर के राजा भीष्म और रानी श्रीमती का पुत्र था । रुक्मिणी इसकी बहिन थी । कृष्ण के द्वारा अपनी बहिन का हरण किये जाने पर इसने कृष्ण और बलदेव का सामना किया था। इस समय शिशुपाल इसके साथ था । इसकी सेना में साठ हजार रथ, दस हजार हाथी, तीन लाख घोड़े और कई लाख पैदल सैनिक थे। इसको बहिन ने युद्ध में कृष्ण से इसकी रक्षा करने को कहा था। बलदेव ने इससे युद्ध किया था । उन्होंने इसे इतना आहत किया था कि इसके प्राण ही शेष रह गये थे । पाण्डवपुराण के अनुसार कृष्ण ने इसे नागपाश से बांधकर रथ
के नीचे डाल दिया था । हपु० ४२.३३-३४, ७८ ९६, ५०.७८, पापु० १२.९, १२
दचक - (१) सौधर्म और ऐशान स्वर्गों का पन्द्रहवाँ पटल । हपु० ६.४५ दे० सौधर्म
(२) कापिष्ठ स्वर्ग का एक विमान । मपु० ५९.२३७-२३८
(३) रुचकवर पर्वत के दक्षिण दिशावर्ती आठ कूटों में पाँचवाँ कूट । यहाँ दिक्कुमारी लक्ष्मीमती देवी रहती है । हपु० ५.७०९ दे०
रुचकवर
(४) रुचकवर पर्वत के उत्तर दिशावर्ती आठ कूटों में सातवाँ कूट। यहाँ श्रीनिकुमारी देवी रहती है। पु० ५.०१६ ३० वर (५) रुचकवर पर्वत की दक्षिणपूर्व-आग्नेय विदिशा में स्थित एक कूट । यहाँ दिक्कुमारी रुचकोज्ज्वला देवी रहती है । पु० ५.७२२ दे० रुचकवर
रुचकप्रभा —- रुचकवर पर्वत की वायव्य दिशा में विद्यमान रुचकोत्तम कूट पर रहनेवाली दिक्कुमारी देवी । हपु० ५.७२३ दे० रुचकवर रुचकवर - (१) मध्यलोक का तेरहवाँ द्वीप एवं सागर । हपु० ५.६१९ (२) इस नाम के द्वीप के मध्य स्थित वलयाकार एक पर्वत । यह ४२
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जैन पुराणको ३२९
एक हजार योजन गहरा, चौरासी हजार योजन ऊँचा और बयालीस हज़ार योजन चौड़ा है। इसके शिखर पर चारों दिशाओं में एक हज़ार योजन चौड़े और पाँच सौ योजन ऊँचे चार कूट हैं । इनमें पूर्व दिशा में नन्द्यावर्त दक्षिण में स्वस्तिक, पश्चिम में श्रीवृदा और उत्तर में वर्धमानक कूट है । इन कूटों पर क्रमशः पद्मोत्तर, स्वहस्ती, नीलक और अंजनगिरि नाम के देव रहते हैं। ये चारों देव दिग्गजेन्द्र कहलाते हैं । इसके पूर्व में आठ कूट हैं जिनके नाम एवं वहाँ की देवियाँ ये हैं
पूर्व में विद्यमान आठ कूट एवं देवियाँ
कूट का नाम
१. वैडूर्य
२. कांचन
३. कनक
४. अरिष्ट
५. दिवनन्दन
६. स्वस्तिकनन्द
५. रुचक ६. चकोत्तर
देवी का नाम
विजया
वैजयन्ती
जयन्ती अपराजिता
७. अंजन
८. अंजनमूलक दक्षिण में विद्यमान आठ कूट एवं देवियाँ १. अमो
स्वस्थता
सुप्रि
२. सुप्रबुद्ध ३. मन्दरकूट
सुप्रबुद्धा
४. विमल
यशोधरा
नन्दा नन्दोत्तरा
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आनन्दा
नान्दीवर्धना
लक्ष्मीमती
कीर्तिमती
७. चन्द्र
८. सुप्रतिष्ठ पश्चिम में विद्यमान आठ कूट एवं देवियाँ १. लोहिताख्य
२. जगत्कुसुम ३. नलिन
४. पद्मकूट
वसुन्धरा
चित्रा
इला
सुरा
पृथिवी
पद्मावती
कांचना
नवमिका
५. कुमुद
६. सौमनस
७. यशः कूट
शीता
८. भद्रकूट भद्रिका उत्तर में विद्यमान आठ कूट एवं देवियां १. स्फटिक
२. अंक
३. अंजनक
लम्बुसा मिश्रकेशी
पुरीकिजी
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