Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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मा.
शान मदिर श्री जावीर जन आराधना कन्द्रकोपराणकोश : ३३५
लक्ष्मी-लतांग
तप के प्रभाव से तीसरे स्वर्ग की इन्द्राणी हुई और इसके पश्चात् स्वर्ग से चयकर यह राजा शम्बर की पुत्री हुई। मपु० ७१.११७, १२६१२७, ४००-४१०, हपु० ४४.२०-२५, ६०.८५
२. सन्ध्याकार नगर के राजा सिंहघोष की रानी और हिडिम्बा की जननी । पापु० २६.२९ ।
(३) भरतक्षेत्र में चन्द्रपुर के राजा महासेन की रानी । यह तीर्थकर चन्द्रप्रभा की जननी थी। मपु० ५४.१६३-१६४, १७०-१७३, पपु० २०.४४
(४) मगध देश में राजगृहनगर के राजा विश्वभूति के छोटे भाई विशाखभूति की रानी । यह विशाख नन्द की जननी थी। मपु० ५७.
७३, ७४.८८, वीवच० ३.६.९ लक्ष्मी-(१) छः जिनमातृक देवियों में एक दिक्कुमारी देवी। इसकी
आयु एक पल्य को होती है । गर्भावस्था में जिनमाता की सेवा करती है । महापुराण में यही देवी व्यन्तरेन्द्र की वल्लभा और पुण्डरीक हृदयवासिनी एक व्यन्तर देवी भी कही गयी है। मपु० १२.१६३१६४, ३८.२२६, ६३.२०० पपु० ३.११२-११३, हपु० ५.१३०१३१, वीवच० ७.१०५-१०८
(२) कुशाग्रपुर के राजा शिवाकर की रानी। यह छठे नारायण पुण्डरीक की जननी थी । पपु० २०.२२१-२२६
(३) रत्नपुर के राजा विद्यांग की रानी । यह विद्यासमुद्घात की जननी थी । पपु० ६.३९०
(४) अंजना के जीव कनकोदरी की सौत । पपु० १७.१६६-१६७
(५) रावण और लक्ष्मण की आगामी भव की जननी । पपु० १२३.११२-११९
(६) रावण की रानी । पपु० ७७.१४
(७) अक्षपुर के राजा हरिध्वज की रानी। यह राजा अरिदम की जननो थी । पपु० ७७.५७
(८) दशरथ की पुत्रवधू और भरत की भाभी। पपु० ८३.९४
(९) राजा वनजंघ की रानी । शशिचूला इसकी पुत्री थी । पपु० १०१.२ लक्ष्मीकूट-(१) विजयाध की दक्षिणश्रेणी में स्थित पैतीसवीं नगरी। हपु० २२.९७
(२) शिखरिन् कुलाचल का छठा कूट। हपु० ५.१०६ लक्ष्मीग्राम-जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगधदेश का एक ग्राम | कृष्ण की
पटरानी रुक्मिणी अपने एक पूर्वभव में यहाँ सोम ब्राह्मण को स्त्री
लक्ष्मीमति थी। मपु० ७१.३१७-३४१, हपु० ६०.२६ लक्ष्मीतिलक-एक मुनि । ये भरतक्षेत्र के विजयाध पर्वत पर स्थित
अरुणनगर के राजा सिंहवाहन के दीक्षागुरु थे। पपु० १७.१५४१५८ लक्ष्मीधर-विद्याधरों का एक नगर । लक्ष्मण ने इसे अपने अधीन किया
था। पपु० ९४.५ लक्ष्मीपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०७
लक्ष्मीमति-(१) राजा युधिष्ठिर की रानी। पापु० १६.६२ दे०लक्ष्मीमती--४
(२) कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी के पूर्वभव का जीव । यह ब्राह्मण सोमदेव की पत्नी थी। मपु० ७१.३१७-३१९ दे० लक्ष्मीग्राम लक्ष्मीमती-(१) हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ की रानी । यह जयकुमार को जननी थी। मपु० ४३.७८-७९, हपु० ९.१७९
(२) हस्तिनापुर के चक्रवर्ती महापद्म की रानो । चक्रवर्ती ने इसी रानी के ज्येष्ठ पुत्र पद्म को राज्य देकर छोटे पुत्र विष्णुकुमार के साथ दीक्षा ली थी। हपु० २०.१२-१४
(३) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में मगधदेश के लक्ष्मीग्रामवासी ब्राह्मण सोमदेव की स्त्री। मुनि की निन्दा के फलस्वरूप यह मुनिनिन्दा के सातवें दिन हो उदुम्बर कुष्ठ से पीड़ित हो गयी थी । शरीर से दुर्गन्ध आने लगी थी। अनेक पर्यायों में भटकने के पश्चात् यही कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी हुई। इसका अपर नाम लक्ष्मीमति था। मपु० ७१.३१७-३४१, हपु० ६०.२६-३१
(४) पाण्डव-युधिष्ठिर की रानी। इसका अपर नाम लक्ष्मीमति था । हपु० ४७.१८, पापु० १६.६२
(५) रुचकगिरि की दक्षिण दिशा में स्थित रुचककट की रहनेवाली एक देवी । हपु० ५.७०९ दे० रुचकवर
(६) जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में रत्नसंचयनगर के राजा क्षेमकर के पुत्र वायुध की रानी। यह सहस्रायुध की जननी थी। मपु० ६३.३७-३९, ४४-४५
(७) भरतक्षेत्र में चक्रपुर नगर के राजा वरसेन की रानी । यह नारायण पुण्डरीक की जननी थी । मपु० ६५.१७४-१७७
(८) विदेहक्षेत्र में पुण्डरीकिणी नगरी के राजा वज्रदन्त की रानी । श्रीमती इसी की पुत्री थी। मपु० ६.५८-६०
(९) वाराणसी नगरी के राजा अकम्पन और रानी सुप्रभादेवी की दूसरी पुत्री । इसका अपर नाम अक्षमाला था जो अर्ककीर्ति को दी गयी
थी। मपु० ४३.१२४, १२७, १३१, १३६, ४५.२१, २९ लक्ष्मीवती हस्तिनापुर के राजा सोमप्रभ की रानी। मपु० ४३.७८-७९
दे. लक्ष्मीमती-१ लक्ष्मोवान्-सोधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१८२ लघिमा-(१) एक विद्या। यह दशानन को प्राप्त थी। पपु० ७.३२६३३२
(२) अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशत्व और वशित्व इन आठ सिद्धियों में चौथी सिद्धि । भरतेश को ये आठों सिद्धियाँ प्राप्त थीं। मपु० ३८.१९३ लघुकरी-एक विद्या। अर्ककीर्ति के पुत्र अमिततेज ने इसे सिद्ध किया
था। मपु० ६२.३९७ लतांग-चौरासी लाख ऊह प्रमित काल । महापुराण के अनुसार यह हुहू
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