Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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पद्मक- पद्मनाभ
भी ली किन्तु सोकापवाद नहीं रुका और इन्हें सीता का परित्याग करना राजोचित प्रतीत हुआ । कृतान्तवक्त्र को आदेश देकर इन्होंने गर्भवती होते हुए भी सीता को वन में भिजवा दिया । इनके वन में दो पुत्र हुए अनंगलवण और लवणांकुश | इनसे इन्हें युद्ध भी करना पड़ा । पपु० ९६.२९-५१, ९७.५०-१४०, १०२.१७७-१८२, १०५. ५७-५८ लक्ष्मण के प्रति उनके हृदय में कितना अनुराग है यह जानने के लिए स्वर्ग के दो देव आये। उन्होंने विक्रियाऋद्धि से लक्ष्मण को निष्प्राण कर दिया । लक्ष्मण के मर जाने पर भी ये लक्ष्मण की मृत देह को छः मास तक साथ-साथ लिये रहे । जटायु और कृतान्तवक्त्र
के जीव देव हो गये थे । वे आये और उन्होंने इनको समझाया तब इन्होंने लक्ष्मण का अन्तिम संस्कार किया था। पपु० ११८. २९-३०, ४०-११३ अन्त में संसार से विरक्त होकर इन्होंने अनंगलवण को राज्य दिया और स्वयं सुव्रत नामक मुनि के पास दीक्षित हो गये । इनका दीक्षा का नाम पद्ममुनि था। इनके साथ कुछ अधिक सोलह हजार राजा मुनि और सत्ताईस हजार स्त्रियाँ आर्यिका हुई थीं । इन्हें माघ शुक्ल द्वादशी की रात्रि के पिछले प्रहर में केवलज्ञान हुआ था। सीता के जीव स्वयंप्रभ देव ने इनकी पूजा कर क्षमा-याचना की। अन्त में ये सिद्ध हुए । पपु० ११९.१२-३३, ४१-४७, ५४, १२२.६६-७३, १२३. १४४-१४७
पद्मक – (१) जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र का एक नगर । पपु० ५.११४
(२) वसुदेव तथा उनकी रानी पद्मावती का पुत्र, पद्म का अनुज । हपु० ४८.५८
(३) पुष्करार्ध द्वीप के पश्चिम विदेह का एक देश म
४७. १८०
यमक कूट लभ पर्वतस्य नौ कूटों में चतुर्थ कूट ५.२२२-२२३
पद्मकावतो
विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी और निषेध पर्वत के मध्य का एक देश । हपु० ५. २४९
पद्मकूट - (१) विदेहक्षेत्र के सोलह वक्षारागिरियों में पूर्व विदेहस्य वक्षारगिरि । मपु० ६३.२०२, हपु० ५.२२८
(२) रुचकवर पर्वत की पश्चिम दिशा में स्थित आठ कूटों में चतुर्थं कूट। यह पद्मावती देवी की निवास-भूमि है । पु० ५.७१२-७१४
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पद्मखण्डपुर – जम्बूद्वीप संबंधी भरतक्षेत्र में स्थित नगर । यहाँ सुदत्त सेठ रहता था । मपु० ५९.१४६-१४८ हपु० २७.४४
पद्मगर्भ - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०२५.१८१ पद्मगुल्म — पुष्करवर द्वीप के विदेह क्षेत्र में स्थित वत्स देश की सुसीमा नगरी के राजा । ये उपाय, सहाय साधन, देशविभाग, कालविभाग और विनिपात - प्रतीकार इन पाँचों राज्यांगों में संधि और विग्रह के रहस्यों को जानते थे । न्यायमार्ग पर चलने से इनके राज्य तथा प्रजा दोनों की समृद्धि बढ़ी। आयु के चतुर्थ भाग के शेष रहने पर वसन्त की शोभा को विलीन होते देखकर ये वैराग्य को प्राप्त हुए। इन्होंने
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जैन पुराणको २११
अपने पुत्र चन्दन को राज्य सौंपकर आनन्द मुनि से दीक्षा ली और विपाकसूत्र पर्यन्त समस्त अंगों का अध्ययन किया। चिरकाल तक तपश्चरण करने के पश्चात् इन्होंने तीर्थकर प्रकृति का बन्ध किया और ये पन्द्रहवें स्वर्ग आरण में इन्द्र हुए। इस स्वर्ग से च्युत होकर यही राजा दृद्रय और रानी सुनन्दा के पुत्र के रूप में दसवें तोर शीतलनाथ हुए । मपु० ५६.२-५८, हपु० ६०.१५३ पद्मचरित पद्मपुराण यह वद्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष जाने के एक हजार दो सौ तीन वर्ष छः माह पश्चात् ई० ६७७ में रविषेणाचार्य द्वारा पद्ममुनि (बलभद्रराम) के चरित्र को विषय वस्तु बनाकर रचा गया था । पपु० १२३.१६८, १८२ पद्मदेव (१) कुरुवंशी महापद्म चक्रवर्ती का पुत्र विष्णु और पद्म के
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बाद यह राजा हुआ था । हपु० ४५. २४-२५
(२) कुण्डल पर्वतस्थ रजतकूट का स्वामी देव । हपु० ५.६९१ पद्मदेवी — भरतक्षेत्र के मगधदेश में स्थित शाल्मलि ग्रामवासी जयदेव और देविला की पुत्री । अज्ञात फल का भक्षण न करने से इसके उत्तर जन्म सुधरते गये। आर्या, स्वयंप्रभा, विमलश्री, इन्द्र की प्रधाम देवी पद्मावती और देव होकर यह संसार से मुक्त हुई। ०६०.
१०९-१२२
पद्मध्वज - ( १ ) समवसरण से संबंधित कमलांकित ध्वज्राएँ । मपु० २२.२२५
(२) भविष्यत् कालीन चौदहवें कुलकर । मपु० ७६.४६६. हपु० ६०.५५७
पद्मनाभ पूर्व पातकीखण्ड में मंगावती देश के रत्नसंजय नगर के
राजा कनकप्रभ के पुत्र । इनकी सोमप्रभ आदि अनेक रानियाँ तथा सुवर्णनाभ आदि अनेक पुत्र थे । अन्त में इन्होंने पुत्र सुवर्णनाभ को राज्य देकर दीक्षा ले ली तथा सिंहनिक्रीडित तप तपकर सम्यक् आराधना करते हुए समाधि पूर्वक शरीर त्यागा । ये वैजयन्त विमान में तैंतीस सागर की आयु के धारक अहमिन्द्र हुए। इस स्वर्ग से व्युत होकर ये तीर्थंकर चन्द्रप्रभ हुए। मपु० ५४.१३०-१७३
(२) तीर्थंकर मुनिसुव्रत के तीर्थ में उत्पन्न भोगपुर नगर का इक्ष्वाकुवंशी राजा । यह चक्रवर्ती हरिषेण का पिता था। मपु० ६७.. ६१-६४
(३) भावी तीर्थंकर राजा पद्मसेन का पुत्र । मपु० ५९.८ (४) काशी देश की वाराणसी नगरी का राजा। यह तीर्थङ्कर मल्लिनाथ के तीर्थंकाल में हुए चक्रवर्ती पद्म का पिता था । मपु० ६६.६७, ७६-७९
(५) दशरथ पुत्र राम का अपरनाम । पपु० ५८.२४, ८१. - ५४, ६३
(६) पूर्वघातकीखण्ड के भरतक्षेत्र को अमरकंकापुरी का राजा। हपु० ५४.८, पापु० २१.२८-२९ पदमनाभि सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम मपु० २५.१३३
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