Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
View full book text
________________
महेन्द्रमहित-माणव
जैन पुराणकोश : २९३
महेन्द्रमहित-सौधर्मेन्द्र द्वारा वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४८ महेन्द्रबन्ध-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१७० महेन्द्रविक्रम-(१) एक राजा । यह आदित्यवंशी राजा उदितपराक्रम का पुत्र और सूर्य का जनक था । पपु० ५.७, हपु० १३.१०
(२) विजयाध की दक्षिणश्रेणी के शिवमन्दिर नगर का राजा । इसके पुत्र का नाम अमितगति था। हपु० २१.२२
(३) विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी के कांचनतिलक नगर का राजा। इसकी रानी नीलवेगा और पुत्र अजितसेन था। मपु० ६३.१०५-१०६
(४) नित्यालोकनगर का राजा विद्याधर। इसका विवाह गगनवल्लभ नगर के राजा विद्य द्वेग की पुत्री सुरूपा से हुआ था। इसने सुमेरू पर्वत के चैत्यालयों की वन्दना कर वहाँ चारणमुनि से दीक्षा ले ली थी। इसकी पत्नी ने भो सुभद्रा आयिका के पास संयम धारण
कर लिया था । मपु० ७१.४१९-४२३ महेन्द्रसेन–(१) वानरवंशी एक राजा। इसका पुत्र प्रसन्नकीर्ति रावण का पक्षधर था । पपु० १२.२०५-२०६
(२) एक मुनि । अयोध्या का सेठ समुद्रदत्त और उसके दोनों पुत्र पूर्णभद्र इन्हीं से धर्म श्रवण कर दीक्षित हुए थे। हपु० ४३.१५० महेन्द्रोद्रय-अयोध्या का एक उद्यान । लक्ष्मण के आठों पुत्र इसो उद्यान
में दीक्षित हुए थे । पपु० २९.८५-९३, ११०.९२ महेशिता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०२५.१६२ महेश्वर-भरतेश एवं सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२४.३० ,२५.१५५ महोत्साह-महेन्द्रनगर के राजा महेन्द्र का सामन्त । इसने अंजना को निर्दोष बताकर उसे शरण देने की राजा से याचना की थी किन्तु इसकी इस याचना का राजा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था। पपु०
१७.४०-५० महोवषि-किष्कुनगर का वानरवंशी विद्याधरों का स्वामी एक नप ।
इसकी रानी विद्युत्प्रकाशा तथा उससे उत्पन्न इसके एक सौ आठ पुत्र थे। राक्षसवंश के शिरोमणि विद्युत्केश के दीक्षित होते ही प्रतिचन्द्र पुत्र को राज्य देकर इसने भी दीक्षा धारण की थी और अन्त में तपश्चरण कर मोक्ष प्राप्त किया था । पपु० ६.२१८-२२५, ३४९-२५१ महोदधिकुमार-एक भवनवासी देव । पूर्वभव में यह एक वानर था। वानर-योनि में इसने राक्षसवंशी राजा विद्य त्केश की पत्नी श्रीचन्द्रा के स्तन विदीर्ण किये थे। इस अपराध के फलस्वरूप विद्युत्केश के वाणों से आहत होकर यह एक मुनि के निकट पहुँचा था । मुनि ने दयाद्र होकर इसे सब पदार्थों का त्याग कराकर पंच नमस्कार मंत्र का उपदेश दिया था। मंत्र के प्रभाव से वह वानर मरकर इस नाम का देव हुआ । पपु० ६.२३६-२४२ महोदय-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१५१, १५३
(२) समवसरण का एक मण्डप । यह एक हजार स्तम्भों पर आश्रित रहता है । इसमें श्रुतदेवी निवास करती है । हपु० ५७.८६ महोवर-(१) राजा धृतराष्ट्र तथा रानी गान्धारी का अड़तालीसवाँ पुत्र । पापु०८.१९८
(२) खरदूषण का मित्र एक विद्याधर । यह कुम्भपुर नगर का एक नृप था। इसकी सुरूपाक्षी रानी से तडिन्माला पुत्री हुई थी,
जो भानुकर्ण से विवाही गयी थी। पपु० ८.१४२-१४३, ४५.८६ ।। महोवर्क-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५१ महोपाय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५७ महोमय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५७ महोबार्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५९ मा-भरत एवं सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२४.४४, २५.१५७ मा-कुलकरों के समय में व्यवहृत हा-मा और धिक् इन तीन प्रकार के दण्डों में दूसरे प्रकार का दण्ड-खेद है जो तुमने अपराध किया है आगे नहीं करना । छठे से दसवें कुलकर तक अपराधी को यही दण्ड दिया जाता था। मपु० ३.२१५ माकन्दी-भरतक्षेत्र की एक नगरी । यह राजा द्रुपद की राजधानी थी।
वनवास के समय पाण्डव यहाँ आये थे । हपु० ४५.११९-१२१ माकोट-रावण का पक्षधर एक नृप । रथनपुर के राजा इन्द्र विद्याधर ___ को जीतने के लिए यह रावण के साथ गया था। पपु०१०.३६-३७
माक्षिकलक्षिता-राजा जाम्बव को प्राप्त एक विद्या। शत्र का वध ___ करने के लिए इसका प्रयोग होता था । मपु० ७१.३६६-३७२ मागव-(१) पूर्व लवणसमुद्र का वासी एक देव । भरतेश ने दिग्विजय
के समय इसे अपने आधीन कर इससे भेंट स्वरूप हार, मुकुट, कुण्डल, रत्न, वस्त्र तथा तीर्थोदक प्राप्त किया था। इसी देव को लक्ष्मण ने वाण-कौशल से अपने अधीन किया था तथा उससे भेंट प्राप्त की थीं। मपु० २७.११९-१२२, १२८, १६५, ६८.६४७-६५०, हपु० ११.५-११
(२) भरतक्षेत्र का एक देश । यहाँ के राजा को चक्री भरतेश ने अपने आधीन किया था। मपु० २९.३९, हपु० १८.१२७
(३) वनजंघ का एक सहयोगी । पपु० १०२.१५४-१५७ मागधंशपुर-भरतक्षेत्र का एक नगर । राजा बृहद्रथ की यह निवास
भूमि था । हपु० १८.१७ माधवी-महातमःप्रभा नामक सातवीं नरकभूमि का नाम । हपु०
४.४५-४६ माणव-(१) चक्रवर्ती की नौ निधियों में एक निधि । इससे नीतिशास्त्र
के ज्ञान से अतिरिक्त अनेक प्रकार के कवच, ढाल, तलवार, बाण, शक्ति, धनुष और चक्र आदि आयुध उत्पन्न होते थे । मपु० ३७.७३, ८०. हपु० ११.११०-१११, ११७
(२) कण्ठ का आभूषण-बीस लड़ियों वाला हार । मपु० १६.६१
(३) भरतेश के छोटे भाइयों द्वारा त्यक्त देशों में भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक देश । हपु० ११.६९
Jain Education International
International
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org