Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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यमुनादेव-यशोधर यमुनादेव-मथुरा के राजा चन्द्रप्रभ का छोटा साला । सूर्यदेव और
सागरदेव इसके बड़े भाई थे । पपु० ९१.१९-२० ययाति-विनीता नगरी का राजा । इसकी रानी का नाम सुरकान्ता और
पुत्र का नाम वसु था। अन्त में यह अपने पुत्र को राज्य देकर श्रमण
गया था। पपु०११.११-१४, १७-२६, ३४ यव-क्षेत्र सम्बन्धी आठ यूका प्रमित एक प्रमाण । हपु० ७.४० यवन-(१) भरतेश के छोटे भाइयों द्वारा छोड़े गये देशों में भरतक्षेत्र
के उत्तर आर्यखण्ड का एक देश । इस पर भरतेश का स्वामित्व हो था । मपु० १६.१५५, पपु० १०१.८१, हपु० ३.५, ११.६६
(२) यादवों का पक्षधर एक अर्धरथी नृप । हपु० ५०.८४ यवु-हरिवंशी राजा भानु का पुत्र और सुभानु का पिता । हपु० १८.३ यशःकूट-रुचकगिरि की पश्चिम दिशा का एक कूट । हपु० ५.७१४ यशपाल-(१) ग्यारह अंग के ज्ञाता एक आचार्य । हपु० १.६४
(२) विजयाध पर्वत के राजपुर नगर के राजा धरणीकम्प की पुत्री सुखावली का पुत्र । यह जिनेन्द्र गुणपाल के पास दीक्षित हो गया था
मपु० ४७.७३-७४, १८८ यशःसमुद्र-एक निर्ग्रन्थ-आचार्य । मथुरा के राजा चन्द्रप्रभ का पुत्र
अचल इन्हीं आचार्य से दीक्षित हुआ था। पपु० ९१.१९-२१, २३.
३९-४१ यशस्कान्तमानुषोत्तर पर्वत की पूर्व दिशा के अश्मगर्भकट का निवासी
एक देव । हपु० ५.६०२ यशस्वती-(१) तीर्थङ्कर वृषभदेव की प्रथम रानी । यह राजा कच्छ की
बहिन थी। भरत आदि इसके सौ पुत्र तथा ब्राह्मी एक पुत्री थी। मपु० १५.७०, १६.४-५
(२) पुण्डरीकिणी नगरी के राजा धनंजय की दूसरी रानी । यह नारायण अतिबल को जननी थी। मपु० ७.८१-८२ ।।
(३) हस्तिनापुर के राजा विश्वसेन की दूसरी रानी । यह चक्रायुद्ध की जननी थी । मपु० ६३.३८२-३८३, ४१४
(४) जम्बद्वीप में स्थित पुन्नागपुर के राजा हेमाभ की रानी। मपु०७१.४२९-४३०
(५) एक आर्यिका । राजा चेटक की पुत्री ज्येष्ठा ने इन्हीं से दीक्षा ली थी। मपु० ७५.३१-३३ यशस्वान्-(१) मानुषोत्तर पर्वत को पूर्व दिशा के वैडूर्य कूट का निवासी एक देव । हपु० ५.६०२
(२) चक्षुष्मान के पुत्र । ये वर्तमानकालीन नौवें मनु थे। इनकी आयु कुमुद प्रमाण वर्ष और शरीर की ऊँचाई छ: सौ पचास धनुष थी। इनके समय में प्रजा अपनी सन्तान का मुख देखने के साथ-साथ उन्हें आशीर्वाद देकर तथा क्षणभर ठहर कर मृत्यु को प्राप्त होती थी। आशीर्वाद देने की क्रिया उनके उपदेश से आरम्भ हुई थी। इन्होंने प्रजा को पुत्र का नाम रखना भी सिखाया था । प्रजा ने प्रसन्न होकर इनका यशोगान किया था। मपु० ३.१२५-१२८, पपु० ३.८६, हपु० ७.१६०, पापु० २.१०६
४०
जैन पुराणकोश : ३१३ यशस्विनी-(१) कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पूर्वभव का जीव ।
जम्बूद्वीप के पुष्कलावती देश की वीतशोका नगरी के देविल वैश्य और उसकी पत्नी देवमती की पुत्री। इसका विवाह सुमित्र के साथ हुआ था। पति के मर जाने पर दुःखपूर्वक मरण करके यह नन्दनवन में मेरुनन्दना व्यन्तरी हुई थी। हपु० ६०.४२-४६ ।।
(२) भरतक्षेत्र में इभ्यपुर नगर के सेठ धनदेव की स्त्री। अपने पूर्वभवों का स्मरण करके इसने सुभद्र मुनि से प्रोषधव्रत लिया था। अन्त में यह मरकर प्रथम स्वर्ग के इन्द्र की इन्द्राणी हुई। हपु० ६०.९५-१०० यशोग्रीव-वसुदेव का श्वसुर । चारुदत्त की पुत्री गन्धर्वसेना को विवाहने
के पश्चात् उपाध्याय सुग्रीव और इसने अपनी-अपनी पुत्रियों का विवाह वसुदेव के साथ किया था । हपु० १९.२६६-२६९ यशोबया-राजा जितशत्रु की रानी । यह कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ की
छोटी बहिन तथा तीर्थकर महावीर की बुआ थी। यह अपनी पुत्री यशोदा का विवाह महावीर के साथ करना चाहती थी किन्तु उनके तपोवन में चले जाने पर इसकी इच्छा पूर्ण नहीं हो सकी थी -
हपु० ६६.६-९, दे० जितशत्रु-३ यशोदा-(१) वृन्दावन के सुनन्द गोप की पत्नी । बलदेव और वसुदेव
ने कृष्ण को शिशु-अवस्था में इसी गोप-दम्पत्ति को उसका पुत्रवत् लालन-पालन करने के लिए सौंपा था। देवकी के पुत्री हुई है यह बताने के लिए सद्यः प्रसूत इसकी पुत्री देवकी को दे दी गयी थी। इसने वात्सल्य भाव से कृष्ण का पालन किया था। हपु० ३५.२७३२, ४५, पापु० ११.५८
(२) राजा जितशत्रु और रानी यशोदया की पुत्री । राजा जितशत्रु इस पुत्री का विवाह अपने साले कुण्डपुर के राजा सिद्धार्थ के पुत्र महावीर के साथ करना चाहता था पर महावीर विरक्त होकर साधु
हो गये थे। हपु० ६६.६-९ यशोधन-यादवों का पक्षधर एक नृप। वसुदेव के द्वारा की गयी गरुड
व्यूह रचना में यह कौरव-वध का निश्चय किये हुए था। हपु०
५०.१२६ यशोधर-(१) एक मासोपवासी मुनि । नागपुर के राजा सुप्रतिष्ठ ने
इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे। मपु० ७०.५१-५२, ५४, ७१. ४३०, हपु० ३४.४४-४५
(२) मध्यम प्रैवेयक का एक इन्द्रक विमान । हपु० ६.५२
(३) मानुषोत्तर पर्वत के सौगन्धिक कूट का एक देव । यह सुपर्णकुमार देवों का स्वामी था। हपु० ५.६०२
(४) भरतक्षेत्र के पृथिवीपुर नगर का राजा। इसकी रानी का नाम जया था। यह सगर चक्रवर्ती के पूर्वभव के जीव जयकीर्तन का पिता एवं दीक्षागुरु था। मपु० ४८.५८-५९, ६७, पपु० ५.१३८१३९, २०.१२७
(५) बलभद्र अपराजित का दीक्षागुरु । मपु० ६३.२६, पापु०
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