Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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भूषा - मृगावती
मूषा – ढलाई के काम आनेवाला साँचा । इसमें ताँबा आदि धातुओं को गरम कर गलाया जाता था । मपु० १०.४३
मुकण्डू - भरतक्षेत्र के हरिवर्ष देश में भोगपुर नगर के हरिवंशीय राजा प्रभंजन की रानी और सिंहकेतु की जननी । मपु० ७०.७४-७५ मृग - जंगली पशु-हरिण । ये लतागृहों और वन के भीतरी प्रदेशों में विचरते हैं । समवसरण में ये पशु भी रहते हैं । मपु० २.११, ९.५४, १९.१५४, पापु० २.२४७
मृगचारी - स्वच्छन्द विहार करनेवाले साधु । मपु० ७६.१९५ मृगचिह्न - एक विद्याधर । यह इन्द्र विद्याधर का भानेज था । इसने इन्द्र विद्यार की ओर से रावण के पक्षधर श्रीमाली से युद्ध किया था और युद्ध में यह उसके द्वारा मारा गया । पपु० १२.२१८-२१९ मृगचूल - राम-लक्ष्मण के भ्रातृ-स्नेह का परीक्षक सौधर्म स्वर्गं का एक देव । यह रत्नचूल देव को साथ लेकर अयोध्या आया था । वहाँ इसने राम के भवन में दिव्य माया से अन्तःपुर की स्त्रियों के रुदन की विक्रिया से आवाज़ की। इससे द्वारपाल, मंत्री और पुरोहितों ने लक्ष्मण को राम की मृत्यु के समाचार कहे । लक्ष्मण राम का मरण जानकर सिंहासन पर बैठे-बैठे ही निष्प्राण हो गया । लक्ष्मण को निर्जीव देखकर यह बहुत व्याकुलित हुआ । लक्ष्मण को जीवित करने में समर्थ न हो सकने पर 'लक्ष्मण की इसी विधि से मृत्यु होनी होगी' ऐसा विचार कर यह देव अपने साथी रत्नचूल के साथ सौधर्म स्वर्ग लौट गया था । पपु० ११५.२-१५ मृग-द्विपमृग जाति के हाथी से भयभीत होकर भागनेवाले हरिणों
के समान भागने में कुशल होते हैं । युद्ध में इनका धीरे-धीरे चलना अशुभ सूचक होता है । मपु० ४४.२०४, २२६
मृगध्वज - भरतक्षेत्र की श्रावस्ती नगरी के राजा जितशत्रु का पुत्र । इसी नगरी के सेठ कामदत्त द्वारा पालित भद्रक भैंसे का एक पैर चक्र से काटने के कारण इसके पिता ने इसे मारने का आदेश दिया था, किन्तु बुद्धिमान् मंत्री ने इसे जीवित छोड़कर मुनिदीक्षा दिला दी थी। बाईसवें दिन इसे केवलज्ञान प्रकट हो गया था । हपु० २८.१७-२८ मुपपतिष्य- भरतक्षेत्र के काम्पियनगर का राजा यह हरिषे चक्रवर्ती का पिता था । इसकी रानी वप्रा थी । पपु० ८.२८१-२८३ मृगया- विनोद - मनोरंजन का साधन शिकार यह हेय और पाप का कारण है। मृग के शिकारी पहले गीत गाकर हरिण को लुभाते हैं और इसके पश्चात् मार डालते हैं । विषय भी शिकारी के समान हैं। वे मनुष्य को पहले विश्वास दिलाते हैं और इसके पश्चात् उनके प्राणों को हर लेते हैं । अतः विषय भी त्याज्य हैं । मपु० ५.१२८, ११.२०२
मृगयु - शिकारी । ये वनों में हरिणों का गीतों में आकृष्ट कर उनका शिकार करते हैं । मपु० ११.२०२
मृगयोषित — शाकाहारी एक जंगली चौपाया मादा जानवर हरिणी । ये मुण्ड में रहती हैं। जंगल में इच्छानुसार जहाँ तहाँ घूमती हैं और कोमल तथा स्वादिष्ट तुम के अंकुरों को चरकर पुष्ट रहती हूँ।
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जैन पुराणकोश : ३०३
संगीत इन्हें प्रिय होता है। शिकारी अपने गीत और वाद्यों से आकृष्ट कर इन्हें मार डालते हैं । मपु० ११.२०२, १९.१५६ मृगग— भूतरमग अटवी में ऐरावत नदी के तटवासी समाली तापस और उसकी स्त्री कनकेशी का पुत्र । यह विद्याधर होने का निदान कर पंचाग्नि तप करते हुए मरा था तथा निदान के कारण विद्युदंष्ट्र विद्यावर हुआ । मपु० ६२.३७९ ३८२, हपु० २७.११९-१२१ मृगभृगिणी - एक तपस्विनी । यह तापस सित की स्त्री और मधु की जननी थी । हपु० ४६.५४
मृगांक - ( १ ) रावण का मंत्री । इसने राम-लक्ष्मण को क्रमशः सिंहवाहिनी और गरुड़वाहिनी विद्याओं की प्राप्ति की सूचना रावण को देते हुए उसे सीता छोड़कर धर्मबुद्धि धारण करने के लिए समझाया था । पपु० ६६.२-८
(२) आदित्यवंशी राजा गरुडांक का पुत्र । पपु० ५.८, हपु० १३.११
(३) जम्बूद्वीप का एक नगर । यह सिंहचन्द्र की जन्मभूमि थी । पपु० १७.१५०
(४) पौधे भद्र सुप्रभ के दीक्षागुरु
० २०.२४६
मृगायण - (१) कोशल देश के वृद्धग्राम का एक ब्राह्मण । इसकी स्त्री मधुरा तथा पुत्री वारुणी थी । यह आयु के अन्त में मरकर साकेत नगर के राजा दिव्यबल और उनकी रानी सुमति के हिरण्यवती पुत्री हुआ था । मपु० ५९.२०७-२०९, हपु० २७.६१-६३
(२) सिन्धु नदी का तटवासी एक तापस। इसकी विशाला पत्नी और उससे उत्पन्न गौतम पुत्र था । मपु० ७०. १४२ मृगारिवमन - ( १ ) राक्षसवंशी एक विद्याधर । यह लंका का राजा था। पपु० ५.३९४
(२) मेघपुर नगर के राजा मेरु विद्याधर और रानी मधोनी का पुत्र । इसने किष्किन्प की पुत्री सूर्यकमला को विवाह कर लौटते समय कर्णपर्वत पर कर्णकुण्डल नगर बसाया था। पपु० ६.५२५-५२९ मृगावती - ( १ ) भरतक्षेत्र के सुरम्य देश में पोदनपुर के राजा प्रजापति की रानी यह प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ की जननी थी। मपु०५७.८४८५, ६२.९०, ७४.११९-१२२, पपु० २०.२२५, वीवच० ३.६१६३
(२) रावण की रानी । पपु० ७७.१३
(३) भरत क्षेत्र का एक देश । दशार्णपुर इसी देश में था । मपु० ७१.२९१, पापु० ११.५५
(४) भरतक्षेत्र के विजया को उत्तरगी में हरिपुर नगर के राजा पवनगिरि विद्याधर की रानी। यह सुमुख के जीव की जननी थी । हपु० १५.२१-२३
(५) वैशाली नगरी के राजा चेटक और रानी सुभद्रा की दूसरो पुत्री तथा प्रियकारिणी की छोटी बहिन । यह कौशाम्बी के राजा शतानीक से विवाही गयी । चन्दना इसकी छोटी बहिन और उदयन इसका पुत्र था । मपु० ७५.३-९, ६४
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