Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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भामा-भाव
(२) राजा जनक और रानी विदेहा का सीता के साथ ( युगल संतान के रूप में) उत्पन्न पुत्र । पूर्वभव के वरी महाकाल असुर ने इसे जन्म लेते ही मारने के लिए विदेहा के पास से अपहरण किया था । पश्चात् विचारों में परिवर्तन आने से उसने दयार्द्र होकर इसे मारने का विचार त्यागा तथा इसे देदीप्यमान किरणों वाले कुण्डल पहिना कर और पर्णध्वी विद्या का इसमें प्रवेश कराकर आकाश से सुखकर स्थान में छोड़ दिया था। आकाश से इसे गिरते हुए देखकर विद्याधर चन्द्रगति ने बीच में ही रोक लिया था और रथनूपुर ले जाकर नगर में इसका जन्मोत्सव मनाया था । कुण्डलों के किरण समूह से घिरे हुए होने से उसने इसका "भामण्डल" नाम रखा था। यह सीता पर मुग्ध था। सीता को भामण्डल की पत्नी बनाने के लिए चन्द्रगति ने चपलवेग विद्याधर को भेजकर जनक को रथनूपुर बुलाया था और उनमे सीता की याचना की थी किन्तु जनक ने अपने निश्चय के अनुसार सीता देने की स्वीकृति नहीं दी । यह सीता को पाने के लिए उसके स्वयंवर में भी गया था किन्तु विदग्ध देश में अपने पूर्वभव के मनोहर नगर को देखते हो इसे जाति-स्मरण हुआ था । सचेत होने पर इसने अत्यन्त पश्चाताप भी किया। पश्चात् सीता एवं परिजनों से मिलकर और मिथिला का राज्य कनक के लिए सौंपकर तथा माता-पिता को साथ लेकर यह अपने नगर लौट आया । इसका दूसरा नाम प्रभामण्डल था। युद्ध में मेघवाहन के नाग वाणों से छिदकर यह भूमि पर गिर गया था । लक्ष्मण की शक्ति दूर करने के लिए विशल्या को लेने यही गया था । लंका की विजय के बाद राम ने इसे रथनूपुर का राजा बनाया था। भोग भोगते हुए इसके सैकड़ों वर्ष निकल गये किन्तु यह दीक्षित न हो सका था । अचानक महल की सातवीं मंजिल के ऊपर मस्तिष्क पर वज्रपात होने से इसकी मृत्यु हुई । इसने और इसकी पत्नी मालिनी दोनों ने मिल कर वज्रांक और उसके अशोक तथा तिलक दोनों पुत्रों को मुनि अवस्था में आहार कराया था। इस दान के प्रभाव से मरकर यह मेरु पर्वत के दक्षिण में विद्य मान देवकु भोगभूमि में सीन पल्य की आयु का पारी आर्य (भोगभूमिज) हुआ । पपु० २६.२, १२१-१४८, २८.२२, ११७-१२५, ३०.२९-३८, १६७-१६९, ५४.३७, ६०.९८-१०३, ६४.३२, ८८. ४१, १११.१-१४, १२३.८६-१०५
भामा - सत्यभामा का संक्षिप्त नाम । यह कृष्ण की पटरानी थी । हपु० ४३.१-३
भामारति - राजा सत्यन्धर की रानी । मधुर इसका पुत्र था। इसने धर्म का स्वरूप जानकर श्रावक के व्रत ले लिये थे । मपु० ७५. २५४-२५५
भारत (१) जम्बद्वीप के सात क्षेत्रों में प्रथम क्षेत्र इसका विस्तार ५२६६ योजन है । इसके ठीक मध्य में विजयाधं पर्वत है। इस पर्वत के दो अन्तभाग पूर्व और पश्चिम समुद्रों का स्पर्श करते हैं । इसकी पूर्व-पश्चिम भुजाओं का विस्तार एक हजार आठ सौ बानवे योजन तथा कुछ अधिक साढ़े सात भाग है। इसके छः खण्ड हैं और
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जैन पुराणकोश २५९
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उनमें निम्न देश है-कुरुजांगल, पंचाल, शूरसेन, पटच्चर, तुलिंग, काशी, कौशल्य, मत्रकार, कार्यक, सोत्व आकृष्ट त्रिगर्त कुशात्र, मत्स्य, कुणीयान्, कोशल और मोक। ये देश मध्य में हैं । बाल्हीक, आत्रेय, काम्बोज, यवन, आभीर, मद्रक, क्वाथतीय, शूर वाटवान्, कैकय, गान्धार, सिन्धु, सौबीर, भारद्वाज, दशेरुक, प्रास्थाल और तीर्णकर्ण ये उत्तर की ओर है। खड्ग, अंगारक, पौण्ड्र, मल्ल, प्रवक, मस्तक, प्राचोतिष, बंग, मगध, मानवार्तिक, मलद और भागंव में देश पूर्व दिशा में और यागमुक्त, बंदर्भ माणव सनकापिर मूलक, अश्मक, दाण्डी, कलिंग, आसिक, कुंतल नवराष्ट्र माहिषक, पुरुष और भोगवर्द्धन ये दक्षिण दिशा में तथा माल्य, कल्लीवनोपान्त, दुर्गं, सूर्पार, कबुक, काक्षि, नासारिक, अगर्त, सारस्वत, तापस, माहम, भस्कन्छ, सुराष्ट्र और नमंद ये देश पश्चिम में हैं। दशार्णक, किष्किन्ध, त्रिपुर, आयतं निषध नेपाल, उत्तमवर्ण, वैदिक, अन्तर, कौशल, पत्तन और विनिहाय ये देश विध्याचल के ऊपर तथा भद्र, वत्स, विदेह, कुश, भंग, सैतव और वज्रखण्डिक ये देश मध्यप्रदेश के आश्रित हैं । इसके भारतवर्ष, भारतविजय और भरतक्षेत्र अपर नाम हैं । मपु० ३.२४, ४७, ५३, ५.२०१, १२.२, पपु० २.१ हपु० ५.१३, १७-१८, २०, ४४, ११.१, ६४-६५, ४३.९९ दे० भरतक्षेत्र
(२) पाण्डवपुराण का अपर नाम । पापु० १.७१
भारतवर्ष - भरतक्षेत्र । मपु० ३.२४, ४७, ५३, १२.२, १५.१५९, हपु० ४३.९९
भारतो -- तीर्थंकर द्वारा कथित तत्त्वोपदेश । वीवच० १.५९-६० भारद्वाज - ( १ ) भरतक्षेत्र के स्थणागार नगर का निवासी एक ब्राह्मण । ब्राह्मणी पुष्पदत्ता इसकी स्त्री और उससे उत्पन्न पुष्यमित्र इसका पुत्र था । मपु० ७४.७०-७१, वीवच० २.११०-११३
(२) तीर्थंकर महावीर के पूर्वभव का जीव । यह भारतवर्ष के पुरातनमन्दिर नगर के ब्राह्मण सालंकायन तथा उसकी स्त्री ब्राह्मणी मन्दिरा का पुत्र था। इसने तप के द्वारा देवायु का बन्ध किया था तथा मरकर माहेन्द्र स्वर्ग में सात सागरोपम आयु का धारी देव हुआ था । पश्चात् वहाँ से च्युत होकर यह बहुत समय तक त्रस स्थावर योनियों में भटकने के बाद मगध देश का राजगृही नगरी में शाण्डिल्य का स्थावर नामक पुत्र हुआ था। मपु० ७४.७८-८३, ७६.५३६, वीवच० २.१२५-१३१, ३.२-३
(३) भरतक्षेत्र के उत्तर आर्यखण्ड का एक देश । भरतेश के पूर्व यहाँ उनके एक छोटे भाई का शासन था । हपु० ११.६७ भार्गव - भरतेश के छोटे भाइयों द्वारा त्यक्त देशों में भरतक्षेत्र के पूर्व
आर्यखण्ड का एक देश । हपु० ११.६९, ७६ भार्गवाचार्य धनुर्विद्या में प्रसिद्ध आचार्य इनकी शिष्य परम्परा में क्रमशः निम्न व्यक्ति हुए है-आत्रेय, कोमि, अमरावर्त, सित वामदेव, कपिष्ठल, जगत्स्थामा, सरवर, शरासन, रावण, विद्रावण और द्रोणाचार्य । हपु० ४५.४३-४८
भाव - ( १ ) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
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