Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२५८ : जैनपुराणको
(६) जीवद्यशा के भाई और कंस के साले सुभानु का पुत्र । कंस ने यह घोषणा करायी थी कि नागशय्या पर चढ़कर एक हाथ से शंख बजाते हुए दूसरे हाथ से धनुष चढ़ानेवाले को वह अपनी पुत्री देगा । इस घोषणा को सुनकर यह अपने पिता के साथ मथुरा आया था । कृष्ण इसके साथ थे। कृष्ण ने इसे पास में खड़ा करके कंस के तीनों कार्य कर दिखाये और वह शीघ्र व्रज वापस आ गया। कुछ पहरेदारों ने कंस को यह बताया कि ये कार्य इसने किये हैं और कुछ ने यह बताया कि ये कार्य इसने नहीं किसी अन्य कुमार ने किये हैं । मपु० ७०.४४७-४५६, हपु० ३५.७५
(७) भरतक्षेत्र के रजपुर नगरका कुरुवंशी एवं काव्यपगोत्री एक राजा । यह तीर्थंकर धर्मनाथ का पिता था। इसकी रानी का नाम सुप्रभा था । मपु ६१.१३-१४, १८, पपु० २०.५१
(८) लंका का राक्षसवंशी एक नृप । यह राजा भानुवर्मा का उत्तराधिकारी था । यह सोता के स्वयंवर में आया था । पपु० ५.३८७, ३९४, २८.२१५
(९) तीर्थंकर की माता द्वारा उसकी गर्भावस्था में देखे गये सोलह स्वप्नों में सातवाँ स्वप्न । पपु० २१.१२-१४
(१०) चम्पा नगरी का राजा। इसकी पत्नी का नाम राधा था । इन दोनों के कोई सन्तान न थी । इन्हें बताया गया था कि यमुनातट पर उन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति होगी । इस कथन के अनुसार इन्हें पेटी में एक बालक की प्राप्ति हुई थी बालक ग्रहण करते समय रानी ने अपना कान खुजाया था । रानी की इस प्रवृत्ति को देखकर राजा ने बालक का नाम कर्ण रखा था । पापु० ७.२७९२९७
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भानुकर्ण - रत्नश्रवा और रानी केक्सी के तीन पुत्रों में दूसरा पुत्र । रावण इसका बड़ा भाई तथा चन्द्रनखा छोटी बहिन और विभीषण छोटा भाई था । इसने अपने भाइयों के साथ एक लाख जप करके सर्वकामान्नदा आठ अक्षरों की विद्या आधे ही दिन में सिद्ध की थी । यह विद्या इसे मनचाहा अन्न देती जिससे इसे क्षुधा सम्बन्धी पीड़ा नहीं होती थी। इसे सर्वाहा, इतिसंवृद्धि, जृम्भिणी, व्योमगामिनी और निद्राणी ये पाँच विद्याएँ भी प्राप्त थीं। इसने कुम्भपुर नगर के राजा महोदर की रूपाक्षी रानी की पुत्री माला प्राप्त की थी। इसने अनन्तबल केवली के साथ तब तक आहार न करने की प्रतिज्ञा की थी जब तक कि वह अर्हन्त, सिद्ध, साधु और जिनधर्म की शरण में रहकर प्रतिदिन प्रातःकाल अभिषेक पूर्वक जिनेन्द्रदेव - और साधुओं की पूजा नहीं कर लेगा। युद्ध में राम ने सूर्यास्त्र को नष्ट कर तथा नागास्त्र चलाकर इसे रथ रहित कर दिया था । राम के द्वारा नागपाश से बाँधे जाने पर यह पृथिवी पर गिर गया था परन्तु राम की आज्ञा पाकर भामण्डल ने इसे रथ पर बैठा दिया था। अन्त में रावण की मृत्यु के पश्चात् इसने विद्याधरों के वैभव को तृण के समान त्याग कर विधिपूर्वक निर्ग्रन्थ दीक्षा ले ली थी । पश्चात् यह केवली होकर मुक्त हुआ । इसका अपर नाम कुम्भकर्ण
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भानुकर्ण-भामण्डल
था । पपु० ७.१६४-१६५, २२२-२२५, २६४-२६५, ३३३, ८. १४२-१४३, १४.३७२-३७४, ६२.६६-६७, ७०, ७८.८२-८४, ८०. १२९-१३०
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भानुकीर्ति - जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र की मथुरा नगरी के सेठ भानुदत्त और सेठानी यमुनादत्ता के सात पुत्रों में दूसरा पुत्र, सुभानु का छोटा भाई भानुषेण मानुतूर शूरदेव, शूरदरा, शूरसेन इसके छोटे भाई थे। इन्होंने मुनि दीक्षा ले ली थी तथा आयु के अन्त में संन्यासमरण कर सातों भाई प्रथम स्वर्ग में त्रायस्त्रश जाति के देव हुए थे थे । पु ७१.२०१-२०६, २४५-२४८, हपु० ३३.९६-९८, १४० भानुकुमार - कृष्ण और उसकी पटरानी सत्यभामा का पुत्र । इसका अपरनाम भानु था । मपु० ७२.१५६, १५८, हपु० ४४.१, ४८.६९ दे० भानु- २
भानुगति - राक्षसवंशी एक विद्याधर । यह अमृतवेग का पुत्र था । इसने
पिता से प्राप्त राज्य अपने पुत्र चिन्तागति को सौंप करके जैनदीक्षा ले ली थी। पपु० ५.३९३, ४०० भारत (१) जम्बूद्वीप के भरतशेष की मथुरा नगरी का एक सेठ । इसकी स्त्री का नाम यमुनादत्ता था। इन दोनों के सात पुत्र थे । इसका दूसरा नमा भानु था । यह बारह करोड़ मुद्राओं का स्वामी था । मपु० ७१.२०१-२०३, हपु० ३३.९६ दे० भानुकीर्ति
(२) चम्पापुरी नगरी का एक धनाढ्य वैश्य । सुभद्रा इसकी स्त्री और चारुदत्त पुत्र था । हपु० २१.६, ११
भानुप्रभ - राक्षसवंशी एक विद्याधर । राजा भानु के पश्चात् लंका का राज्य इसे ही प्राप्त हुआ था । मपु० ५.३८७-३९४, ३९९-४०० भानुमण्डल – एक विद्याधर । यह राम की ओर से युद्ध करने ससैन्य समरभूमि में गया था । पपु० ५८.३-७
भानुमती - (१) लक्ष्मण की रानी । पपु० ८३.९३
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(२) दुर्योधन की रानी । पापु० १७.१०८ भानुमालिनी - रावण को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३२५ भानुरक्ष— लंकाधिपति महारक्ष और उसकी रानी विमलाभा का तीसरा पुत्र । अमरक्ष और उदधिरक्ष इसके छोटे भाई थे। इसका दूसरा नाम भास्कररक्ष था । इसने गन्धर्वगीत नगर के सुरसन्निभ की पुत्री गन्धर्वा को विवाहा था । इससे इसके दस पुत्र और छः पुत्रियाँ हुई थीं । आयु के अन्त में इसने दीक्षित होकर तप किया और मोक्ष पाया । प० ५.२४१-२४४, ३६१, ३६७, ३६९, ३७६ भानुवर्मा - राक्षसवंशी एक विद्याचर राजा इन्द्रजित् के पश्चात् का का राज्य इसे ही प्राप्त हुआ था। पपु० ५.३८७, ३९४, ३९९
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भानुशूर सेठ भानुदत्त का पुत्र मपु० ७१.२०३ ३० भानुकीर्ति भानुषेण - सेठ भानुदत्त का तीसरा पुत्र । मपु० ७१.२०३, हपु० ३३. ९७ ३० भानुकीति
भामण्डल (१) अष्ट प्रातिहायों में एक प्रातिहार्य यह भगवान् के दिव्य ओदारिक शरीर से उत्पन्न होता है। वीवच० १५.१२१३, १९
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