Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२८४ : जैन पुराणकोश
महाषामा-महापदम
महाधामा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२५.१५१ महाधृति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१५१ महाधैर्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५२ महाध्यानपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१६२ महाध्यानी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेब का एक नाम। मपु०
२५.१५६ महाध्वरधर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२५.१५९ महाधैर्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५२ महानगर-(१) पश्चिम धातकीखण्ड द्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम की
ओर सीता नदी के दक्षिणी तट पर स्थित रम्यकावती देश का एक नगर । मपु० ५९.२-३
(२) भरतक्षेत्र का एक नगर । यहाँ के राजा सुन्दर ने वासुपूज्य को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये थे । मपु० ५८.४०-४१ महामन्दी-पद्म आदि सरोवर से निकलनेवाली तथा पूर्व-पश्चिम समुद्र
की ओर बहनेवाली चौदह नदियाँ। इनके नाम है-गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रूप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा। मपु०
६३.१९४-१९६ महानन्द-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५३
(२) विजयनगर का राजा। इसकी रानी का नाम वसन्तसेना और पुत्र का नाम हरिवाहन था। मपु० ८.२२७-२२८
(३) नन्द यक्ष का साथी एक यक्ष देव । इन दोनों देवों ने कुमार प्रीतिकर को धरणिभूषण पर्वत पर पहुँचाया था। मपु० ७६.३१५, ३२९-३३१
(४) इन्द्र द्वारा किया गया एक नाटक । हपु० ३९.४१५ महान्-भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम ।
मपु० २४.४४, २५.१४८ महानाग-जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३८ महानाद-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५८
(२) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३४ महानिच्छ-दूसरी नरकभूमि के प्रथम प्रस्तार में तरक इन्द्रक बिल की
पूर्व दिशा का महानरक । हपु० ४.१५३ महानिरोध-चौथी पृथिवी (नरकभूमि) के प्रथम प्रस्तार में आर इन्द्रक
को उत्तर दिशा का महानरक । हपु० ४.१५५ महानीति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१५३
महानील-छठी नरकभूमि के प्रथम प्रस्तार के हिम इन्द्रक की पश्चिम
दिशा का महानरक । हपु० ४.१५७ महानुभाव-वृषभदेव के इक्यासीवें गणधर । हपु० १२.६९ महानेमि-(१) राजा समुद्र विजय का पुत्र । यह यादवों का पक्षधर
एक अर्धरथी राजा था। वसुदेव द्वारा की गयी गरुड़-व्यूह रचना में इसे कृष्ण के रथ की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया था। हपु० ४८.४३, ५०.८३-८५, १२०, ५२.१४
(२) उग्रसेन का पुत्र । श्रीकृष्ण ने इसे शौर्यनगर का राज्य दिया था । हपु० ५३.४५ महान्-भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मप०
२४.४४, २५.१४८ महापक छठी पृथिवी के प्रथम प्रस्तार में हिम इन्द्रक को उत्तर दिशा __ का महानरक । हपु० ४.१५७ महापद्म-(१) अवसर्पिणी काल का नौवाँ चक्रवर्ती। यह हस्तिनापुर
के राजा पद्मरथ और रानी मयूरी का पुत्र था। इसकी आठ पुत्रियाँ थीं। विद्याधर इसको आठों पुत्रियों को हरकर ले गये थे। इससे विरक्त होकर इसने अपने पुत्र पद्म को राज्य देकर इसके पुत्र विष्णु के साथ दीक्षा धारण कर ली थी तथा केवलज्ञान प्राप्त कर अन्त में सिद्ध पद प्राप्त किया था। बलि आदि इसी के मन्त्रियों ने अकम्पनाचार्य आदि मुनियों पर उपसर्ग किया था। इसकी आयु तीस हजार वर्ष की थी। इसमें इसके पांच सौ वर्ष कुमार अवस्था में, पांच सौ वर्ष मण्डलीक अवस्था में, तीन सौ वर्ष दिग्विजय में, अठारह हजार सात सौ चक्रवर्ती होकर राज्य अवस्था में और दस हजार वर्ष संयमी अवस्था में व्यतीत हुए थे। पपु० २०.१७८-१८४, हपु० २०.१२२३, ६०.२८६-२८७,५१०-५११, वीवच० १८.१०१, ११०
(२) तीर्थकर शीतलनाथ के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०. २०-२४
(३) जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३८ (४) कुण्डलगिरि के सुप्रभकूट का निवासी देव । हपु० ५.६९२
(५) महाहिमवत् कुलाचल का ह्रद-सरोवर। रोहित और हरिकान्ता ये दो नदियाँ इसी ह्रद से निकली हैं। ह्री देवी यहीं रहती हैं। मपु० ६३.१०३, १९७, २००, हपु० ५.१२१, १३०,
(६) आगामी नौवाँ चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८३, हपु० ६०.५६४
(७) आगामी प्रथम तीर्थङ्कर-राजा श्रेणिक का जीव । मपु० ७४.४५२, ७६.४७७, हपु० ६०.५५८, वीवच० १९.१५४-१५७
(८) जम्बूदीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के बीतशोक नगर का राजा। इसकी रानी का नाम वनमाला तथा पुत्र का नाम शिवकुमार था । मपु० ७६.१३०-१३१
(९) आगामी सोलहवाँ कुलकर । मपु० ७६.४६६ (१०) तीर्थङ्कर सुविधिनाथ के दूसरे पूर्वभव का जीव-पुष्करा
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