Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२१० पुरानो
के राजा शम्बर और रानी श्रीमती का पुत्र तथा ध्रुवसेन का भाई था । मपु० ७१.४०९-४१०
(८) जम्बूद्वीप के पश्चिम विदेह का देश मपु० ७२.३१ (९) भविष्यत्कालीन ग्यारहवाँ कुलकर । मपु० ७६.४६५ (१०) भविष्यत्कालीन आठवाँ चक्रवर्ती । मपु० ७६.४८३ (११) व्यवहार काल का एक भेद । यह चौरासी लाख पद्मांग प्रमाण होता है । यह संख्या का भी एक भेद है । मपु० ३.११८, २२३, हपु० ७.२७
(१२) सौधर्म स्वर्ग का एक पटल एवं विमान । हपु० ६.४६ दे० सौधर्म
(१३) पुष्करवर द्वीप का रक्षक देव । हपु० ५.६३९
(१४) कुण्डली देव० ५.६९१
(१५) हिमवत् कुलाचल का सरोवर । एक हज़ार योजन लम्बा, पाँच सौ योजन चौड़ा और सवा सौ योजन गहरा है। इसके पूर्व द्वार से गंगा पश्चिम द्वार से सिन्धु और उत्तर द्वार से रोहितास्था नदी निकली है मपु० १२.१२१-१२४, ०५.१२१, १२६.१३२ (१६) कृष्ण का एक योद्धा । इसने कृष्ण जरासन्ध युद्ध में भाग लिया था । मपु० ७१.७३-७७
(१७) अनन्तनाथ तीर्थङ्कर के पूर्वभव का नाम । हपु० ६०.१५३ (१८) चन्द्रप्रभ तीर्थकुर के पूर्वभव का नाम हपु० ६०.१५२ (१९) हस्तिनापुर के राजा महापद्म का पुत्र । हपु० २०. १४ (२०) तीर्थंङ्कर मल्लिनाथ के तीर्थंकाल में उत्पन्न नवम चक्रवर्ती । तीसरे पूर्वभव में ये सुकच्छ देश में श्रीपुर नगर के प्रजापाल नामक नृप थे । आयु पूर्ण कर अच्युत स्वर्ग में देव हुए और वहाँ से च्युत होकर काशी देवा की वाराणसी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्मनाभ के इस नाम के पुत्र हुए। इनकी आयु तीस हजार वर्ष की थी, शारीरिक ऊँचाई बाईस धनुष, वर्ण-स्वर्ण के समान देदीप्यमान था । पुण्योदय से इन्होंने चक्रवर्तित्व प्राप्त किया था। पृथिवी सुन्दरी आदि इनकी आठ पुत्रियाँ थीं जो सुकेतु विद्याधर के पुत्रों को दी गयी थीं । -अन्त में मेघों की क्षणभंगुरता देखकर ये विरक्त हो गये । पुत्र को राज्य सौंपा, सुकेतु आदि के साथ समाधिगुप्त जिन से संयमी हुए और घातियाकर्मों के क्षय से ये परम पद में अधिष्ठित हुए । मपु० ६६.६७-१००, पपु० २०.१७८-१८४
(२१) अवसर्पिणी काल के दुःषमा-सुषमा नाम के चौथेकाल में उत्पन्न शलाका पुरुष एवं आठवें बलभद्र । ये तीर्थङ्कर मुनिसुव्रत और नमिनाथ के मध्यकाल में राजा दशरथ और उनकी रानी अपराजिता से उत्पन्न हुए थे । इनका नाम माता-पिता ने पद्म रखा । पर लोक में ये राम के नाम से ही प्रसिद्ध हुए । पपु० २०.२३२-२४१, २५. २२, १२३.१५१, वीवच० १८.१०१-१११ इनकी आयु सत्रह हजार वर्ष तथा ऊँचाई सोलह धनुष प्रमाण थी । दशरथ की सुमित्रा रानी का पुत्र लक्ष्मण, केकया रानी का पुत्र भरत और सुप्रभा रानी का पुत्र शत्रुघ्न इनके अनुज थे। इन्हें और इनके सभी भाइयों को एक ब्राह्मण ने अस्त्र-विद्या सिखायी थी । पपु० २५.२३-२६, ३५-३६,
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पद्म
५४-५६, १२३.१४२३ राजा जनक और मयूरमाल नगर के राजा आन्तरंगतम के बीच हुए युद्ध में इन्होंने जनक की सहायता की थी, जिसके फलस्वरूप जनक ने इन्हें अपनी पुत्री जानकी को देने का निश्चय किया । विद्याधरों के विरोध करने पर सीता की प्राप्ति के लिए वज्रावर्त धनुष चढ़ाना आवश्यक माना गया। पद्म ने धनुष चढ़ाकर सीता प्राप्त की थी । पपु० १८.१६९-१७१, २४०-२४४, २७.७, ७८-९२ केकयी के द्वारा भरत के लिए राज्य माँगे जाने पर राजा दशरथ ने इनके समक्ष अपनी चिन्ता व्यक्त की । इन्होंने उनसे सत्य व्रत की रक्षा करने के लिए साग्रह निवेदन किया । ये लक्ष्मण और सीता के साथ घर से निकलकर वन की ओर चले गये । भरत ने राज्य लेना स्वीकार नहीं किया। भरत और केकयी दोनों ने इन्हें वन से लौटकर अयोध्या आने के लिए बहुत आग्रह किया किन्तु इन्होंने पिता की वचन -रक्षा के लिए आना उचित नहीं समझा । वन में इन्होंने बालखिल्य को बन्धनों से मुक्त कराया, देशभूषण और कुलभूषण मुनियों का उपसर्ग दूर किया और सुगुप्ति तथा गुप्ति नाम के मुनियों को आहार देकर पंचाश्चर्य प्राप्त किये । पपु० ३१.११५१२५, १८८, २०१, ३२.११६-१३३, ३४.९५-९७, ३९.७०-७४, २२२-२२५, ४१.१२-१६, २२-३१ वन में एक गीष पक्षी इन्हें बहुत प्रिय रहा। इन्होंने उसका नाम जटायु रखा । चन्द्रनखा के प्रयत्न करने पर भी ये शील से विचलित नहीं हुए। लक्ष्मण के द्वारा शम्बूक के मारे जाने से इन्हें खरदूषण से युद्ध करना पड़ा । रावण खरदूषण की सहायता के लिए आया । वन में सीता को देखकर वह उस पर मुग्ध हो गया तथा उसे हर ले गया । पपु० ४१.१६४. ४३.४६-६२, १०७-१११, ४४.७८- ९० रावण सीता को हरकर ले गया है यह सूचना रत्नजटी से पाकर ये सेना सहित लंका गये वहीं इन्होंने भानुकर्ण को नागपाश से बाँधा और रावण को छः बार रथ से गिराया। विभीषण रावण से तिरस्कृत होकर इनसे मिल गया था । शक्ति लगने से लक्ष्मण के मूच्छित होने पर ये भी मूच्छित हो गये थे । विशल्या के स्पर्श से लक्ष्मण की शक्ति के दूर होने पर ही इनका दुःख दूर हुआ। बहुरूपिणी विद्या की साधना में रत रावण को वानरों ने कुपित करना चाहा था किन्तु इन्होंने वानरों को ऐसा करने से रोका था। बहुरूपिणो विद्या सिद्ध करने के पश्चात् रावण ने पुनः युद्ध करना आरम्भ किया । लक्ष्मण ने चक्र चलाकर रावण का वध किया। इस प्रकार रण में इन्हीं की विजय हुई। मपु० ६२.६६-६७, ८३.९५, पपु० ७६.३३३४५५.७१-७३, ६३.१-२, ६५.३७-३८, ७०.८-९, इनके लंका में सीता से मिलने पर देवों ने पुष्पवृष्टि की थी। लंका में ये लक्ष्मण और सीता के साथ छः वर्ष तक रहे । पश्चात् लंका से ये पुष्पक विमान में बैठकर अयोध्या आये । अयोध्या आकर इन्होंने माताओं को प्रणाम किया । माताओं ने इन्हें आशीर्वाद दिया । इनके आते ही भरत दीक्षित हो गये । इन्हें अयोध्या का राजा बनाया गया था । पपु० ७९.५४ ५७, ८०.१२३, ८२.१, १८-१९, ५६-५८ ८६.८-९, ८८. ३२-३३ वन से लौटकर आने पर इन्होंने सीता की अग्नि परीक्षा
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