Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२४६ जैन पुराणकोश
नगर के राजा यक्ष और उसकी रानी राजिला द्वारा पालित यक्षदत्त इसका पुत्र था । पपु० ४८.३६-५०
बन्धुमती - (१) भरतक्षेत्र में कुरजांगल देश के हस्तिनापुर नगर के सेठ श्वेतवाहन की भार्या। यह शंख पुत्र की जननी और इसी नगर के राजा गंगदेव की रानी नन्दयशा की बड़ी बहिन थी । इसने नन्दयशा के सातवें पुत्र निर्नामक का पालन किया था । मपु० ७१.२६०-२६६ हपु० ३३.१४१
(२) विजयपुर नगर निवासी मधुषेण वैश्य की भार्या और बन्धुयशा की जननी । इसके पति का अपर नाम बन्धुषेण था । मपु० ७१.३६३३६४, हपु० ६०.४८
(३) एक आर्थिक हनुमान् के दीक्षित होने के पश्चात् उसकी रानियों ने इसी आर्यिका से दीक्षा ली थी । पपु० ११३.४०-४२
(४) भरत की भाभी । पपु० ८३.९४
(५) कामदत्त सेठ के वंश में उत्पन्न कामदेव सेठ की पुत्री । किसी निमित्तज्ञानी ने कामदत्त सेठ द्वारा बनवाये कामदेव मन्दिर के द्वार खोलनेवाले को इसका पति होना बताया था । वसुदेव ने इस मन्दिर के द्वार खोलकर जिनेन्द्र की अर्चना की थी। भविष्यवाणी के अनुसार कामदेव ने प्रसन्न होकर यह कन्या बसुदेव को दी थी । हपु० २९.१-११
(६) अरिष्टपुर नगर के राजा हिरण्यनाम के भाई रेवस की पुत्री। रेवती इसकी बड़ी बहिन और सीता तथा राजीवनेत्रा छोटी बहिन थीं। इसका विवाह कृष्ण के भाई बलदेव से हुआ था । मपु० ४४. ३७-४१ बन्धुयशा - कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के तीसरे पूर्वभव का जीव । यह उस भव में जम्बूद्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में पुष्कलावती देश के विजयपुर नगर के मधुषेण / बन्धुषेण वैश्य और उसकी स्त्री बन्धुम की पुत्री थी । मपु० ७१.३५९-३६९, पु० ६०.४८-४९ पुषी-जम्बूक्षेत्र के भरतक्षेत्र में स्थित शंख नगर के देविल वैश्य की भार्या । इसकी पुत्री का नाम श्रीदत्ता था । मपु० ६२.४९२ ५०० बन्धुषेण - (१) जम्बूद्वीप ऐरावत क्षेत्र में स्थित विजयपुर नगर का नृप । यह बन्धुमती का पति तथा बन्धुयशा का पिता था। हपु० ६०.
४८-४९
(२) वसुदेव और रानी बन्धुमती का पुत्र सिंहसेन का सहोदर ० ४८.५२ ६२
ययं जम्मूदीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित वत्सकावती देश की प्रभावती अपर नाम प्रभाकरी नगरी के राजा अनन्तवीर्य की नटी । इसी कारण नारद की कुमन्त्रणा से अनन्तवीर्यं और उसके बड़े भाई अपराजित का शिवमन्दिर नगर के राजा दमितारि के साथ युद्ध हुआ । इस युद्ध में दमितारि मारा गया था। मपु० ६२.४२९, पापु० ४.२४६२७५, दे० अपराजित १२
बर्हणास्त्र - उरगाव का निवारक शस्त्र पपु० ७४.११० १११
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बन्धुमती बसदेव
बल – (१) भगवान् वृषभदेव के सतत्तरवें गणधर । मपु० ४३.६५ (२) अर्ककीर्ति के पुत्र स्मितयश का पुत्र । हपु० १३.७-८ (३) प्रथम बलभद्र विजय के पूर्व जन्म का नाम । मपु० २०.
२३२-२३३
(४) विद्याधरों का स्वामी राम का व्याघरवारोही योद्धा । पपु० ५८.३-७
(५) राम का एक योद्धा । यह बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण को विद्या की साधना से च्युत करने के लिए लंका गया था । पपु०
७०.१२-१६
(६) तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के प्रथम गणधर । मपु० ५३.४६ (७) आगामी पाँचवां नारायण । मपु० ७६.४८७-४८८ (८) बलभद्र । ये नारायण के भाई होते हैं। ये नौ हैं - विजय, अचल, धर्म, सुभ, सुदर्शन नान्दी, मन्दिमित्र, रामचन्द्र और पद्म ( बलराम ) । मपु० २.११७, हपु० ६०.२९०
(९) बलराम । मपु० ७१.७६
(१०) सैन्य शक्ति और आत्मबल । स्वयंबुद्ध ने महाबल में मन्त्रशक्ति के द्वारा इन दोनों बलों का यथासमय संचार किया था । मपु०
५.२५१
बलदेव (१) आगामी सत्रहवें तीर्थकर निर्मल का जीव वासुदेव ७६.४७३
(२) लोहाचार्य के पश्चात् हुए आचार्यों में एक आचार्य । हपु० ६६. २४-२६
(३) वसुदेव और रोहिणी के पुत्र । ये नवम बलभद्र थे । महापुराण में इन्हें पद्म भी कहा है। ये वसुदेव की दूसरी रानी देवकी के पुत्र थे। देवकी के सातवें पुत्र कृष्ण को जन्मते ही ये और वसुदेव दोनों गोकुल में नन्दगोप को दे आये । ये गोकुल, मथुरा और द्वारिका में कृष्ण के साथ ही रहे । जब द्वैपायन मुनि द्वारिका आये तो शम्ब आदि कुमारों ने मदोन्मत्त अवस्था में मुनि का तिरस्कार किया । मुनि ने क्रुद्ध होकर यादवों समेत द्वारिका के नष्ट होने का शाप दिया । इन्होंने अनुनय विनय के साथ मुनि से शाप को निरस्त करने की प्रार्थना की। मुनि ने संकेत से बताया कि बलराम और कृष्ण को छोड़कर शेष नष्ट हो जायेंगे । द्वारिका नष्ट हुई। कुछ समय पश्चात् मृग समझकर छोड़े हुए जरत्कुमार के वाण से कृष्ण की मृत्यु हो गयी। ये शोकाकुल होकर कृष्ण को लिये हुए छ: मास तक इधरउधर घूमते रहे । जब सारथी सिद्धार्थं के जीव एक देव ने इन्हें सम्बोधा तो इन्होंने शव का दाह संस्कार किया। इसके पश्चात् इन्होंने जरत्कुमार को राज्य देकर तीर्थंकर नेमिनाथ से परोक्ष में और पिहितात्रय मूर्ध्नि से साक्षात् दीक्षा को तुंगीगिरि पर सौ वर्ष तक कठिन तप करके ये ब्रह्मलोक में इन्द्र हुए। ये पूर्वजन्म में हस्तिनापुर में शंख नाम के मुनि थे । वहाँ से ये महाशुक्र स्वर्ग में देव हुए । वहाँ से चयकर ये रोहिणी पुत्र बलराम हुए । पपु० ७०. ३१८-३१९, ७१.१२५-१३८, हपु० ६१.४८, ६१-६६, ६३. १२
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