Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२५० पुराणको
है-अनशन, अमोदर्य वृत्तिसंस्थान रसत्याग, काय-विग्रह और विविक्तशय्यासन । मपु० २०.१७५-१८९ बाह्यपरिग्रहविरति — पंचम अपरिग्रह महाव्रत । यह धन, धान्य आदि दस प्रकार के परिग्रह के त्याग से होता है । हपु० २.१२१ बिम्बोष्ट - विद्याधर दृढरथ का वंशज, मण्यास्य का पुत्र और लम्बिताघर का पिता । पपु० ५.५१
खोजबुद्धि - (१) एक ऋद्धि । इसमें बीजों को स्पर्श किये बिना उन पर होकर चला जाता है । गौतम मुनि ने कठिन तपस्या से इस ऋद्धि को प्राप्त किया था । मपु० ११.८०, हपु० १८.१०७
(२) आगम रूप बीज के धारक आचार्य गौतम । मपु० २.६७ बीजसम्यक्त्व - सम्यग्दर्शन के दस भेदों में पाँचवाँ भेद, अपरनाम बीज - समुद्भव | इससे बीजपदों को ग्रहण करने और उनके सूक्ष्म अर्थ को सुनने से भव्यजीवों की तत्त्वार्थ में रुचि उत्पन्न होती हैं । मपु० ७४. ४३९-४४०, ४४४, वीवच० १९.१४७
बीजा - भरतक्षेत्र के मध्यदेश की एक नदी । भरतेश की सेना ने इसे पार किया था । मपु० २९.५२
बुद्ध - भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभ देव का एक नाम । मपु० २४.३८, २५.१०८
बुद्धबोध्य - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. १४५
बुद्धवीर्यं -- तीर्थङ्कर पुष्पदन्त का मुख्य प्रश्नकर्ता । मपु० ७६.५३० बुद्ध सन्मार्ग - सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५. २१२
बुद्धार्थ विहार करते हुए सिद्धार्थ बन में आगत एक मुनिराज इनको आहार देकर अयोध्या के राजा रुद्र की रानी विनयश्री सद्गति को प्राप्त हुई । मपु० ७१.४१७-४२८
बुद्धि (१) एक दिक्कुमारी देवी यह तीर्थंकर की माता के बोध गुण का विकास करती है । इन्द्र जिन माता के गर्भ का संशोधन करने इसे ही भेजता है। इसके रहने के लिए सरोवरों में कमलों पर भवन बनाये जाते हैं । महापुण्डरीक नामक सरोवर इसका मूल निवास स्थान है । यह व्यन्तरेन्द्र की प्रियांगना व्यन्तरी देवी है । मपु० १२.१६३१६४, ६३.२००, हपु० ५.१३०, वीवच० ७.१०५-१०८
(२) विवेचका शक्ति | यह स्वभावज और विनयज के भेद से दो प्रकार की होती है । मपु० ६८.५९
बुद्धिकूट - रुक्मि-पर्वतस्य आठ कूटों में पाँचवाँ कूट । हपु० ५.१०२१०४
बुद्धिल - महावीर के मोक्ष जाने के पश्चात् एक सौ बासठ वर्ष का समय निकल जाने पर एक सौ तेरासी वर्ष में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग धारी ग्यारह मुनि पुंगवों में नौवें मुनि । ये अन्तिम श्रुतकेवली भद्रबाहु के पश्चात् हुए थे। इनका अपर नाम बुद्धिमान् था । मपु० २. १४१-१४५, ७६.५२१-५२४, हपु० १.६२-६३, वीवच० १.४५-४७ - बुद्धिषेण राजा सत्यंधर के पुरोहित सागर का पुत्र । जीवन्धर का अभिन्न साथी । मपु० ७५.२५६-२६०
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बाह्यपरिग्रहविरतिबृहस्पति
बुद्धिषेणा - साकेतपुर निवासिनी एक गणिका । यह प्रीतिकर मुनि की भक्त थी। इसका दूसरा नाम बुद्धिसेना था। मुनि विचित्रमति इस वेश्या की प्राप्ति के लिए मुनिपद त्यागकर राजा गन्धमित्र का रसोइया बन गया था । मपु० ५९.२५८-२६७, हपु० २७.९७-१०४ बुद्धिसागर - ( १ ) भरतेश का बुद्धिमान् पुरोहित । राज्य में जब कभी देवी उत्पात होते थे तब उनका प्रतिकार यही करता था । यह भरतेश के सजीव रत्नों में सातवाँ रत्न था । मपु० ३७.८३-८४, १७५
(२) पुष्कलावती देश के वीतशोक नगर के राजा महापद्म का मंत्रो । मपु० ७६.१३०-१३२
(३) पोदनपुर के राजा श्रीविजय का मंत्री पा० ४.९६-९८, ११६
बुध - रावण का श्वसुर एक नृप। इसकी रानी मनोवेगा से उत्पन्न अशोकलता का विवाह गान्धर्व विधि से रावण के साथ हुआ था। यह मय का मन्त्री था और इसने दशानन की दक्षिणी विजय की यात्रा में उनका साथ दिया था। यह राजा सीता के स्वयंवर में भी सम्मिलित हुआ था । पपु० ८.१०४-१०८, २६९-२७१, २८.२१५ वृषाण - एक देश । यहाँ का राजा लवणांकुश से पराजित हुआ था । पपु० १०१.७९-८६
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बृहत्कीति — मेघवाहन के वंशज राजाओं में राक्षस का पुत्र यह आदित्यगति का भाई था । इसकी पत्नी का नाम पुष्यनखा था । पपु० ५.३७८-३८१
बृहद्गृह - विजयार्धं पर्वत पर स्थित दक्षिणश्रेणी का बाईसवाँ नगर । हपु० २२.९५
बृहन कौशाम्बी नगर निवासी एक बणिक् इसकी पत्नी कुरुविन्दा थी और उससे उत्पन्न पुत्र अहिदेव और महीदेव थे । पपु० ५५. ६०-६१
बृहवृध्वज - (१) राजा वसु का दसवीं पुत्र । हपु० १७.५९
(२) राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.३१
(३) कुरुवंश का एक राजा । यह सनत्कुमार के पश्चात् हुआ था । हपु० ४५.१७
बृहद्बलि - राजा जरासन्ध का पुत्र । हपु० ५२.४० बृहद्रथ - (१) कृष्ण का पुत्र । हपु० ४८.६९-७२
(२) राजगृह नगर का स्वामी और त्रिखण्डाधिपति जरासन्ध का पिता । यह राजा शतपति का पुत्र था और श्रीमती इसकी रानी थी । हपु० १८.२२, पापु० ७.१४७- १४८ बृहद्बृहस्पति — सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
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बृहव्वसु - राजा वसु का प्रथम पुत्र । हपु० १७.५८ बृहस्पति (१) इन्द्र का प्रभावशाली मंत्री पपु० ७.२१
(२) उज्जयिनी के राजा श्रीधर्मा का द्वितीय मंत्री । हपु० २०.४ (३) एक साधु ( मुनि) । इनके कहने से ही सिंहदंष्ट्र ने अपनी पुत्री नीलयशा कुमार वसुदेव को दी थी । हपु० २३.८
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