Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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प्रकाशयश-प्रज्वलित
जैन पुराणकोश : २३३
प्रकाशयश-पुष्करद्वीप के चन्द्रादित्य नगर का राजा। इसकी रानी
माधवी से जगद्य ति नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था। हपु० ८५.
९६-९७ प्रकाशात्मा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
प्रजा-(१) सन्तान । मपु० ३.१४२
(२) शासकों द्वारा रक्षित एवं अनुशासित जन। ये दो प्रकार के होते है-प्रथम वे लोग जो रक्ष्य होते हैं और दूसरे वे जो रक्षक
होते हैं । क्षत्रियों को रक्षक माना गया है । मपु० ४२.१० प्रजाग-भगवान् वृषभदेव का दीक्षा स्थान । पपु० ८५.४०, हपु०
प्रकीर्णक-(१) अंगबाहश्रुत का अपर नाम । इसके चौदह भेद है
सामायिक, जिनस्तव, वन्दना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पाकल्प, महाकल्प, पुण्डरीक, महापुण्डरीक और निषद्यका। इसमें आठ करोड़ एक लाख आठ हजार एक सौ पचहत्तर अक्षर, एक करोड़ तेरह हजार पाँच सौ इक्कीस पद और पच्चीस लाख तीन हजार तीन सौ अस्सी श्लोक है । हपु० १०.१२५-१३८,५०.१२४
(२) लंका के प्रमदवन पर्वत पर स्थित सात वनों में एक बन । पपु० ४६.१४३-१४६
(३) अच्युत स्वर्ग के एक सौ तेईस विमान । मपु० १०.१८७
(४) ताण्डव-नृत्य का एक भेद । इसमें नाचते हुए पुष्प वर्षा की जाती है । मपु० १४.११४ प्रकृब्जा-तीर्थकर अजितनाथ के संघ की प्रमुख आर्यिका । मपु०
४८.४७ प्रकृति-(१) कर्म की प्रकृतियाँ । अधाति कर्मों की पचासी तथा घाति
कर्मों की तिरेसठ कर्म प्रकृतियाँ होती है। मपु० ४८.५२, वीवच० १९.२२१-२३१
(२) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
(३) अग्रायणीयपूर्व की पंचम वस्तु के कर्म प्रकृति प्राभूत का पाँचवाँ अनुयोग द्वार । हपु० १०.८२ । प्रकृतिद्युति-बलदेव का पुत्र । हपु० ४८.६६-६८ प्रक्रम-अग्रायणीयपूर्व की कर्मप्रकृति वस्तु का आठवाँ अनुयोग द्वार ।
हपु० १०.८३ प्रक्षीणबन्ध-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
प्रजापति-(१) वृषभदेव के चौरासी गणधरों में ५८ वें गणधर । महापुराण में ये ५७ वें गणधर हैं । मपु० ४३.६३, हपु० १२.६५
(२) वृषभदेव का दूसरा नाम । अपूर्व रूप से प्रजा की रक्षा करने के कारण उन्हें इस नाम से संबोधित किया गया था। सौधर्मेन्द्र ने वृषभदेव की इस नाम से भी स्तुति की थी । मपु० २५.११३ ७३.७, हपु०८.२०९
(३) पोदनपुर नगर का राजा। इसकी दो रानियाँ थीं-मृगावती और जयावती। प्रथम नारायण त्रिपृष्ठ मृगावती का तथा विजय नामक बलभद्र जयावती का पुत्र था। मपु० ५७.८४-८६, ७०.१२०१२२, पपु० २०.२२१-२२६, वोवच० ३.६१-६३
(४) मलय देश के रत्नपुर नगर का राजा। यह गुणकान्ता का पति और चन्द्रचूल का पिता था । मपु० ६७.९०-९१
(५) अवन्ति देश की उज्जयिनी नगरी का राजा । मपु० ७५.९५ प्रजापाल-(१) पाँचवाँ बलभद्र । पपु० २०.२३४
(२) पुष्कलावती देश की पुण्डरीकिणी नगरी का राजा। इसकी गुणवती और यशस्वती नाम की दो पुत्रियाँ तथा लोकपाल नाम का पुत्र था। इसने पुत्र को राज्य सौंपकर शिवकर वन में शीलगुप्त मुनि से संयम धारण कर लिया था। मपु० ४५.४८-४९,४६ १९-२०, पापु० ३.२०१
(३) जम्बुद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व की ओर स्थित सुकच्छ देश के श्रीपुर नगर का राजा। यह तीर्थङ्कर मल्लिनाथ के तीर्थ में हुए पद्म चक्रवर्ती के तीसरे पूर्वभव का जीव था। उल्कापात देखकर इसे प्रबोध हो गया था । फलस्वरूप इसने पुत्र को राज्य सौंपकर शिवगुप्त जिनेश्वर के पास संयम धारण कर लिया था। समाधिमरण से यह अच्युत स्वर्ग में इन्द्र हुआ तथा यहाँ से च्युत होकर वाराणसी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी राजा पद्मनाभ का पद्म नामक पुत्र हुआ। मपु० ६६.६७-७७
(४) विदेह क्षेत्र में पुष्कलावती देश के शोभानगर का राजा । मपु० ४६.९५ प्रजापालन-राजधर्म । न्यायवृत्ति से प्रजा को अपने धर्म के पालन में ___ यथेष्ट सुविधा देना राजधर्म है । मपु० ४२.१०-१४ प्रजावती-मिथिलेश कुम्भ को महादेवी । यह तीर्थकर मल्लिनाथ की __जननी थी। मपु० ६६.३२-६४ प्रजाहित-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२०७ प्रज्वलित-तीसरी मेघा नामक पृथिवी के छठे प्रस्तार का इन्द्रक बिल ।
हपु० ४.८०-८१
प्रख्यात-चक्रपुर नगर का राजा। इसकी रानी अम्बिका से पाँचवाँ
नारायण पुरुषसिंह उत्पन्न हुआ था । पपु० २०.२२१-२२६ प्रचण्डवाहन-त्रिशृंग नगर का राजा। इसकी रानी विमलप्रभा के दस
पुत्रियाँ थीं-गुणप्रभा, सुप्रभा, ह्री, श्री, रति, पद्मा, इन्दीवरा, विश्वा, आचर्या और अशोका । इन कन्याओं का विवाह युधिष्ठिर से करने का निर्णय लिया गया था किन्तु लाक्षागृह के दाह का समाचार पाकर इस निर्णय को समाप्त कर दिया गया था। इन कन्याओं ने
अणुव्रत धारण कर लिये थे । हपु० ४५.९६-९८ प्रचला-दर्शनावरण कर्म का एक भेद । हपु० ५६.९७ प्रचला-प्रचला-दर्शनावरण कर्म का एक भेद । हपु० ५६.९१ प्रच्छाल-भरतखण्ड के उत्तर का एक देश । यहाँ भगवान महावीर की
देशना हुई थी। हपु० ३.६
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