Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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प्रियमित्रा-प्रीतिकर
जैन पुराणकोश : २४३
के पश्चात् इसके चौदह रत्न और नौ निधियाँ स्वयमेव प्रकट हुई थों । दिग्विजय में इसने अनेक राजाओं को पराजित किया था। बत्तीस हजार मुकुटबद्ध नृप इसे सिर झुकाते थे। आयु के अन्त में समस्त वैभव का त्याग कर इसने क्षेमंकर मुनि से धर्मोपदेश सुना
और सर्वमित्र नामक पुत्र को राज्य देकर एक हजार राजाओं के साथ जिनदीक्षा ले ली। इसके पश्चात् निर्दोष संयम पालते हुए समाधिपूर्वक शरीर त्याग कर यह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और वहाँ से च्युत हो छत्रपुर नगर में वहां के राजा नन्दिवर्धन और उसकी रानी वीरमती का नन्द नामक पुत्र हुआ। यही आगे चलकर तीर्थंकर महावीर हुआ। मपु०७४.२३५-२४३, २७७-२७८, ७६.५४२, वीवच० ५.३५-५३, ७२-११७, १३४-१३६
(६) त्रिशृङ्गपुर नगर का निवासी एक सेठ । इसकी पत्नी सोमिनी से नयनसुन्दरी नामा एक पुत्री थी जिसे वह युधिष्ठिर को देने का निश्चय कर चुका था, पर लाक्षागृह की घटना के कारण युधिष्ठिर की अनुपस्थिति में उसे नहीं दे सका था। हपु० ४५.१००-१०४,
पापु० १३.११०-११३ प्रियमित्रा-(१) एक गणिनी (आर्यिका)। इसने विजया पर्वत के
वस्त्वालय नगर के राजा सेन्द्रकेतु की पुत्री मदनवेगा को दीक्षा दी थी। मपु० ६३.२४९-२५३
(२) सेठ कुवेरदत्त के पुत्र प्रीतिकर कुमार की बड़ी माँ । अपर नाम प्रियमित्रिका । मपु० ७६.३३१-३३३
(३) राजा मेघरथ की पत्नी, नन्दिवर्धन की जननी । यह अत्यधिक रूपवती थी । देव-सभा में इसके सौदर्य की प्रशंसा सुनकर रतिषेणा और रति नामा दो देवियाँ इसका रूप देखने के लिए स्वर्ग से आयी थीं। तैल मर्दन कराती हुई इसे देखकर वे देवियाँ संतुष्ट हुई किन्तु सुसज्ज अवस्था में इससे मिलकर उन्हें प्रसन्नता नहीं हुई थी। वे इसके बाद नश्वर रूप को धिक्कारती हुई वहाँ से चली गयीं। मपु० ६३.१४७-१४८, २८८-२९५ राजा और रानी दोनों विरक्त हो गये और राजा ने अपने पुत्र को राज्य देकर संयम धारण कर लिया । पापु० ५.७८-९५ प्रियवाक्-अन्धकवृष्णि के पुत्र धारण की भार्या । मपु० ७०.९९ दे०
धारण प्रियवत-भरतक्षेत्र के अरिष्टपुर का राजा। इसकी दो महादेवियाँ
थीं-कांचनाभा और पद्मावती। रानी पद्मावती से इसे रत्नरथ और विचित्ररथ नाम के दो पुत्र हुए । कांचनामा का अनुन्धर नाम का पुत्र हुआ। इसने इन पुत्रों के लिए राज्य छोड़ दिया । सल्लेखना के द्वारा देह त्यागा और यह स्वर्ग में देव हुआ । पपु० ३९.१४८-१५२ प्रियसेन-(१) जम्बू द्वीप के पूर्व विदेहक्षेत्र में स्थित पुष्कलावती देश की
पुण्डरीकिणी नगरी का राजा। यह सुन्दरी का पति और प्रीतिदेव तथा प्रीतिकर का पिता था। मपु० ९.१०८-१०९
(२) पुण्डरोकिणी नगरी के राजश्रेष्ठी कुबेरमित्र के पुत्र कुबेरकांत का अनुचर । मपु० ४६.१९-२१, ३२
प्रियानन्दा-लक्ष्मण की भार्या । पपु० ८३.९२-१०० प्रियालापा-राजा समुद्रविजय के लघुभ्राता अचल की महादेवी । हपु०
१९.२-५ प्रियोभव-गृहस्थ की श्रेपन क्रियाओं में छठी क्रिया । यह क्रिया प्रसूति
के पश्चात् की जाती है। इसमें सिद्धपूजा के पश्चात् जिन मन्त्रों का जाप किया जाता है वे ये है-दिव्यनेमिविजयाय स्वाहा, परमनेमिविजयाय स्वाहा, आहन्त्य नेमिविजयाय स्वाहा । मपु० ३८.५५, ८५
८६, ४०.१०८-१०९ प्रीतिकर-(१) वानरवंशी नृप । यह बहुरूपिणी विद्या के साधक रावण __ की क्रोधाग्नि भड़काने लंका गया था । पपु० ६०.५-६, ७०.१२-१६
(२) पुण्डरी किणी नगरी के राजा प्रियसेन और उसकी रानी सुन्दरी का पुत्र । प्रीतिदेव इसका सहोदर था । स्वयंप्रभ जिन से दीक्षा लेकर इसने अवधिज्ञान और आकाशगामिनी विद्याएँ प्राप्त की थीं और अन्त में यह केवली हुआ था। इसने मन्त्री स्वयंबुद्ध की पर्याय में तीर्थङ्कर वृषभदेव को उनके महाबल के भव में जैनधर्म का ज्ञान कराया था । मपु० ९.१०५-११०, १०.१-३३
(३) भरतक्षेत्र में छत्रपुर नगर के राजा प्रीतिभद्र और उसकी रानी सुन्दरी का पुत्र । यह धर्मरुचि नामक मुनि से धर्मोपदेश सुनकर तप करने लगा था। इसे क्षीरास्रव नाम की ऋद्धि प्राप्त हो गयी थी । साकेतपुर में चर्या के लिए जाने पर बुद्धिषेणा वेश्या ने इसी से उत्तम कुल की प्राप्ति का मार्ग जाना था। मपु० ५९.२५४-२६७, हपु० २७.९७-१०१
(४) सिंहपुर का राजा। इसने अपने पिता अपराजित से राज्य प्राप्त किया था। मपु० ७०.४८, हपु० ३४.४१
(५) वन । इसी वन में तीर्थंकर विमलनाथ के दूसरे पूर्वभव के जीव पद्मसेन ने सर्वगुप्त केवली से धर्मोपदेश सुना था। मपु० ५९.
(६) ऊर्ध्व ग्रैवेयक का विमान । मपु० ५९.२२७
(७) मगध देश के सुप्रतिष्ठ नगर के निवासी सेठ कुबेरदत्त और उसकी भार्या धनमित्रा का पुत्र । इसने पाँच वर्ष से पन्द्रह वर्ष तक मुनिराज सागरसेन से शास्त्रशिक्षा प्राप्त की। जब इसने दीक्षित होना चाहा तो उन्होंने ऐसा करने से उसे रोका। विवाह करने से पूर्व उसने धन कमाने का निश्चय किया और कई व्यापारियों तथा अपने भाई नागदत्त के साथ वह एक जलयान में सवार होकर भूमितिलक नगर में पहुंचा। वहाँ उसे महासेन की पुत्री वसुन्धरा मिली । इसे उसने बताया कि भीमक ने उसके पिता को मारकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया है और वह प्रजा को बहुत इष्ट देता है। प्रीतिकर ने उससे युद्ध किया और भोमक मारा गया। वसुन्धरा उसे अपना धन देकर उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। उसने बताया कि माता-पिता की आज्ञा से वह ऐसा कर सकता है । वसुन्धरा और धन को लेकर अपने जहाज़ पर आया। नागदत्त ने धन समेत
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