Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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जैन पुराणकोश : २२९
पूजा-गृहस्थ के चार प्रकार के धर्मों में एक धर्म। यह अभिषेक के
पश्चात् जल, गंध, अक्षत, पुष्प, अमृतपिण्ड (नैवेद्य), दीप, धूप और फल द्रव्यों से की जाती है। याग, यज्ञ, क्रतु, सपर्या, इज्या, अध्वर, मख और मह इसके अपरनाम हैं। मपु० ६७.१९३ यह चार प्रकार की होती है। सदार्चन, चतुर्मुख, कल्पद्रुम और आष्टाह्निक । इनके अतिरिक्त एक ऐन्द्रध्वज पूजा भी होती है जिसे इन्द्र किया करता है । पूजा के और भी भेद हैं जो इन्हीं चार पूजा-भेदों में अन्तभूत हो जाते है। मपु० ८.१७३-१७८, १३.२०१, २३.१०६, ३८.२६
३३, ४१.१०४, ६७.१९३ पूजाराष्यक्रिया-दीक्षान्वय की पांचवीं क्रिया । इसमें जिनेन्द्र-पूजा और
उपवासपूर्वक द्वादशांग का अर्थ सुना जाता है । मपु० ३८.६४, ३९.
पुष्यवती-पूरण
पुष्यमित्र था । मपु० ७४.७०-७४, ७६.५३५, वीवच० २.११२- ११८ दे० पुरूरवा
(३) एक नृप । इसने महावीर के निर्वाण के दो सौ पचपन वर्ष बाद तीस वर्ष तक राज्य किया था । हपु०६०.४८७-४८९ पुष्पवती-(१) विद्याधर चन्द्रगति की रानी। भामण्डल का पुत्रवत्
लालन-पालन तथा नामकरण इसी ने किया था। पपु० २६. १३०-१४९
(२) एक मालिन की पुत्री। यह पुष्पपालिता की बहिन थी। श्रावक के व्रतों को धारण करने के कारण यह स्वर्ग में मेनका देवी
हुई थी। मपु० ४६.२५७ पुष्पवन-भूत-पिशाच आदि से व्याप्त महाभयानक एक बन । अलंकार
पुर के राजा सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा ने विद्यासिद्धि इसी धन में की
थो । पपु० ७.१४६ पुष्पवृष्टि-केवलज्ञान की प्राप्ति पर तथा मुनियों को पारणा के
पश्चात् देवों द्वारा की जानेवाली पुष्पवर्षा । यह अष्ट प्रातिहार्यों में एक प्रातिहार्य एवं पंचाश्चयाँ में एक आश्चर्य है। मपु० ६.८७, ८. १७३-१७५, २४.४६, ४९ पुष्पान्तक-(१) सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा द्वारा बसाया गया नगर । पपु० १.६१
(२) असुरसंगीतनगर के राजा विद्याधर मय का विमान । पपु० ८.१९ पुष्पोत्तर-(१) रत्नपुर नगर का राजा एक विद्याधर । यह अपने पुत्र
पदमोत्तर के लिए श्रीकण्ठ की बहिन चाहता था, परन्तु श्रीकण्ठ ने अपनी बहिन पद्मोत्तर को न देकर पद्मोत्तर की बहिन पद्माभा को स्वयं विवाह लिया था । पपु० ६.७-५२
(२) स्वर्ग । तीर्थङ्कर श्रेयान्, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और महावीर इसी स्वर्ग से च्युत होकर तीर्थङ्कर हुए थे । पपु० २०. ३१-३५ मपु० के अनुसार यह अच्युत स्वर्ग का एक विमान है । मपु० ५७.१४
(३) अच्युत स्वर्ग का एक विमान । तीर्थवर अनन्तनाथ पूर्वभव में इसी विमान में इन्द्र थे । मपु० ६०.१२-१४ पुष्य-एक नक्षत्र । तीर्थजूर धर्मनाथ ने इसी नक्षत्र में जन्म लिया __ था । पपु० २०.५१ पुष्यमित्र-यह मरीचि का जीव था और भारद्वाज की भार्या पुष्पदत्ता
का पुत्र था। यह पारिव्राजक हुआ और इसने संख्यात तत्त्वों का उपदेश दिया । मरकर यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ। अनेक पर्यायों के पश्चात् यह चौबीसयाँ तीर्थकर महावीर हुआ। मपु०७४.६६-७३
दे० महावीर पुस्तकर्म-लकड़ी आदि से बनाये जानेवाले खिलौने । यह क्षय, उपचय
और संक्रम के भेद से तीन प्रकार का होता है। यन्त्र, नियन्त्र, सछिद्र और निश्छिद्र ये भी इसके भेद होते हैं । मपु० २४.३८-४० पूगी-सुपारी । यह समुद्र के किनारे की भूमि में सम्पन्न होती है।
भरतेश दक्षिण विजय के समय पूगी-चनों में गये थे । मपु० ३०.१३
पूजाह-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.११२ पूज्य-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९१ पूज्यपाद-व्याकरण के पारगामी देवनन्दी आचार्य । अपरनाम जिनेन्द्र
बुद्धि और देवेन्द्रकीर्ति । पापु० १.१६ पूत-भरतेश और सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
२४.३७, २५.१३६ पूतगन्धिका-रुक्मिणी के भवान्तर का एक नाम । हपु० ६०.३३ पूतन-विन्ध्याचल का एक यक्षाधिपति । इसने राम और लक्ष्मण को क्रमशः बलभद्र और नारायण जानकर उनके रहने के लिए एक नगर
की रचना की थी। पपु० ३५.४३-४५ पतना-एक व्यन्तर देवी। यह पूर्वकाल में कंस द्वारा सिद्ध की गयी
सात व्यन्तर देवियों में एक देवी थी। इसे विभंगावधिज्ञान था। कंस के आदेश से उसके शत्रु कृष्ण को खींचकर इसने उसे (कृष्ण को) मारना चाहा था। यह माता का रूप धारण करके उसके पास गयी थी। अपने विष भरे स्तन से जैसे ही इसने दूध पिलाने की चेष्टा की कि कृष्ण की रक्षा करने में तत्पर किसी दूसरी देवी ने इसके स्तन में असह्य पीड़ा उत्पन्न की जिससे यह अपने उदेश्य में
सफल नहीं हो सकी । मपु० ७०.४१४-४१८ पूतवाक्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
पूतशासन-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
पूतात्मा-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१११ पूतिका-मन्दिर ग्राम के निवासी त्रिपद धीवर और उसकी पत्नी मण्डूकी
की पुत्री । माता द्वारा त्यागे जाने पर समाधिगुप्त नामक मुनिराज द्वारा दिये गये उपदेश को ग्रहण करके इसने सल्लेखनापूर्वक मरण किया और अच्युत स्वर्ग में अच्युतेन्द्र को गगनवल्लभा नाम की महादेवी हुई। इसका दूसरा नाम पूतिगन्धिका था। मपु० ७१.३३८३४०, हपु० ६०.३३-३८ पूतिनन्धिका-दे० पूतिका । पूरण-अन्धकवृष्टि और उसकी रानी सुभद्रा के दस पुत्रों में सातवाहपु
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