Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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नमुचि-नरक
जैन पुराणकोश : १९३ स्वाति नक्षत्र के योग में जन्में थे। यह नाम इन्हें देवों ने दिया था। परस्पर सापेक्ष हैं। वैसे नय सात होते हैं-नैगम, संग्रह, इनकी आयु दस हजार वर्ष, शारीरिक अवगाहना पन्द्रह धनुष और व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । इन सात नयों कान्ति स्वर्ण के समान थी। कुमारकाल के अढ़ाई हजार वर्ष बीत में आरम्भ के तीन द्रव्याथिक और शेष चार पर्यायाथिक नय हैं। जाने पर इन्होंने अभिषेकपूर्वक राज्य किया था । मपु० २.१३३-१३४, निश्चय और व्यवहार इन दो भेदों से भी नय का कथन होता है। ६९.१८-३४, पपु० १.१२, ५.२१५, हपु० १.२३, वीवच० १.३१, मपु० २.१०१ पपु० १०५.१४३, हपु० ५८.३९-४२ १८ १०७ । हरिवंशपुराणकार ने इनकी आयु पन्द्रह हजार वर्ष तथा (२) यादवों का पक्षधर एक राजा । हपु० ५०.१२१ तीर्थ पाँच लाख वर्ष का कहा है । हपु० १८.५ राज्य करते हुए पाँच नयचक्र-नीति से युक्त सुदर्शन चक्र-रत्न । मपु० २४.१८६ हजार वर्ष पश्चात् सारस्वत देवों द्वारा पूजे जाने पर उत्पन्न वैराग्य- नयदत्त-जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के एकक्षेत्र नगर का एक वणिक् । वश इन्होंने अपने पुत्र सुप्रभ को राज्याभार सौंपा था तथा देवों द्वारा इसकी सुनन्दा नाम की स्त्री और धनदत्त नाम का पुत्र था। पपु० किये गये दोक्षाकल्याणक को प्राप्त कर ये उत्तर कुरु नाम की पालकी
१०६.१०-११ में बैठकर चैत्रवन गये थे । वहाँ इन्होंने आषाढ़ कृष्ण दशमी के दिन नयन-राजा सुभानु का पुत्र और राजा भीम का पिता । इसने पुत्र को अश्विनी नक्षत्र में सार्यकाल के समय एक हजार राजाओं के साथ
राज्य सौंप कर दोक्षा ले ली थो । हपु० १८.३-४ संयम धारण किया था। इनको उसी समय मनःपर्ययज्ञान प्राप्त हो ____ नयनसुन्दरो-त्रिशृंगपुर के निवासी सेठ प्रियमित्र और उसकी पत्नी गया था। बीरपुर नगर में राजा दत्त ने इन्हें आहार देकर पंचाश्चर्य
सोमिनी की पुत्री । यह पाण्डव युधिष्ठिर की पत्नी थी। हपु० ४५. प्राप्त किये थे । छद्मस्थ अवस्था के नौ वर्ष बीत जाने पर ये दीक्षावन
१००-१०२, पापु० १३.१११-११३ में बकुल वृक्ष के नीचे वेला का नियम लेकर ध्यानारूढ़ हुए और इन्हें
नयनानन्द-पश्चिम विदेहक्षेह में विजयाध पर्वत के नन्द्यावत नगर के मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन सायंकाल के समय केवल
राजा नन्दीश्वर तथा उसकी कनकाभा नाम की रानी का पुत्र । इसने ज्ञान हुआ । इनके संघ में सुप्रभायं सहित सत्रह गणधर, चार सौ
चिरकाल तक विशाल लक्ष्मी का उपभोग करने के बाद मुनि-दीक्षा पचास समस्त पूर्वो के ज्ञाता, बारह हजार छः सौ व्रतधारी शिक्षक,
धारण को थी तथा समाधिमरण पूर्वक शरीर त्यागकर माहेन्द्र स्वर्ग एक हजार छः सौ अवधिज्ञानी, इतने ही केवलज्ञानो, पन्द्रह सौ
प्राप्त किया था। पपु० १०६.७१-७३ विक्रिया ऋद्धिधारी, बारह सौ पचास परिग्रह रहित मनः पर्ययज्ञानो
नयुत-नयुतांग प्रमित काल में चौरासी लाख का गुणा करने पर प्राप्त और एक हजार वादी थे। कुल मुनि बोस हजार, पंतालोस हजार
संख्या प्रमित समय । मपु० ३.१३५, २२२ आयिकाएँ, एक लाख श्रावक, तीन लाख श्राविकाएं तथा असंख्यात
नयुतांग-पूर्व प्रमित काल में चौरासी का गुणा करने से प्राप्त समय । देव-देवियाँ और असंख्यात तिथंच थे। इन्होंने आर्यक्षेत्र में अनेक
___ मपु० ३.१४०, २१९-२२२ स्थानों पर विहार किया था। आयु का एक मास शेष रह जाने पर विहार बन्द कर ये सम्मेदगिरि पर आये और एक हजार मुनियों के
नयोत्संग-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८०
नरक-चार गतियों में एक गति । यहाँ निमिषमात्र के लिए भी सुख साथ प्रतिमायोग धारण कर वैशाख कृष्ण चतुर्दशी के दिन रात्रि के
नहीं मिलता। ये सात हैं, उनके क्रमशः नाम ये हैं-रत्नप्रभा, अन्तिम समय अश्विनी नक्षत्र में मोक्ष गये । देवों ने निर्वाणकल्याणक
शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमप्रभा और महातमःमनाया था । मपु० ६९.३५, ५१-६९ दूसरे पूर्वभव में ये जम्बूद्वीप के
प्रभा । ये तीनों वात-वलयों पर अधिष्ठित तथा क्रम से नोच-नीचे भरतक्षेत्र में वत्स देश की कौशाम्बी नगरी के राजा पार्थिव और
स्थित है। इनके क्रमशः रूढ़ नाम हैं-धर्मा, वंशा, मेघा, अंजना, उनकी सुन्दरी नामक रानी के सिद्धार्थ नामक पुत्र तथा प्रथम पूर्वभव
अरिष्टा, मघवी और माधवी । पहलो पृथिवी में नारकी जीव जन्ममें अपराजित नामक विमान में अहमिन्द्र थे। मपु० ६९.२-४, १६,
काल में सात योजन सवा तीन कोस ऊपर आकाश में उछलकर पुनः पपु० २०.१४-१७, हपु० ६०.१५५
नीचे गिरते हैं । अन्य छः पृथिवियों में उछलने का प्रमाण क्रम से उत्तनमुचि-(१) सुराष्ट्र देश में अजाखुरी नगरो के राजा राष्ट्रवर्धन और
रोत्तर दूना होता जाता है । उत्पन्न होते समय यहाँ जीवों का मुंह उसकी रानो विनया का पुत्र । नीति सम्पन्न, गुणवान् तथा पराक्रमी
नीचे रहता है। अन्तमुहूर्त में ही दुर्गन्वित, धृणित, बुरी आकृतिवाले होते हुए भी यह बड़ा अभिमानो था । कृष्ण ने इसे मारकर इसकी
शरीर की रचना पूर्ण हो जाती है। शरीर-रचना पूर्ण होते ही भूमि बहिन सुसीमा का अपहरण किया था। हपु० ४४.२६-३०
में गड़े हुए तोक्षण हथियारों पर ऊपर से नारकी जीव गिरते हैं (२) उज्जयिनी के राजा श्रीधर्मा का एक मंत्री । यह मन्त्रमार्ग का
और सन्तप्त भूमि पर भाड़ में डले तिलों के समान पहले तो उछलते वेत्ता था । हपु० २०.३-४
हैं और फिर वहाँ जा गिरते हैं। तीसरी पृथिवी तक असुरकुमार नय-(१) वस्तु के अनेक धर्मों में विवक्षानुसार किसी एक धर्म का बोधक देव नारकियों को परस्पर लड़ाते हैं। नारको स्वयं भो पूर्व वैरवश
ज्ञान । इसके दो भेद है-द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक । इनमें द्रव्या- लड़ते है। खण्ड-खण्ड होने पर भो पारे के समान यहाँ नारकियों के थिक यथार्थ और पर्यायाथिक अयथार्थ है । ये ही दो मूल नय है और शरीर के टुकड़ों का पुनः समूह बन जाता है। वे एक दूसरे के द्वारा
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