Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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न्यायशास्त्रकृत-पंचकल्याणक
न्यायशास्त्रकृत — सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु०
२५.११५
प
पंक - छठी नरकभूमि के हिम इन्द्रक बिल की दक्षिण दिशा में स्थित महानरक । हपु० ४.१५७
पंकजगुल्म —- तीर्थंकर वासुपूज्य के पूर्वजन्म का नाम । पपु० २०.२०-२४ कप्रभा - चौथी नरकभूमि, अपरनाम अंजना । यहाँ दस लाख बिल हैं । नारकियों की उत्कृष्ट आयु दस सागर प्रमाण तथा उनके शरीर की ऊँचाई बासठ धनुष दो हाथ होती है । वे मध्यम नील लेश्यावाले होते हैं । मपु० १०.३१-३२, ९० ९४, ९७, हपु० ४.४४, ४६, इस नरकभूमि की मुटाई चौबीस हजार योजन है। इस पृथिवी के सात प्रस्तारों में क्रम से निम्न सात इन्द्रक बिल हैं - १. आर, २. तार, ३. मार, ४. वर्चस्क, ५. तमक, ६. खड और ७. खडखड, हपु० ४.८२, इनमें आर इन्द्रक बिल की चारों दिशाओं में चौसठ और विदिशाओं में साठ श्रेणीबद्ध बिल हैं । अन्य इन्द्रक बिलों की संख्या निम्न प्रकार है
नाम इन्द्रक बिल, चारों दिशाओं में, विदिशाओं में
तार
५६
मार
५२
वर्चस्क
४८
तमक
૪૪
खड
६०
५६
५२
४८
४४
४०
खडखड
४०
३६
इस प्रकार इस भूमि में इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या सात सौ सात तथा प्रकीर्णक बिलों की
संख्या ९९९२९३ है । इस भूमि के आर इन्द्रक बिल के पूर्व में निःसृष्ट, पश्चिम में अतिनिःसृष्ट, दक्षिण में निरोध और उत्तर में महानिरोध नाम के चार महानरक हैं । यहाँ दो लाख बिल संख्यात और आठ लाख बिल असंख्यात योजन विस्तार वाले हैं । हपु० ४.५७, १२९-१६४ इन्द्रक बिलों का विस्तार निम्न प्रकार है-आर-१४, ७५००० योजन, तार १३८३, ३३३ योजन और एक योजन के तीन भाग प्रमाण, मार- १२,९१,६६६ योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण, वर्चस्क- १२०००० योजन, तमक - ११०८३३३ योजन • और तीन भागों में एक भाग प्रमाण, खड- १०१६६६६ योजन और एक योजन के तीन भागों में दो भाग प्रमाण तथा खडखड नाभक इन्द्रक का ९२५००० योजन है। इस पृथिवी के इन्द्रकों की मुटाई अढ़ाई कोस, श्रेणीबद्ध बिलों की तीन कोस और एक कोस के तीन भागों में एक भाग तथा प्रकीर्णक बिलों की पाँच कोस और एक कोस के छः भागों पाँच भाग प्रमाण हैं । इन्द्रक बिलों का विस्तार छत्तीस सौ पैंसठ योजन और पचहत्तर सो धनुष तथा एक धनुष के नौ भागों में पाँच भाग प्रमाण तथा प्रकीर्णक बिलों का विस्तार
- छत्तीस सौ चौसठ योजन, सतहत्तर सौ बाईस धनुष और एक धनुष
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जैन पुराणकोश : २०७
के नौ भागों में दो भाग प्रमाण है । हपु० ४.२०३-२३९ इस पृथिवी के इन्द्रक बिलों के नारकियों की उत्कृष्ट और जघन्य स्थिति निम्न प्रकार है
नाम इन्द्रक बिल
आर
उत्कृष्ट स्थिति
७
७ सा
८३ सागर
८५ सागर
९७ सागर
९४ सागर
१० सागर
जघन्य स्थिति
७ सागर
तार
मार
वर्चस्क
तमक
खड खडखड
हपु० ४.२७९-२८५
इन इन्द्रक बिलों में नारकियों की ऊंचाई निम्न प्रकार होती हैआरतीस धनुष दो हाथ, वीस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में चार भाग प्रमाण ।
७ सागर
७७ सागर
८५ सागर
८५ सागर
९ सागर
९४ सागर ।
तार- चालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण ।
मार चवालीस धनुष, दो हाथ, तेरह अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में पाँच भाग प्रमाण ।
वर्चस्क — उनचास धनुष, दस अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में दो भाग प्रमाण ।
तमक — त्रेपन धनुष, दो हाथ, छः [अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में छः भाग प्रमाण ।
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खड - अठावन धनुष, तीन अंगुल और एक अंगुल के सात भागों में तीन भाग प्रमाण ।
खडखड – बासठ धनुष, दो हाथ प्रमाण । हपृ० ४.३२६-३३२ इस पृथिवी तक के नारकी उष्ण वेदना से दुःखी होते हैं । यहाँ नारकियों के जन्मस्थान गो, गज, अश्व और धौकनी, नाव तथा कमल के आकार के होते हैं। इस पृथिवी के निगोदों में जन्मनेवाले जीव बासठ योजन दो कोस ऊँचे उछलकर नीचे गिरते हैं । यहाँ तीव्र मिथ्यात्वी और परिग्रही तियंच तथा मनुष्य जन्मते हैं । सर्प इसी पृथिवी तक जाते हैं । जीव यहाँ से निकलकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है किन्तु तीर्थर नहीं हो सकता । हपु० ४.३४६-३८०
पंक रत्नप्रभा पृथिवी के तीन भागों में द्वितीय भाग यह भाग चौरासी हजार योजन मोटा है। यहां राक्षसों और असुरकुमारों के रत्नमय देदीप्यमान भवन होते हैं। हपु० ४.४७-५० पंकवती पूर्वविदेह क्षेत्र की बारह विभंगा-नदियों में तीसरी नदी ।
मपु० ६३, २०५ २०७
पंचकल्याणक - तीर्थकरों के गर्भ, जन्म, तप, दीक्षा / निष्क्रमण और निर्वाणकल्याण । इन कल्याणकों के समय सोलह स्वर्गों के देव और इन्द्र स्वयमेव आते हैं । तीर्थंकर प्रकृति के प्रभाव से स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतार
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