Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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जगत्-त्रय-जघन्यसिंहनिष्क्रीडित
जैन पुराणकोश : १३३
जघन्यवातकुम्भ-एक व्रत । इसमें उपवास और पारणाओं का क्रम निम्न प्रकार रहता हैउपवास
पारणा
जगत्-त्रय-ऊर्ध्वलोक, मध्यलोक और अधोलोक । मपु० २.११९ चगत्पति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१०४, ११८ जगत्पादगिरि–किष्किन्धा के पास एक पर्वत । यह शिवघोष मुनि की निर्वाण भूमि है। लक्ष्मण ने सात दिन तक निराहार रहकर इसी पर्वत पर प्रज्ञप्ति नाम की विद्या सिद्ध की थी। मपु० ६८.४६८
४६९ जगत्पाल-(१) सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
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(२) एक चक्रवर्ती । यह श्रीपाल का पूर्ववर्ती था। मपु० ४७.९ 'जगत्स्थामा-भार्गवाचार्य की वंश परम्परा में हुए कपिष्ठल का शिष्य
तथा सरवर का गुरू । हपु० ४५.४६ जगदग्रज-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९५ जगदादिज-सौधर्मेन्द्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१४७ जगदगर्भ-सौधर्मेन्द्र देव द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१८१ जगद्धित-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम | मपु० २५.१०८ चद्धितेषिन्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.
१९५ जगद्वन्धु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९५ जगद्धीभत्स-रावण का एक योद्धा। हस्त और प्रहस्त के मारे जाने के
बाद यह अनेक योद्धाओं के साथ राम को सेना से लड़ा था। पपु०
६०.२ जगभर्तृ-भरतेश द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २४.३२ जगाति-पुष्कर द्वीप में चन्द्रादित्य नगर के राजा प्रकाशयश और
उसको रानी माधवी का पुत्र । यह संसार से भयभीत रहता था। वृद्ध मंत्री उपदेश देकर बड़ी कठिनाई से इससे राज्य का संचालन कराते थे। राज्य कार्य में स्थिर रहता हुआ यह सदा मुनियों को आहार देता था। अन्त में यह मरकर देवकुरू भोगभूमि गया और वहाँ से मरकर ऐशान स्वर्ग में देव हुआ । पपु० ८५.९६-१०० जगद्योनि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३४ जगद्विभु-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९५ जगन्नन्दन-(१) राजा महीधर के दीक्षागुरू-एक मुनि । मपु० ७.३९
(२) एक चारण ऋद्धिधारी मुनि, नाभिनन्दन मुनि के साथी और ज्वलनजटी विद्याधर के दीक्षागुरू । मपु० ६२.५०, १५८. पापु० ४.
कुल ४५
१७ हपु० ३४.७७ जवन्य सिंहनिष्क्रीडित-एक व्रत । इसमें उपवास और पारणाओं का क्रम निम्न प्रकार रहता हैउपवास
पारणा
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जगन्नाडी-लोकनाडी । अपरनाम भरुनाडी । यह एक राजु चौड़ी, एक
राजु मोटी और चौदह राजु ऊँची नाड़ी है । मपु० २.५० जगन्नाथ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१९५ जवन्यपात्र-अविरत सम्यग्दृष्टि । हपु०७.१०९
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