Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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२५६ : जैन पुराणकोश
त्यागी-त्रिपृष्ठ
१०१.८१
औषध, शास्त्र और अभय (वसतिका) के भेद से चार प्रकार का होता (२) लवणांकुश और मदनांकुश द्वारा विजित एक देश । पपु० है। मपु० ४.१३४, १५.२१४, २०.८२, ८४ त्यागी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१८४ त्रि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.७६ त्रस-स्थावर जीवों को छोड़कर दो इन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीव । त्रिवण्डी–त्रिदण्डधारी परिव्राजक । ये भगवान् वृषभदेव के साथ दीक्षित
ये वध, बन्धन, अवरोध तथा जन्म, जरा और मरण आदि के दुःख हुए थे पर परीषह सहने में असमर्थ तथा वनदेवता के वचन से भयाभोगते हैं। मपु० १७.२५-२६, ३४.१९४, ७४.८१, पपु० १०५.
क्रान्त होकर पथभ्रष्ट हो गये थे। ये वृक्षों की छाल पहिनने लगे थे
और स्वच्छ जल पीकर तथा कन्दमूल खाकर वन में निर्मित कुटियों में प्रसरेणु-आठ त्रुटि-रेणुओं का एक त्रसरेणु । हपु० ७.३८
रहते थे । मपु० १८.५१-६० असित-रत्नप्रभा पृथिवी के दसवें प्रस्तार का इन्द्रक बिल । यहाँ नार- त्रिदशंजय-अयोध्या के राजा धरणोधर और उसकी रानी श्रीदेवी का कियों के शरीर की ऊंचाई छः धनुष और साढ़े चार अंगुल प्रमाण पुत्र । यह इन्द्ररेखा का पति और जितशत्रु का पिता था। इसने होती है । हपु० ४.७७, ३०२ |
पोदनपुर नगर के राजा व्यानन्द और उसको रानी अम्भोजमाला की त्रस्त-धर्मा नामक प्रथम नरकभूमि के नवें प्रस्तार का इन्द्रक बिल । पुत्री विजया के साथ अपने पुत्र का विवाह किवा । अन्त में अपने पुत्र
यहाँ के निवासियों की पाँच धनुष एक हाथ बीस अंगुल प्रमाण को राज्य सौंप कर यह दीक्षित हो गया। इसने कैलास पर्वत पर ऊंचाई होती है । हपु० ४.४४, ३०१
मोक्ष प्राप्त किया था । पपु० ५.५९-६२ त्राता-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१४२ ।। त्रिवशाध्यक्ष-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम। मपु० त्रास्त्रिश-इन्द्र के प्रिय तैतीस देव। मपु० १०.१८८, २२.२५, २५.१८२ वीवच० ६.१२९, १४.२९
त्रिनेत्र-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२१५ त्रिकलिंग-आर्यखण्ड के दक्षिण का एक देश । यह कलिंग का एक
त्रिपद-मण्डूक ग्राम का निवासी एक धीवर । हपु० ६०.३३ भाग था । मपु० २९.७९
त्रिपर्वा-सोलह विद्या-निकायों की एक विद्या । हपु० २२.६७ त्रिकालदर्शी-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
त्रिपातिनी-सोलह विद्या-निकायों की एक विद्या । हपु० २२.६८ २५.१९१
त्रिपुट-एक अन्न (तेवरा) । मपु० ३.१८८ त्रिकालविषयार्थदृश्-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । त्रिपुर-(१) विन्ध्याचल के ऊपर स्थित एक पहाड़ी देश । यहाँ भरतेश मपु० २५.१८८
का एक भाई राज्य करता था। यह उनकी अधीनता स्वीकार न करके त्रिकूट-(१) पूर्व विदेहक्षेत्र का वक्षारगिरि। मपु० ६३.२०२, हपु० दीक्षित हो गया था । हपु० ११.७३ , ५.२२९
(२) विजया का एक नगर । यहाँ विद्याधर ललितांग का राज्य (२) लवणसमुद्र के राक्षस द्वीप का मध्यवर्ती, चूडाकार शिखर
था। मपु० ६२.६७, ६३.१४, पपु० २.३६, ५५.२९ से युक्त, नौ योजन उत्तुंग और पचास योजन विस्तृत लंका का
(३) दशानन का पक्षधर एक विद्याधर । यह रावण के साथ आधारभूत एक पर्वत । मपु० ४.१२७, ३०.२६, पपु० ५.१५२-१५८
पाताल लंका गया था । पपु० १०.२८, ३७ त्रिगर्त-भरतक्षेत्र के मध्य आर्यखण्ड का एक देश । हपु० ३.३, ११.६५
त्रिपुरारि-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.२१५ त्रिगुप्ति-मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति से सम्बन्धित एक व्रत।
त्रिपृष्ठ-(१) पोदनपुर के महाराजा प्रजापति तथा महारानी मृगाक्ती इसमें नौ-नौ उपवासों का विधान होने से तीनों के सत्ताईस उपवास
का पुत्र-प्रथम नारायण । यह राजा की प्रथम रानी जयावती के पुत्र और इतनी ही पारणाएं की जाती हैं । हपु० ३४.१००, १०६
विजय बलभद्र का भाई था और तीर्थकर श्रेयांसनाथ के तीर्थ में हुआ त्रिचूड-द्विचूड का पुत्र । यह वजचूड का पिता और विद्याधर दृढ़रथ
था । मपु० ५७.८४-८५, ६२.९०, पपु० २०.२१८-२८८, हपु० ५३. का वंशज था । पपु० ५.४७-५६
३६, ६०.२८८, पापु० ४.४१-४४, वीवच० ३.६१-६७ इसका रथनूत्रिजगत्पतिपूज्योति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० पुर नगर के राजा विद्याधर ज्वलनजटी की पुत्री स्वयंप्रभा से विवाह
२५.१९० त्रिजगत्परमेश्वर-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
हुआ था । इसने ज्वलनजटी से सिंह एवं गरुड़वाहिनी विद्याएँ प्राप्त २५.११०
की थीं। इसकी शारीरिक अवगाहना अस्सी धनुष और आयु चौरासी त्रिजगवल्लभ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु.
लाख वर्ष थी । ये दोनों भाई अलका नगरी के राजा विद्याधर मयूर२५.१९०
ग्रोव के पुत्र प्रतिनारायण अश्वग्रोव को मारकर तीन खण्ड पृथ्वी के त्रिजगन्मंगलोदय-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु०
स्वामी हुए थे । सब मिलाकर सोलह हजार मुकुटबद्ध राजा, विद्याधर २५.१९०
और व्यन्तर देव इसके अधीन थे। धनुष, शंख, चक्र, दण्ड, असि, त्रिजट-(१) रावण का पक्षधर एक विद्याधर । यह रावण के साथ शक्ति और गदा ये इसके सात रल थे । इसकी सोलह हजार रानियाँ पाताल लंका गया था। पपु० ५.३९५, १०.३६-३७
थीं। स्वयंप्रभा इनकी पटरानी थी। इससे दो पुत्र-विजय और विजय
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