Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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खण्डकापात-गंगमित्र
जैन पुराणकोका : १०५
अंग, स्फटिक, चन्द्राभ, वर्चस्क और बहुशिलामय । ये पटल एक-एक
हजार योजन मोटे हैं । हपु० ४.४७-५५। खर्वट-पर्वत से संरुद्ध नगर । इसके अधीन दो सौ गाँव होते हैं।
मपु० १६.१७१, १७५, हपु० २.३ अपरनाम कर्वट । पापु० २.१५९ खलूरिका-आयुधशाला-धनुर्विद्या सीखने का स्थान । मपु० ७५.४२२ खस–एक जनपद । यहाँ के निवासी भी खस ही कहलाते हैं । पपु०
१०१.८३ . खादिर-एक वन । यहाँ राम ने रावण के विरुद्ध लक्ष्मण के नायकत्व
में सुग्रीव आदि की सेना भेजी थी। मपु० ६८.४६०-४६२ खेचरनाथ-विद्याधरों का स्वामी नमि । हपु० १३.२० खेचरभानु-राजा वज्रायुध और उसकी रानी वज्रशीला का पुत्र । यह वजपंजर नगर में रहता था । आदित्यपुर के राजा विद्यामन्दिर की पुत्री श्रीमाला के स्वयंवर में यह आया था। पपु० ६.३५७-३६३,
खेचरादि-विजयाध पर्वत । मपु० ४.१९८ खेचरानन्द-वानरवंशी एक नृप । यह गगनानन्द का पुत्र और गिरि
नन्दन का पिता था । पपु० ६.२०५-२०६ खेट-नदी और पर्वत से घिरा हुआ ग्राम, नगर । मपु० १६.१७१, हपु०
खण्डकप्रपात-(१) भरतक्षेत्रस्थ विजया पर्वत के नौ कूटों में तीसरा
कूट । इसका विस्तार मूल में सवा छः योजन, मध्य में कुछ कम पाँच योजन और ऊपर कुछ अधिक तीन योजन है । हपु० ५.२६, २९
(२) ऐरावत क्षेत्रस्थ विजया पर्वत के नौ कूटों में सातवाँ कूट । हपु० ५.१११ खण्डकापात-भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की एक गुहा । हपु० ११.५३ खण्डवन-एक वन । महावीर की दीक्षा भूमि । अपरनाम षण्डवन । अर्जुन
ने एक ब्राह्मण से अग्नि, जल, सर्प, गरुड, मेघ आदि बाण प्राप्त किये थे । उनमें से दावानल नामक बाण से उसने इसे जलाया था।
मपु० ७४.३०२-३०४, पापु० १६.६५-७६, वीवच० १२.८६-८७ खण्डिका-भरतक्षेत्र के विजया पर्वत की उत्तरश्रेणी की नगरी । हपु०
२२.८९ खतिलक-एक देश । यहाँ के निवासी भी खतिलक ही कहलाते थे।
पपु० ५५.२९ खदिर-एक वन । प्रद्युम्न अपने वैरी के द्वारा इसी अटवी में तक्षक शिला के नीचे दबाया गया था । मपु० ७२.५१-५३, हपु० ४३.४७
४८ खविरसार-जम्बूद्वीपस्थ विंध्याचल पर्वत के कुटज या कुटव वन का निवासी भील । यह राजा श्रेणिक के तीसरे पूर्वभव का जीव था। इसने समाधिगुप्त योगी से काकमांस न खाने का नियम लिया था। असाध्यरोग होने तथा उसके उपचार हेतु काक-मांस बताये जाने पर भी इसने उस मांस को नहीं खाया। अपने व्रत का निर्वाह करते हुए इसने समाधिमरण किया और यह सौधर्म स्वर्ग में देव हुआ । वहाँ से च्युत होकर श्रेणिक हुआ । मपु० ७४.३८६-४१८, वीवच० १९.९६११२, १२०-१२६, १३४-१३५ खनि-खान-आजीविका का एक साधन । मपु० २८.२२ खमाली-एक तापस । कनकेशी इसकी स्त्री और मृगशृंग इसका पुत्र
था । चन्द्राभ विद्याधर को देखकर इसने विद्याधर होने का निदान किया । इसके फलस्वरूप यह मरकर राजा वजदंष्ट्र का विद्युदंष्ट्र
नामक पुत्र हुआ । हपु० २७.११९-१२१ खर-रावण का सहयोगी एक विद्याधर । इसने कमलकेतु के साथ मामा
मय युद्ध किया था। मपु० ६८.६२०-६२२। खरदूषण-मेघप्रभ का पुत्र । इसने रावण की बहिन चन्द्रनखा का अप
हरण करके उसके साथ विवाह किया था। यह चौदह हजार विद्याघरों का स्वामी, रावण का सेनापति और शम्बूक तथा सुन्द का पिता था । लक्ष्मण ने इसे सूर्यहास खड्ग से मारा था । पपु० ९.२२३८,१०.२८, ३४, ४९, ४३.४०-४४, ४५.२२-२७ खरनाव-रावण का सिंहरथासीन एक सामन्त । पपु० ५७.४७-४८ खरभाग-प्रथम पृथ्वी रलप्रभा के खर, पंक और अब्बहुल इन तीन
भागों में प्रथम भाग । यह सोलह हजार योजन मोटा, नौ भवनवासियों का आवास स्थान और स्वयं जगमगाते हुए नाना प्रकार के भवनों से अलंकृत है । इसके सोलह पटल है-चित्रा, वजा, वैडूर्य, लोहितांक, मसारगल्व, गोमेद, प्रवाल, ज्योति, रस, अंजन, अंजनमूल, १४
गंग-(१) भरतक्षेत्रस्थ कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर के राजा
गंगदेव अर रानी नन्दयशा का गंगदेव के साथ युगल रूप में उत्पन्न मुत्र । इसके चार भाई और थे। इनके नाम हैं-नन्द, सुनन्द, नन्दिषेण और निर्नामक । मपु० ७१,२६१-२६५ हरिवंश पुराण में गंगदेव को गंगदत्त बताया है। हपु० ३३.१४२-१४३
(२) महावीर के निर्वाण के पश्चात् एक सौ बासठ वर्ष का समय निकल जाने पर एक सौ तेरासी वर्ष के काल में हुए दस पूर्व और ग्यारह अंग के धारी ग्यारह मुनियों में दसवें मुनि । वीवच० १.४६
अपरनाम गंगदेव । मपु० २.१४४ गंगदत-(१) गंग का भाई । हपु० ३३.१४२-१४३ दे० गंग
(२) राजा जरासन्ध का एक पुत्र । हपु० ५२.३३ गंगदेव-(१) हस्तिनापुर का राजा और नन्दयशा का पति । इसके सात पुत्र हुए थे। यह देवनन्द पुत्र को राज्य देकर द्रु मषेण मुनि से दो सौ राजाओं के साथ दीक्षित हो गया था। मपु० ७१.२६१-२६५, हपु० ३३.१६३ दे० गंग
(२) हस्तिनापुर के राजा गंगदेव का पुत्र, गंग के साथ युगल रूप में उत्पन्न । मपु० ७१.२६१-२६५ दे० गंग
(३) दस पूर्व और ग्यारह अंगधारी ग्यारह मुनियों में दसवें मुनि । दे० गंग । मपु० २.१४१-१४५, ७६.५२१-५२४, हपु० १.६३
(४) कुरुवंशी राजा धृतिकर का उत्तराधिकारी । हपु० ४५.११
(५) कृष्ण के पूर्वभव का जीव । पपु० २०.२११ गंगमित्र हस्तिनापुर के राजा गंगदेव और रामी नन्दयशा का पुत्र ।
मपु० ७१.२६१-२६५ दे० गंग
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