Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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चक्रांक-चण्डवेग
चक्रांक-एक राजा । इसकी रानी का नाम अनुमति और उससे उत्पन्न __ पुत्र का नाम साहसगति था। पपु० १०.४ चक्रा-पश्चिम विदेह क्षेत्र के गन्धा देश की राजधानी । हपु० ५.२५१,
२६२-२६३ चक्राभिषेक-गृहस्थ की त्रेपन क्रियाओं में छियालीसवीं क्रिया। यह दिग्विजय के पश्चात् सम्पन्न होती है । इसमें चक्ररत्न को आगे करके चक्रवर्ती नगर में प्रवेश करता है और आनन्दमण्डप में बैठकर किमिच्छक दान देता है। इस समय मांगलिक वाद्य बजते रहते हैं । और श्रेष्ठ कुलों के राजा चक्री का अभिषेक करते हैं। इसके पश्चात् प्रसिद्ध चार नृप उसे मांगलिक वेष धारण कराते हैं और मुकुट पहनाते है । हार, कुण्डल आदि से विभूषित होकर वह यज्ञोपवीत धारण करता है। नगर निवासी तथा मंत्री आदि उसका चरणाभिषेक कर चरणोदक मस्तक पर लगाते हैं । श्री, ह्री आदि देवियाँ अपने-अपने नियोगों के अनुसार उसकी उपासना करती हैं । मपु० ३८.६२, २३५
२५२ चक्रायुध-(१) जम्बूद्वीप के चक्रपुर नगर के राजा अपराजित और उसकी
रानी सुन्दरी का पुत्र । इसका पिता इसे राज्य देकर दोक्षित हो गया था । कुछ समय बाद इसने भी अपने भाई वचायुध को राज्य देकर पिता से दीक्षा ली थी और मोक्ष पद पाया था। तीसरे पूर्वभव में यह भद्र मित्र नामक सेठ, दूसरे पूर्व भव में सिंहचन्द्र और पहले पूर्वभव में प्रीतिकर देव था। मपु० ५९.२३९-२४५, ३१६, हपु० २७.८९-९३
(२) राजा विश्वसेन और रानी यशस्वती का पुत्र । ये तीर्थकर शान्तिनाथ के साथ ही दीक्षित होकर उनके प्रथम गणघर हुए। ये पूर्वांग के पारदशी विद्वान् थे। आयु के अन्त में इन्होंने निर्वाणपद पाया था। मपु० ६३.४१४, ४७६, ४८९, ५०१, हपु० ६०. ३४८, पापु० ५.११५, १२७-१२९ तेरहवें पूर्वभव में ये मगधदेश के
राजा श्रीषेण की आनन्दिता नामक रानी थे। बारहवें पूर्वभव में 'उत्तरकुरु में आर्य, ग्यारहवें पूर्वभव में सौधर्म स्वर्ग में विमलप्रभ नामक देव, दसवें पूर्वभव में त्रिपृष्ठ नारायण के श्रीविजय नामक पुत्र, नवें पूर्वभव में तेरहवें स्वर्ग में मणिचूल नामक देव, आठवें पूर्वभव में वत्सकावती देश की प्रभाकरी नगरी के राजा स्तिमितसागर के अनन्तवीर्य नामक पुत्र, सातवें पूर्वभव में रत्नप्रभा नरक में नारकी, छठे पूर्वभव में विजया के गगनवल्लभ नगर के राजा मेघवाहन के मेघनाद नामक पुत्र, पांचवें पूर्वभव में अच्युत स्वर्ग में प्रतीन्द्र, चौथे पूर्वभव में वज्रायुध के पुत्र सहस्रायुध, तीसरे पूर्वभव में अधोवेयक में अहमिन्द्र, दूसरे पूर्वभव ने पुष्कलावती देश की पुण्डरी किणी नगरी के राजा घनरथ के दृढ़रथ नाम के पुत्र, और पहले पूर्वभव में ये अहमिन्द्र थे। मपु० ६२.१५३, ३४०, ३५८, ३७६, ४११-४१४, ६३.२५, २८-२९, ३६, ४५, १३८-१४४, ३३६-३३७
(३) विद्याधरवंशी राजा चक्रधर्मा का पुत्र । यह चक्रध्वज का पिता था। पपु० ५.५०-५१ 'चक्रो-कृष्ण । हपु० ५४.३० चक्रेश-चक्ररत्न के स्वामी। पु० १.१८ दे० चक्रवर्ती
जैन पुराणकोश : ११९ चक्षुःश्रवा-सर्प । यह आँख के मार्ग से ही सुनता है । मपु० २६.१७६ चक्षुष्मान्–(१) आठवें मनुकुलकर । ये सातवें कुलकर विपुलवाहन के
पुत्र थे तथा नौवें कुलकर यशस्वी के पिता। इनके पूर्व माता-पिता पुत्र का मुख तथा चक्षु देखे बिना ही मर जाते थे। इनके समय से वे पुत्र का मुख और चक्षु देखकर मरने लगे थे। इससे उत्पन्न प्रजा-भय को दूर करने से प्रजा ने इन्हें इस नाम से सम्बोधित किया था। ये बहुत काल तक भोग भोगकर स्वर्ग गये । मपु० ३.१२०-१२५, हपु० ७.१५७-१६०, पापु० २.१०६ पद्मपुराण में इन्हें सीमन्धर के बाद हुए बताया है । इन्होंने सूर्य और चन्द्र देखकर भयभीत प्रजा के भय का निवारण किया था । पपु० २.७९-८५
(२) मानुषोत्तर पर्वत का रक्षक देव । हपु० ५.६३९ चण-(१) राजा अनिल के पश्चात् हुआ लंका का राक्षसवंशी विद्याधर
राजा। यह विद्या, बल और महाक्रान्ति का धारक था। पपु० ५. ३९७-४००
(२) रावण का व्याघ्ररथारोही सामन्त । मपु० ५७.५१-५२ चण्डकौशिक-कुम्भकारकट नगर का एक ब्राह्मण । यह सोमश्री का पति
और उससे उत्पन्न मौण्डकोशिक का पिता था। मपु०६२.२१२-२१४, पापु० ४.१२४-१२६ चण्डतरंग-राम के पक्ष का एक योद्धा। इसने भानुकर्ण (कुम्भकर्ण) से
युद्ध किया था। पपु०६०.५८ चण्डदण्ड-राजा काष्ठांगार के नगर का मुख्य रक्षक । राजा की आज्ञा
से यह जीवन्धरकुमार को मारने के लिए सेना समेत गया था पर
यह सफल नहीं हो सका । मपु० ७५.३७४-३७९ चण्डवाण-एक व्याध राजा । इसने आक्रमण करके शाल्मलिखण्ड नामक
ग्राम की प्रजा का अपहरण किया था। अपहृत लोगों में देविला और जयदेव की पुत्री पद्मदेवी भी थी। राजगृह के राजा सिंहरथ ने इसे मारकर अपहृत जन समूह को मुक्त कराया था। हपु० ६०.१११
चण्डरवा-इस नाम का एक शक्ति-शस्त्र। इस शस्त्र का प्रयोग करके सहस्रविजय ने विद्याधर चन्द्रप्रतिम को आकाश से अयोध्या के महेन्द्रो
दय वन में गिराया था । पपु० ६४.२७ चण्डवाहन-त्रिशृंग नगर का राजा। इसकी पत्नी का नाम विमलप्रभा
था। इस दम्पति की निम्न दस विदुषी कन्याएँ थीं-गुणप्रभा, सुप्रभा, ह्री, श्रो, रति, पद्मा, इन्दीवरा, विश्वा, आश्चर्या और अशोका । इसने इन कन्याओं को युधिष्ठिर के साथ विवाहा था। पापु० १३.
१०१-१०६, १५९-१६४ चण्डवेग-(१) भरत का दण्डरत्न । मपु० ३७.१७०, पापु० ७.२२
(२) राजा विधु वेग का पुत्र । इसकी मदनवेगा नाम को बहिन थी। मदनवेगा के पति के बारे में एक अवधिज्ञानी मुनि ने कहा था कि गंगा में विद्या सिद्ध करते हुए इसके कंधे पर जो गिरेगा वही इसका पति होगा। इसके पिता ने इसे गंगा में विद्या-सिद्धि के लिए नियोजित किया था। वसुदेव गंगास्नान के लिए आया था। वहीं
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