Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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गान्धारपंचमी-गुणधर
जैन पुराणकोश : १११
हुई । इसके पश्चात् क्रमशः चन्द्रमा की प्रिया, गगनवल्लभ नगर के गिरांपति-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१७९ राजा विद्य द्वेगी की विजयश्री नाम की पुत्री और सर्वभद्र नामक उप- गिरि-(१) लोभी बटुक । इसे और नैषिक ग्रामवासी इसके साथी वास करने के प्रभाव से मरकर सौधर्मेन्द्र की देवी हुई। यहाँ से गौभूति को राजा सूर्यदेव की रानी मतिप्रिया ने भात से ढककर स्वर्ण चयकर यह कृष्ण की छठी पटरानी हुई। मपु० ७१.१२६-१२७, का दान किया था। यह जान लेने पर इसने लोभाकृष्ट होकर अपने ४१५-४२८, हपु० ६०.८६-९४
साथी गोभूति को मार दिया और सारे स्वर्ण को स्वयं ले लिया था। (४) भोजकवृष्णि की पुत्री, धृतराष्ट्र के साथ विवाहित और पपु० ५५.५७-५९ दुयोधन, दुःशासन आदि सौ पुत्रों की जननी । इसकी माँ का नाम सुमति (२) हरिवंशी राजा वसुगिरि का पुत्र । हपु० १५.५९ था। उग्रसेन, महासेन और देवसेन इसके भाई थे। पापु० ७.१४२- (३) अचल के सात पुत्रों में चौथा पुत्र । हपु० ४८.४९ १४५, ८.१०८-११०, १९१-२०५ महापुराण में भोजकवृष्णि को नर- गिरिफूट-ऐरावती नदी के पास स्थित भरतक्षेत्र का एक पर्वत । हपु० वृष्णि तथा उसकी पत्नी को पद्मावती कहा है। मपु० ७०.९४,
२१.१०२ १००-१०१, ११७-११८
गिरिकूटक-भरतेश का एक बहुत ऊँचा राजमहल । मपु० ३७.१४९ (५) विनयाध पर्वतस्थ गान्धार-नगर-निवासी विद्याधर रतिषेण गिरितट-धूलिकुट्टिम और प्राकार से वेष्टित एक नगर । यहाँ वेदों का की भार्या । वह कुलटा थी। बाद में कुबेरकान्त सेठ की युक्ति से वह ज्ञान प्राप्त करने के लिए वसुदेव आया था । हपु० २३.२६-४५ आर्यिका हो गयी। मपु० ४६.२२८-३४३
गिरिदारिणी-रावण को प्राप्त एक विद्या । पपु० ७.३२८ (६) गन्धर्वगीत नगर के राजा सुरसन्निभ की भार्या गन्धर्वा की गिरिदेवी-वाराणसी नगरी के राजा अचल की भार्या । इसने मनि जननी और भानुरक्ष की सास । पपु० ५.३६७
चित्रगुप्त को आहार दिया था और उनसे यह जाना था कि उसके दो (७) संगीत की आठ जातियों में छठी जाति । यह मध्यम ग्राम के पुत्र होंगे। उसके दो ही पुत्र हुए । उसने उनके नाम सुगप्ति और गुप्त आश्रित होती है । पपु० २४.१२, हपु० १९.१७६
रखे थे। पपु० ४१.१०७-११३ (८) भरत क्षेत्र में स्थित एक नगरी । पपृ० ३१.४१
गिरिनगर-सौराष्ट्र देश का एक नगर । मपु० ७१.२७०, यहाँ का गान्धारपंचमी-संगीत की दस जातियों में तीसरी जाति । पपु० २४.१३
राजा चित्ररथ था। वह मांसाहारी था। सुधर्म मुनिराज के उपदेश गान्धारपवा-एक विद्या । धरणेन्द्र ने नमि और विनमि को पन्नगपदा
से उसने मांसाहार छोड़ दिया था और उनसे दीक्षा ग्रहण कर ली विद्या के साथ यह विद्या भी दी थी। मपु० १९.१८५
थी। हपु० ३३.१५०-१५२ यहाँ पर राजा राष्ट्रवर्धन ने राज्य किया। गान्धारीय-गान्धारी से उत्पन्न दुर्योधन आदि सौ पुत्र । हपु० ४७.५
उसकी पुत्री सुसीमा ने संयम धारण करके उत्तर जन्म में मोक्ष प्राप्त गान्धारोदीच्या-संगीत की दस जातियों में प्रथम जाति । पपु० २४.१३
किया । हपु० ६०.७०-७२ गान्धारारोदीच्यका-मध्यम ग्रामाश्रित संगीत सम्बन्धी एक जाति ।
गिरिनन्वन-वानरवंशी राजा खेचरानन्द का पुत्र । पपु० ६.२०५-२०६ हपु० १९.१७६
गिरिशिखर-विजया, पर्वत की उत्तरश्रेणी के पाँच सुन्दर नगरों में
एक नगर । मपु० १९.८५, ८७ गान्धर्व विज्ञान-गन्धर्व (संगीत) विद्या । हपु० १९.९६, १२३
गोतगोष्ठी-गीतों के द्वारा श्रोताओं के मनोरंजन का आयोजन । इससे गान्धर्वसेना-राजा अमितगति की पुत्री । अमितगति के दीक्षित हो जाने
संगोतकला को प्रोत्साहन मिलता था। मपु० १२.१८८, १४.१९२ से चारुदत्त को इसका संरक्षक बना दिया गया । चारुदत्त ने एक
____गीतरति-गन्धर्व जाति के व्यन्तर देवों का इन्द्र । वीवच १४.६० चारण ऋद्धिधारी मुनिराज की भविष्यवाणी के अनुसार यदुवंशी गोति-तालगत गन्धर्व का एक भेद । हपु० १९.१५१ राजा वसुदेव के साथ इसका विवाह कर दिया था। हपु० २१.१५५- गंज-एक पर्वत । यहाँ वैश्रवण और दशानन का युद्ध हुआ था। पपु० १७०, १७९-१८०, २२.१ ।
८.२०१ गन्धर्व सेनक-एक विद्या-कोश । इसे धरणेन्द्र ने अपनी पत्नी अदिति गुजा-विजयाध पर्वत की उत्तरश्रेणी का एक नगर । पपु० १०४.१०३ द्वारा नमि-विनमि को दिलाया था । हपु० २२.५३-५६
गुच्छ—बत्तीस लड़ियों का हार । मपु० १६.५९ गरुडास्त्र-नागास्त्र-नाशक अस्त्र । कृष्ण ने जरासन्ध के साथ हुए युद्ध गुण-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३६ में इसका प्रयोग किया था। हपु० ५२.४९
गुणकान्ता-भरतक्षेत्र स्थित मलय राष्ट्र में रत्नपुर नगर के राजा प्रजागाहपत्याग्नि-अग्निकुमार देवों के इन्द्र के मुकुट से उत्पन्न त्रिविध पति की रानी और चन्द्रचूल की जननी । मपु० ६७.९०-९१
अग्नियों में प्रथम अग्नि । इसकी स्थापना पृथक् कुण्ड में की जाती गुणग्राम-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३७ है । इसी से नैवेद्य बनाया जाता है । यह स्वयं पवित्र नहीं है न देवता गुणज्ञ-सौधर्मेन्द्र द्वारा स्तुत वृषभदेव का एक नाम । मपु० २५.१३५ रूप ही है, अर्हन्तों की पूजा के सम्बन्ध से यह पवित्र मानी गयी है। गुणदेवी-जम्बू कुमार के वंशज धर्मप्रिय सेठ की भार्या, अर्हदास की निर्वाण क्षेत्र के समान इसकी भी पूजा की जाती है। मपु० ४०.८२- जननी । मपु० ७६.१२४ .८९
गुणधर-(१) योगीन्द्र यशोधर का शिष्य । राजर्षि चक्रवर्ती ववदन्त ने
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