Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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काल- कालयवन
एक मुहूर्त
सतहत्तर लव = तीस मुहूर्त - एक अहोरात्र
पन्द्रह अहोरात्र = एक पक्ष दो पक्ष = एक मास
दो मास = एक ऋतु
=
तीन ऋतु एक अयन एक वर्ष
दो अयन
पाँच वर्ष = एक युग
दो
युग = दस वर्ष
दस वर्ष x १० = सौ वर्ष
१०० वर्ष x १० = हजार वर्ष
१००० वर्ष x १० = दस हजार वर्ष दस हजार वर्ष x १० = एक लाख वर्ष
एक लाख वर्ष x ८४ = एक पूर्वांग
८४ लाख पूर्वांग = एक पूर्व
८४ लाख पूर्व एक नितांग ८४ लाख नियुतांग - एक नियुत
८४ लाख नियुत = एक कुमुदांग
८४ लाख कुमुदांग - एक कुमुद ८४ लाख कुमुद - एक पद्मांग ८४ लाख पद्मांग एक पद्म ८४ लाख पद्म = एक नलिनांग
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एक लिम
८४ लाख नलिन एक कमलोग
८४ लाख कमलांग = एक कमल ८४ लाख कमल एक तुट्यांग ८४ लाख तुयांग = एक तुट्य ८४ लाख तुट्य एक अटटांग ८४ लाख अटटांग = एक अटट
८४ लाख अटट-एक अममांग ८४ लाख अममांग = एक अमम ८४ लाख अमम= एक ऊहांग ८४ लाख ऊहांग = एक ऊह ८४ लाख ऊह = एक लतांग ८४ लाख लतांग = एक लता
८४ लाख लता = एक महालतांग
८४ लाख महालतांग - एक महालता
८४ लाख महालता = एक शिरः प्रकम्पित
८४ लाख शिरः प्रकम्पित - एक हस्त प्रहेलिका
८४ लाख हस्त प्रहेलिका = चर्चिका
यह चर्चिका आदि रूप में परिभाषित काल संख्यात है तथा संख्यात वर्ष से अतिक्रान्त काल असंख्येय काल होता है। इससे पल्य, सागर, कल्प तथा अनन्त आदि अनेक काल-परिमाण बनते हैं । हपु० ७.१७
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जैन पुराणकोश : ८३
३१ इस व्यवहार काल के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी दो भेद भी हैं। दोनों में प्रत्येक का काल-प्रमाण दस कोड़ाकोड़ी सागर होता है । दोनों का काल बीस कोड़ाफोड़ी होता है जिसे एक कल्प कहते है । मपु० ३.१४-१५
क - (१) एक वन । मपु० ५९.१९६
(२) एक भील । इसने चन्दना को भीलराज सिंह के पास पहुँचाया था। इसके उपलक्ष्य में चन्दना ने उसे अपने बहुमूल्य आभूषण तथा धर्मोपदेश दिये थे । मपु० ७५.४६-४७
(३) उल्कामुखी नगरी का निवासी पापी भीलराज मपु० ७०.१५६
कालकल्प – एक महाभयंकर और महाप्रतापी राजा । इसने चम्पा नगरी के राजा जनमेजय के साथ युद्ध किया था। मपु० ८.३०१-३०२ कालकूट - ( १ ) भरतक्षेत्र के आर्यखण्ड का एक देश । भरतेश ने इस देश को जीता था । मपु० २९.४८
(२) निर्दयी भयंकर और काल बगवासियों का एक धनुष मुखिया । मपु० ७५.२८७-२९०
(३) तीक्ष्ण विष, इसे सूंघकर आशीविष सर्प भी तत्काल भस्म
हो जाता है । पपु० १०४.७२-७५
कालशपुर विजया की दक्षिणी के पचास विद्याधर नगरों में से एक नगर । हपु० २२.९८
कालगुहा - एक गुफा । यहाँ के रक्षक महाकाल राक्षस को प्रद्युम्न ने जीतकर उससे वृषभ नाम का रथ और रत्नमय कवच प्राप्त किये थे । मपु० ७२.१११
कालचक्र - राम की वानरसेना का एक योद्धा । पपु० ७४.६५-६६ कालतोया - आर्यखण्ड की एक गम्भीर नदी । भरतेश की सेना ने इस
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नदी को पार किया था। मपु० २९.५०
कालपरिवर्तन - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव इन पाँच परिवर्तनों
में एक परिवर्तन । उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के विभिन्न कालांशों में सांसारिक जीवों का निरन्तर जन्म-मरण होता रहता है। यही काल-परिवर्तन है। वीवच० कालमही पूर्व आर्यखण्ड की एक नदी, भरतेश की सेना का पड़ाव
११.३०
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स्थल । मपु० २९.५०
कालमान- घड़ी, घण्टा आदि समय का व्यावहारिक प्रमाण । पपु०
२४.६१
कालमुख - रोहिणी के स्वयंवर में वसुदेव का वरण करने से युद्ध में वसुदेव ने इसे प्राण-शेष
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सम्मिलित एक नृप । रोहिणी के हुए इसने वसुदेव से युद्ध किया। (अघमरा) कर छोड़ दिया था ।
हपु० ३१.२८, ९७ कालमुखी विचारों की एक विद्या
धरमेन्द्र के निर्देशानुसार दिति देवी ने यह विद्या नमि और विनमि को दी थी । हपु० २२.६६ कालमेघ - रावण का मदोन्मत्त हाथी । मपु० ६८.५४०
कालयवन — जरासन्ध का पुत्र । मपु० ७१.११, हपु० १८.२४, ५२. २९, ३६.७०
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