Book Title: Jain Puran kosha
Author(s): Pravinchandra Jain, Darbarilal Kothiya, Kasturchand Suman
Publisher: Jain Vidyasansthan Rajasthan
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१०० : जेन पुराणकोश
कौतुकमंगल - एक नगर । विद्याधर व्योमबिन्दु की पुत्री और राजा रत्नश्रवा की रानी केकसी का जन्म इसी नगर में हुआ था। राजा दशरथ भी केकया के साथ यहीं विवाहे गये थे । पपु० ७.१२६-१२७, २४.२-४, १२१
कोत्कृष्य
दण्डवत के पांच अतियारों में दूसरा अतिचार - शारीरिक कुचेष्टाएँ करना । हपु० ५८. १७९
कौथुम – भार्गवाचार्य की शिष्य परम्परा में भार्गव के प्रथम शिष्य
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आत्रेय का शिष्य । हपु० ४५.४४-४५
कौन्तेय - कुन्ती के पुत्र युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन । मपु० ७२.२७०२७१, हपु० ४५.४३
कौबेर - इस नाम का एक देश, लवणांकुश ने यहाँ के शासक को पराजित किया था । पपु० १०१.८४-८७
कौबेरी - कुबेर से सम्बन्धित उत्तर दिशा । हपु० ५७.६० कौमारी - एक विद्या, यह दशानन को प्राप्त थी । पपु० ७.३२६ कौमुदी - ( १ ) एक नगरी । यहाँ का राजा सुग्रीव था । यहीं तापस अनुधर आया था। पपु० ३९.१८० - १८१
(२) एक हज़ार देवों से रक्षित एक गदा । यह रामचन्द्र को प्राप्त चार महारत्नों में एक महारत और लक्ष्मण को प्राप्त सप्त रत्नों में दूसरा रत्न था । श्रीकृष्ण को भी यह रत्न प्राप्त था । मपु० ६८.६७३६७७, हपु० ५३.४९-५०
कौरव राजा पृतराष्ट्र और गान्धारी के दुर्योधन और
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सन आदि सौ पुत्र पाण्डु और उनके पुत्र भी कुरुवंशी होने के कारण कौरव ही थे पर राज्य विभाजन के प्रसंग को लेकर पाण्डु पुत्र तो पांडव कहलाये और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव । भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य ने इन्हें पाण्डवों के साथ शिक्षित और शस्त्र विद्या में निष्णात किया था । ये आरम्भ से ही पाण्डवों से उनकी वीरता, बुद्धिमत्ता और -सौजन्य आदि गुणों के कारण ईर्षा करने लगे थे । खेलों में ये उनसे 'पराजित होते थे। राज्य विभाजन के समय ये चाहते थे कि राज्य एक सौ पाँच भागों में विभाजित हो जिसमें सौ भाग इन्हें मिले और केवल पाँच भाग पाण्डवों को मिलें । पाण्डवों को मारने के लिए इन्होंने अनेक प्रयत्न किये। लाक्षागृह भी बनवाया पर ये उनको मारने में सफल नहीं हो सके। हरिवंश पुराण में कौरवों द्वारा लाक्षाके स्थान पर पाण्डवों के घर में आग लगाने की बात कही गयी गृह है । द्रौपदी स्वयंवर के पश्चात् राज्य विभाजन हुआ जिसमें आधा राज्य पाण्डवों को और आधा राज्य इनको मिला। ये इसे सहन नहीं कर सके। दुर्योधन ने जुए में युधिष्ठिर को पराजित करके पाण्डवों को बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास दिया । वनवास के समय भी कौरवों ने पाण्डवों को मारने के अनेक प्रयास किये पर वे सफल नहीं हो सके । अन्त में कृष्ण जरासन्ध युद्ध में ये सब भीम के द्वारा मारे गये। हरिवंश पुराण में कुछ कौरवों को ही युद्ध में मारा गया बताया है । दुर्योधन और दुःशासन आदि को संसार से विरक्त होकर मुनिराज विदुर के पास दीक्षित हुए बताया गया है । मपु० ४५.४, ५६-५८, ७१.७३-८०, पपु० १०.१७, ३४, ४४,
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कौतुकमंगल - कौशिकी
१२.२६-३०, हपु० ४५.३६, ४९-५०, ४६.३-६, ५१.३२, ५२, ८८, पापु० ६.२०८-२१२, ८.१७८-२०५, १२.१४४, १६७-१६९, १६. २, १७.२०९-२१९, १८.१५३-१५५ २०.२६६, २९४ २९६, ३४८ कौरवनाथ - दुर्योधन। मपु० ७२.२६८
कौवेरी - ( १ ) रावण को प्राप्त एक विद्या । मपु० ७.३३१-३३२ (२) भरत की भाभी । पपु० ८२.२५-२६, ८३.९४
कौशल— विन्ध्याचल के उत्तर में स्थित देश | साकेत इसी देश में
अयोध्या के निकट था । मपु० ४८.७१ दे० कोशल/कोसल
कौशल्य - आर्थखण्ड के मध्य का एक देश । महावीर का विहारभूमि । हपु० ३.३, ११.८४
कौशाम्ब -- एक भयंकर वन । द्वारावती नगरी के विनाश की तथा जरत्कुमार के निमित्त से कृष्ण की मृत्यु होने की नेमिनाथ द्वारा भविष्यवाणी सुनकर जरत्कुमार ने इसी वन का आश्रय लिया था । यहीं अपने अन्त समय में बलराम और कृष्ण आये थे । कृष्ण यहाँ लेट गये थे । जरत्कुमार ने उन्हें एक मृग समझकर उन पर बाण छोड़ दिया । उसी से उनकी मृत्यु हुई । हपु० ६२.१५ ६१, पापु० २२.८१-८४
कौशाम्बी (१) द्वीप में स्थित बरसदेश की यमुनातटवर्ती राजवानी। यह तीर्थकर पद्मप्रभ और ग्यारहवें चक्रवर्ती जयसेन की जन्मभूमि थी । इसी नगर में चन्दना महावीर को आहार देकर बन्धनों से मुक्त हुई थी । मपु० ५२.१८-२१, ७९-८०, पपु० ९८.४८, पु० १४. १ २, वीवच० १३.९१-९६
(२) एक नगरी । कंस का पालन करनेवाली मंजोदरी कलालिन यहीं रहती थी । पु० ३३.१३
कौशिक ( १ ) – विजयार्ध पर्वत की उत्तरश्रेणी में स्थित साठ नगरों में तेईसवाँ नगर । राजा वर्ण इसी नगर के नृप थे । पाण्डव प्रवास काल में यहाँ आये थे । हपु० २२.८८, ४५.६१, पापु० १३.२-३
(२) अदिति देवी द्वारा नमि और विनमि को प्रदत्त आठ विद्यानिकायों में एक विद्या- निकाय । हपु० २२.५७
(३) सिद्धकूट जिनालय में कौशिक स्तम्भ का आश्रय लेकर बैठनेवाली विद्याधरों की एक जाति । हपु० २६.१३
(४) एक ऋषि परशुराम के भय से कार्यवीर्य की गर्भवती पत्नी तारा भयभीत होकर गुप्त रूप से इसी के आश्रय में गयी थी । चन्दन वन की प्रसिद्ध वेश्या रंगसेना की पुत्री कामपताका के नृत्य को देखकर यह क्षुब्ध हो गया था । कामपताका की प्राप्ति में बाधक होने से राजा को अपना द्वेषी जानकर इसने सर्प बनकर राजा को मारने का शाप दिया । निदान वश मरकर यह सर्प हुआ । हपु० २५.८-११, २९. २८-३२, ४९-५० इसकी चपलवेगा नाम की भार्या तथा उससे उत्पन्न
मृगशृंग नामक पुत्र था । मपु० ६२.३८०
कौशिकी - ( १ ) भरतक्षेत्र के रमणीक मन्दिर नगर के एक विप्र गौतम की प्रिया, अग्निमित्र की जननी । मपु० ७४.७६-७७, वीवच० २.१२११२२
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