________________
२८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फूलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ पूज्य गुरुवर्य ! तुम्हें प्रणाम .श्री जवाहरलाल-मोतीलाल, भीण्डर
मैंने अपनी २० वर्षकी आयुमें ही जैन सिद्धान्त ग्रन्थोंका अध्ययन कर लिा था, किन्तु अनेक शंकायें थीं जिन्हें मैं नोट करता जाता था। इनके समाधानके लिए मैंने अनेक जैन विद्वानोंसे सम्पर्क किया और बहुतोंका समाधान भी मिला, किन्तु जबसे मैंने धवलादि करणानुयोगके सर्वोपरि ज्ञाता पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्ताचार्यसे सम्पर्क कर जिस प्रामाणिकतासे समाधान पाया तबसे अपने मानसमें 'विद्यागुरु' के रूपमें आपको स्थापित किया । बीसों विस्तृत पत्र मेरे पास उनके हैं जिन्हें यदि प्रकाशित किया जाय तो सिद्धान्त ग्रन्थ विषयक शंकाओंके समाधानकी एक अच्छी पुस्तक बन सकती है। वृद्धावस्थामें भी वे मेरी शंकाओंका प्रामाणिक और स्नेहपूर्वक समाधान करते चले आ रहे हैं।
. एक पत्रमें आपने लिखा कि-अब ८० वर्षकी मेरी उम्र हो गई है अतः अब स्थिति ऐसी है कि कभी कुछ पढ़ने-लिखने में उपयोग लगता है, कभी नहीं लगता। फिर भी शक्ति बटोरकर कुछ न कुछ करता रहता हूँ। आप सबका स्नेह मिला हुआ है; यही मेरा सम्बल है। आगमके निर्णयकी कसौटी यह है कि उत्तरकालकी रचनाकी प्रमाणता पूर्वकालीन रचनाके आधारपर होती है। पूर्वापरकी प्रमाणताके आधारपर विषयके निर्णय तक पहुँचा जाता है।
एक बार मैंने वाराणसी जाकर पन्द्रह दिनके करीब पूज्य पंडित जीका सानिध्य प्राप्त किया और साक्षात् शंकाओंके समाधानकी प्राप्तिका आनंद लिया। जब मैं वाराणसीसे वापस भीण्डर आने लगा तो उन्होंने कहाआप स्वाध्यायशील हैं । सदा इसीमें मन लगाये रहें। पर इतना ध्यान रखें कि चारों अनुयोगोंमें आदेय तो आत्मा ही है । अध्ययन चाहे किसी अनुयोगका हो पर निर्णय लेते समय आगमिक आधार अवश्य हुँढ लें।।
इस तरह लिखनेको अनेक बातें हैं। यह प्रसन्नता है कि आपका अभिनन्दन किया जा रहा है । मैं आपके पूर्ण स्वस्थ चिरज्जीवनकी कामना करता हूँ। जैन वाङ्मयके प्रामाणिक विद्वान् • श्री इन्द्रजीत जैन एडवोकेट, कानपुर
पंडित फलचन्द्र जी जैन वाङ्गमयके आधिकारिक एवं प्रामाणिक मनीषि एवं विद्वान् हैं । आपकी प्रखर लेखनी एवं कुशाग्र बुद्धिमत्ताने जैन सिद्धान्तके गूढ़तम रहस्योंको उजागर किया है।
मुझे आदरणीय पंडितजीके सम्पर्क में आये हुए बहत समय हो गया है। मैंने उनसे जैनदर्शन सिद्धान्तोंको खूब समझा है। परम पवित्र पर्यषण पर्वपर वे कानपुर कई बार पधारे और अत्यन्त निकटतर एवं गहराईसे वे नाना विषयोंपर प्रवचन करते थे । उनकी सिद्धान्तोंको समझानेकी शैली भी विलक्षण एवं स्पष्ट रहती है ।
यदि इस पंचम कालमें तीर्थंकर भगवान होते तो श्रद्धेय पंडित फलचन्द्रजी अवश्य ही गणधर होते । जैन सिद्धांतके महान् संरक्षक .श्री मिश्रीलाल पाटनी, लश्कर
आपके हृदयमें सिद्धांतकी धार्मिक मार्मिक चर्चाका भंडार समुद्र मानिंद अथाह भरा हुआ है। आपसे मिलनेपर अधिकतर धार्मिक तत्त्व चर्चा आत्म कल्याण निज स्वभावकी पहचान सिद्धांतपर ही होती है पारिवारिक चर्चामें आप अपना समय नष्ट नहीं करते है ।
आप त्यागी मुनि गणोंको भी निग्रंथ अवस्थामें उचित शास्त्रानुकूल आचरणमें प्रवर्तन शील रहे, शिक्षा निर्भीक निरभयतासे देते हैं। जिनसे उनके ज्ञान आचरणमें सुधार आवे । आप हितोपदेशी धर्मरक्षक मर्मज्ञज्ञानके वक्ता हैं । मैं आपके गुणोंको देखकर दीर्घायुकी कामना करता हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org