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साहबका सहयोग करनेको अपने आपको प्रस्तुत किया। वे हैं— श्रीमान् पण्डित जगन्मोहनलालजीशास्त्री, कटनी । इस प्रकार पण्डितजीके साथ हस्ताक्षर करने वालोंमें हम दो व्यक्ति एवं आपकी सहायताके लिये सोनगढ़से भेजे हुए २ विद्वान् ब्र० श्री चन्दुभाई तथा पं० चिमनभाई मोदी थे । तथा सुवाच्य अक्षरोंमें लिखनेका कार्य मेरे बहनोई स्व० लादुलालजी पहाड़ियाने किया था ।
रहने के लिये सबकी व्यवस्था मेरे ही निवास स्थानपर थी तथा खानिया जाने आनेकी व्यवस्था मेरी स्वयं की कार द्वारा होती थी। इस प्रकार हमने आपके अदम्य साहसको इस चर्चा के समय अत्यन्त नजदीक से परखा है ।
उनके परिश्रमकी क्षमता तो अद्भुत तथा उनका क्षयोपशम ज्ञान, आगमका अध्ययन, स्मरणशक्तिकी अगाधता तथा उसको उपस्थित करनेकी क्षमता आदि अनेक ऐसी विशेषताओंका चर्चाके समय परिचय हुआ जिनका वर्णन करनेसे तो यह लेख ही एक पुस्तक बन जायेगा ।
मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि निःस्वार्थ भावसे, बिना किसी प्रकारको किञ्चित् भी अपेक्षाके, बिना कोई आर्थिक प्रयोजनके; मात्र एक आगमके पक्षको लेकर इतना श्रम करनेवाला व्यक्ति मुझे तो अभी तक अन्य कोई देखने को नहीं मिला। फिर, आगमका इतना सूक्ष्म अध्ययन करके उसे हृदयंगम करनेवाले ऐसे व्यक्तिसे मेरा अभीतक परिचय नहीं हुआ। पंण्डितजीकी स्मरण शक्ति इतनी प्रबल है कि वे शंकाओंके उत्तर लिखते समय यह बता देते थे कि अमुक शास्त्रकी अमुक गाथामें इसका स्पष्टीकरण मिलेगा और बहुधा वह वहाँ ही मिल जाता था ।
प्रथम खण्ड २७
पंडितजी साहब के प्रति मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हुआ उनके दीर्घ एवं यशस्वी जीवनकी कामना करता हूँ ।
प्रामाणिक व्यक्तित्व
• कृषिपण्डित श्रीमंत सेठ ऋषभकुमार, खुरई
श्रद्धासर्वस्व पं० फूलचन्द्रजी सिद्धांतशास्त्री हमारे पड़ोस बीनाकी ही गौरवमयी प्रतिभा हैं । इनके प्रामाणिक व्यक्तित्व, समालोचक वक्तृत्व और अनुभवपूर्ण परामर्शसे स्थानीय जैन समाजने सदैव ही जागरणलाभ पाया है। इनकी सामाजिक क्रान्ति और गांधीवादी विचारधाराका अनुसरण हमने पग-पगपर किया है । अनुभवी प्रयोगशालामें पके हुए इनके दार्शनिक निर्णय हमें शतप्रतिशत मान्य हैं। सुलझी हुई दृष्टि और सिद्धान्त ज्ञानके हम नितान्त पक्षधर हैं ।
सामाजिक संगठनों की एकताके लिये तो मानो आपका अवतार ही हुआ है । पारस्परिक वैमनस्यवैषम्य मिटाने के लिये प्रतिकूलताओंसे भी आपने लोहा लिया है । विविध संस्थाओंकी समस्याओंके सफल समाधान आपके ही आश्रित हैं ।
लगभग १५ वर्ष पूर्व यहाँ स्थानीय दि० जैन समाजमें जो एक गहरी दरार पड़ गई थी उसको पाटने में जी-तोड़ परिश्रम करके आपने सफलता प्राप्त की थी ।
व्याख्यानवाचस्पति स्व० पं० देवकीनंदनजीके बाद दो सर्वमान्य विद्वान् ऐसे हैं जिन्होंने विघटन के गर्त में गिरती हुई समाजका सदैव उद्धार किया है । प्रबुद्ध युगल-पं० फुलचन्द्रजी शास्त्री तथा पंडित जगन्मोहनलालजी शास्त्री इन दो अनुभव वृद्ध वृषभों द्वारा समाज संगठनका रथ इस उच्च समभूमि पर चल रहा है । उसपर धार्मिक चेतनाकी पताका फहर-फहर कर प्रतिक्षण हमें दिशा ज्ञान दे रही है ।
कृतज्ञता के कोटि-कोटि स्वरों द्वारा भाते हैं ।
हम आआपका हार्दिक अभिनन्दन करते हुए दीर्घायुष्य की भावना
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