Book Title: Dhundhak Hriday Netranjan athwa Satyartha Chandrodayastakam
Author(s): Ratanchand Dagdusa Patni
Publisher: Ratanchand Dagdusa Patni
View full book text
________________
भाव निक्षेपका लक्षण.
सर्वज्ञैरिंद्रादिव दहें दनादि क्रियाऽनुभावत् || १॥
"
॥ अर्थ : - व्याकरणकी व्युत्पत्ति द्वारासें, अथवा शास्त्रका संकेतसें, अथवा लोकोंके अभिप्रायसें, जे जे शब्दोंमें जे जे क्रियाओ मान्य किई हुई हो, ते ते क्रियाओं का, ते ते वस्तुओंमें, ( अर्थात् पदार्थों में ) वर्त्तन होता हो, तब उस वस्तुको, " भाव रूप सर्वज्ञ पुरुषोंने कहा है । जैसेंकि - परम ऐश्वर्य परिणामका भोगको, वर्त्तन करता हुवा इंद्र है, सोई " भाव इंद्रका " विषय है । क्यौंकि- तिस वर्त्तमान कालमें, साक्षात् रूप इंद्रमें, परम ऐश्वर्यकी क्रियाका, अनुभव हो रहा है । यही भावस्वरूपके वस्तुओंको, जैन सिद्धांतकारोंने, “ भाव निक्षेप " का विषयस्वरूपही माने है |
1
।। इति श्लोकार्थः
॥ तात्पर्य - जिस जिस भाव निक्षेपके विषयभूत वस्तुमें जे जे नाम दिये गये है, अथवा दीये जाते है, सो सो" नामनिक्षेप" ही है, । सो सो नाम निक्षेप है सो, संकेत जाण पुरुषोंको, वह नामका श्रवण मात्र है सोई उसी भावनिक्षेपरूप वस्तुकाही, बोधकी जागृति कराता है, प्रत्यक्ष वस्तु होवें उसका प्रत्यक्षपणे, और परोक्ष वस्तु होवें उसका परोक्षपणे || १ || परंतु जो पुरुष संकेतको नही जानता है और परोक्ष वस्तुको देखीभी नही है वह पुरुष उस भाव वस्तुका बोधको नही प्राप्त हो सकता है, तब उस पुरुषके वास्ते, वही नाम निक्षेपका परोक्ष पदार्थकी, “ आकृति " दिखा केही, विशेषपणे बोध करा सकते है, वह कई हुई आकृति हैसो, भावरूप पदार्थ के
( ७ )
* दुनीयामें जितने वस्तु, दृश्य, अदृश्य स्वरूपकी कही जाती है, वह सभी भी भावनिक्षेपके विषयभूतकी ही है ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org