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यदि अज्ञान रूपी महासमुद्र को लीला से तरने की इच्छा है तो नयचक्र को जानने के लिये मति को नयचक्र में प्रवेश कराओ। दुर्नय रुपी अंधकार को नष्ट करने के लिये सम्यक् नय सूर्य के समान है ॥२६॥
इसी प्रकार देवसेनाचार्यने गुरु परंपरा से प्राप्त सम्पूर्ण नयों उपनयो का वर्णन इस लघुकृति नयचक्र में समावेश किये हैं । सुप्रसिद्ध नीति - गागर में सागर यहाँ लागू नहीं होती किंतु बिंदु में सिंधु है यह नीति इसनय चक्र में लागू होती है । जिस अनेकांतवाद को बड़े बड़े दिग्गज आचार्य विनम्र नतमस्तक होते हैं उस भगवंत अनेकांत को को स्वलेखनी से जीवंत प्रकट करनेवाले पूज्यपाद देवसेन आचार्य को मेरा विनम्र अनंत नमस्कार हो ।
३) आलाप पद्धत्ति
देवसेन आचार्य की तीसरी कृति संस्कृत सूत्र बद्ध नय विषयक शास्त्र आलाप पद्धति है । बहुश: देवसेन आचार्य ने नयचक्र लिखने के पश्चात् आलाप पद्धति की रचना की उसकी निम्नसूत्र से पुष्टि होती है
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आलाप पद्धतिर्वचन रचना ऽनुक्रमेण नय चक्रस्योपरि उच्यते ॥ १ ॥ आलाप पद्धति अर्थात् वचन की पद्धति नय चक्र के आधार पर मैं ( देवसेन आचार्य ) कहता हूँ । इसको पुनः स्वतंत्र लिखने का कारण मंद बुद्धि जनों के सुखबोधन के लिये है । आचार्य श्रीने आलाप पद्धति की समाप्ति में कहा है।
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इति सुखबोधार्थ मालाप पद्धतिः श्रीमद्देवसेन विरचिता परिसमाप्ता ॥ इसमें गुण, पर्याय, स्वभाव, नयों, उपनयोंका अनूठा वर्णन है । इसमें भी आध्यात्मिक नमों, आगम नयों का वर्णन है । जैसे
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पिच्छय बवहार गया मूलमभेया गयाण सव्वाणं । णिच्छय साहण हेऊ दब्बय यज्जस्थिया मुणह् ॥ ४॥ आलाप पद्धति सामान्य रूप से समस्त नयों के दो भेद हैं १) निश्चय नय २ )