________________
१०९ णिज्जावगो य गाणं बादो झाणं चरित णावा हि । भवसागरं तु मविया तरंति तिहिसमिपायण ।। १०० ॥
मूलाचार - ' समयसाराधिकार ' - अर्थ:- खटिया ज्ञान है, वायु प्रशन है और नौका चारित्र है । तीनों के सयोग से ही भव्य जीव भवसागर को तिर जाते है। विषयधिरतिः संगत्यागः कषाय विनिग्रहः शम-यम दमास्तत्त्वाभ्यासस्तपश्चरणोधनः ।। नियमित मनोवृत्तिभक्तिजिनेषु दयालुता । भवति कृतित: संसाराब्धेस्तटे निकटे सति ।। २२४ 11
( आत्मानुशासनम ) अर्थ:- इन्द्रिय विषयों से विरक्ति परिग्रह का त्याग कषायों का विमन राग-द्वेष को शान्ति यम-नियम इन्द्रिय दमन सात तत्वों का विचार मन की प्रवृत्ति पर नियंत्रण जिन भगवान को भक्ति और प्राणियों पर दिया भाव ये सब भाव उस पुयात्मा पुरुष के होते है। जिसके कि संसार समुद्र का किनारा निकट आ चुका है । अर्थात निकड भव्य सम्यग्दृष्टी बीच उपरोक्त व्रतादि स्वरूप नौका मे बैठकर संसार रूपी स्वरूप को शौन रुप से पार करता है।
यथा यथा समायाति संवितो तत्वमुत्तमम् । तथा तश न रोचते विषया: सुलभा अपि ।। ३७ ॥
निन्दक समं नहि चित्रकार:
सम सुगुणे विषमः आकार: । मतिक द्रव्यं समो असमः किंतु अमूर्तिक गुणे निन्दक: ।। १७ ।।
- सज्जनः - सजन समान न कदा सरोजः
मित्रागमे बिकाशितः रात्रौ म्लानमुखः । अहो ! सज्जन सरोज सवा विकाशित:
निन्दा प्रशंसा सर्वत्र शत्रु किम्बा मित्रे ।। १९ ॥