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माव-सग्रह
योजन है । कालोद समुद्र के चारों ओर पुष्कर प है उसकी पुरी चौडाई सोलह लाख योजन है । परन्तु पुष्कर होप के ठीक मध्य भाग मं मानुषोत्तर पर्वत है तथा मानुषोत्तर पर्वत तक ही मनुष्य क्षेत्र गिना जाता है । इसलिये आधे पुष्कर द्वीप की चौड़ाई आठ लाख योजन ही समझनी चाहिये । इस प्रकार मानुषोत्तर पर्वत पूर्व भाग से पश्चिम भाग तक वा उत्तर में दक्षिण तक पैतालीस लाख योजन ही होते है ।
आगे और भी सिद्धों का स्वरूप कहते है । सम्वे उरि सरिसा बिसमाहिम्मि णिच्चलपएमा । अवगाहणाय जम्हा उक्कस्स जहणिया दिळा ।। ६९१ ।। सन्चे उपरि सदशाः विषमा अघस्तने निश्चल प्रदेशाः । अवगाहना च यस्मात् उत्कृष्टा जघन्याविष्टा ।। ६९२ ।।
अर्थ- उस सिद्ध स्थान में अनंतानंत सिद्ध परमेष्ठी विराजमान है। उन समस्त सिद्धों का ऊपरी भाग समान होता है तथा नीचे का भाग ऊंचा नीचा रहता है । इसका भी कारण यह है कि सिद्धों की अवगाहना उत्कृष्ट सवा पांच मौ धनुष है और जघन्य अवगाहना साडे तीन अरन्ति है । मुठ्ठी बांधकर एक हाथ की लम्बाई को अरन्नि कहते है जिस आसन से जिस स्वरुप से जैसे शरीर से कर्म मुक्त होते है उसी आसन से उसी रुप से और उसी शरीर के समान उनके आत्माका आकार हो जाता है इसलिये ऊपर का भाग तो सबका समान होता है और नीचे का भाग समान नहीं होता।
एगोवि अणताण सिद्धो सिद्धाण देइ अवगासं । जम्हा सहमत्तगणो अवगाह गणो पुणो तेसि ।। ६९३ ॥ एकोपि अनन्तानां सिद्धः सिद्धानां बवास्यवकाशम् । यस्मात्सूक्ष्मत्वगुणः अवगाहनगणः पुनस्तेषाम् ॥ ६९३ ।।
अर्थ- एक सिद्ध की आत्मा मे अनंतानंत सिद्ध समा जाते है। इसका भी कारण यह है कि आत्मा अमूर्त है, इसलिये उनमे सूक्ष्मस्वं गुण है। इसके सिवाय उनमें अवगाहनत्व गुण भी है । सूक्ष्म और अब. गहनाच गुण के कारण एक सिद्ध में भी अनंतानंत सिद्ध आ जाते है ।