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भाव-संग्रह
इकईस प्रकृतियोंका उपशम किया जाय उसको उपशम श्रेणी कहते है
और जिम म उन इकाईस प्रवृतियों का क्षय किया जाय उसको क्षपक श्रेणी कहते है । क्षायिक सम्यग्दृष्टी दोनों ही अंगी चढ़ सकता है । द्वितीयपशम सम्यग्दृष्टी जीव उपशम श्रेणी ही चढता है । क्षपक श्रेणी नहीं चढ़ता। उपशम श्रेणी के आठवां नौवां दशवा और ग्यारहवां गण स्थान है तथा क्षपक अंगो के आठवा नौवां दसवा और बारहवां गुण स्थान है।
चारित्र मोहनीय कर्म की इकईस प्रकृतियों को उपशम करने के लिये अथवा क्षय करने के लिये अधः करण अपूर्व करण और अनिवत्ति करण ये तीन प्रकार के परिणाम निमित्त कारण होते है।
इनमें से जिस करण में परिणामों के समूह ऊपर के समयवर्ती तथा नीचे के समयवर्ती जीवों के परिणाम सदश भी हो और विसदृश भी हो। उसको अधः करण कहते है । यह अधः करण सातवे गुण स्थान में ही होता है। इसका उदाहरण इस प्रकार है।
किसी राजा के यहां ३०७२ तीन हजार बहत्तर आदमी काम करते है वे सब सोलह महकमों में भी बट हए है। पहले महकमे मे एक सौ १६२ आदमी है दुसरे में एक सो छयासठ, तीसरे में एक सौ सत्तर, चौथे मे एक सौ चौहत्तर, पांचवे में एक सौ अठत्तर, छठे में एक सौ ब्यासी । सातवे मे एक सौ छियासी, आठवे मे एक सौ नब्बे, नवि में एक सी चौरानवे, दशवे में एक सौ अठानवे, ग्यारहवे में दो सौ दो बारहवें मे दो सौ छह, तेरहवे में दो सौ दस, चौदहवे में दो सौ चादह, पन्द्रहवें मे दो सा अठारह और सोलहवे मे दो सी बाईस आदमो काम करते है ।
पहले महकमेके एकसा बासठ आदमियों मे से पहले आदमी का वेतन एक रुपया दूसरे का दो रुपया तीसरे का तीन रुपया इस प्रकार एक एक बढते हुए एकसा बासठवे आदमी का वेतन एकसा बासठ रुपया है। दूसरे महक मेमें एक सा छयासठ आदमी काम करते है उनमे से पहले आदमी का वेतन चालीस रुपया है । दूसरे तीसरे आदि आदमियों का वेतन क्रमसे एक एक रुपया बढ़ता हुआ एकसो छयासठवे आदमी