Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

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Page 518
________________ भाव-संग्रह ३०३ सी वा प्रकृति रही । परन्तु नरक गत्यानुपूर्वी का उदय इस गुण स्थान में नहीं होता इसलिये इस गुणध्थान में एक सौ ग्यारह प्रकृतियों का उदय होता है तथा सत्व एक सौ ४५ प्रकृतियों का होता है। यहां पर तीर्थकर प्रकृति आहारक शरीर और आहारक अंगोपांग इन तीन प्रकृतियों की सत्ता नहीं रहती । मिश्र गुणस्थान- सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जीव के न तो केवल सम्बव परिणाम होते है और न केवल मिथ्यात्व रूप परिणाम होते हैं किन्तु मिले हुए दही गुड के स्वाद के समान एक भिन्न जाति के मिश्र परिणाम होते है इसको मिश्र गुण स्थान कहते है । दुसरे गुण स्थान में बन्ध प्रकृति एक सी एक थी। उनमे से अनंतानुबंधी कोष मान माया लोभ स्थानमृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, दुभंग दु:स्वर अनादेय, यग्रोध संस्थान, स्वातिसंस्थान, कुब्जक संस्थान वामन संस्थान, वज्रनाराच संहनन नाराच संहनन अर्द्धनाराच संहनन, कोलित संहनन, अप्रशस्त विहायो गति, स्त्रीवेद, नीच गोत्र, तिर्यग्गति तिर्यग्गत्यानुपूर्वी तिर्यगायु, उद्योत इन पच्चीस प्रकृतियों की व्युच्छत्ति होने से शेष छत्तरि प्रकृतियां रहती है । इस गुण स्थान में किसी भी आयु कर्म का बंध नहीं होता इसलिये इन छितरि में से मनुष्यायु और देवायु इन दो के घटाने पर चौहत्तर प्रकृतियों का बंध होता है । नरकायु की पहले गुण स्थान में और निर्यमायु की दूसरे गुणस्थान में व्युच्छित्ति हो चुकी है । r .... इस गुण स्थान में एक मौ प्रकृतियों का उदय होता है क्योंकि दूसरे गुण स्थान मे एक सौ ग्यारह प्रकृतियों का उदय था उनमें से अनंतानुबंधी चार, एकेंद्रियादिकि चार, स्थावर एक इस प्रकार नौ प्रकृतियों की व्युच्छित्ति होने पर एकसौ दो प्रकृतियां रह जाती है। इनमें से नरकगत्यानु पूर्वी दूसरे गुण स्थान में घट चुका है और देवगत्यानुपूर्वी मनुष्यगत्यनु पूर्वी तिर्यग्गत्यानुपूर्वी इन प्रकृतियों का उदय इस गुण स्थान में नहीं होता क्योंकि इस गुण स्थान में मरण नहीं होता । इस प्रकार शेष निन्यानवे प्रकृति रह जाती है। तथा सम्यग्मिध्यात्व प्रकृति का उदय इस गुण स्थान में रहता है। इस प्रकार इस गुण स्थान में सौ

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