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भात्र-संग्रह
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२४ काय क्लेशत्व गुण - ग्रीष्म ऋतु में पर्वत पर जाई के दिनों में वन में वा नदी के किनारे, वर्षा मे वृक्ष के नीचे ध्यान धारण कर सुख की मात्रा दूर करने के लिये शरीर को कष्ट पहुंचाना ।
२५ प्रायश्चित्ताचारत्त्व गुण - लगे हुए दोषों को शोधन करने के लिये प्रायश्चित्त लेना और व्रतों को शुद्ध रखना ।
२६ विनय निरतत्त्व गुण - सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र को धारण कर उनका विनय करना उपचार विनय करना रत्नत्रयको धारण करने वालों का विनय करना ।
२७ वैयावृत्तित्व गुण - आचार्य उपाध्याय साधु आदि दश प्रकार के मुनियों की शरीर जन्य पीडा को दूर करने के लिये उनकी सेवा सुश्रुषा करना |
२८ स्वाध्याय धारकत्वगुण-वाचना, पृच्छना अनुप्रेक्षा, आम्नाय और धर्मोपदेश के द्वारा जिनागमका स्वाध्याय करना ।
२९ व्युत्सत्व गुण - वाह्याभ्यंतर परिग्रहो का त्याग करना' गुप्तियों का पालन करना ।
३० ध्यान निष्ठत्व गुण- • आर्त रौद्र दोनों व्यानों का त्याग कर धर्म्यध्यान वा शुक्लध्यान को धारण करना ।
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३१ सामायिकत्व गुण - रागद्वेष को दूर करने के लिये छह प्रकार का सामायिक करना |
३२ स्तव निरतत्त्व गुण- प्रति दिन चौबीस तीर्थकरों की स्तुति
करना ।
३३ वंदना निरतत्त्व गुण- किसी एक तीर्थंकर की स्तुति करना ३४ प्रतिक्रमण निरतत्त्व गुण - ईयापथ शुद्धि के लिये प्रतिक्रमण करना | देवसिक प्रतिक्रमण करना पाक्षिक मासिक चातुर्मासिक वार्षिक प्रतिक्रमण करना |
३५ प्रत्याख्यान निरतत्त्वं गुण- पूर्वोपार्जित क मोंको नावश करने