________________
भाव-संग्रह
१४ व्रतारोपण योग्य गुण- उद्देशयुक्त आहार का त्याग करने वाले दिगम्बर अवस्था धारण करनेवाले और पज परमेष्ठी की भक्ति करने वाले आचार्य स्वयं व्रत पालन करने और अन्य मुनियों को दीक्षा देकर महावतों को धारण कराने की योग्यता रखना।।
१. सर्व ज्येष्ठत्व गुण- जो आर्यिका क्षुल्लक साधु उपाध्याय आदि सब से अधिक श्रेष्ठता धारण करते हों ।
१६ प्रतिक्रमण पंडीतत्व गण- जो आचार्य मन वचन काय से किसी भी प्रकार का अपराध हो जाने पर उसकी शुद्धि के लिये प्रति क्रमण करने की दक्षता घारण करने वाले हों।
१७ मासकवासित्व गुण -- जो मोह और सुख का त्याग करने के लिये किमी भी स्थान पर एक महीने से अधिक न रहते हो।
१८ वार्षिक योग युक्तत्व गुण- जीवों की रक्षा के लिय वर्षा ऋतु में चार महीने तक एक ही स्थान पर रहना।
१९ अनगन तपोयुक्तता मुण - इन्द्रियों को जीतने के लिये चारों प्रकार के आधार का त्याग कर उपवास धारण करना ।
२० अवमोदर्य तपोयुक्तता गुण- प्रमाद दूर करने के लिये वत्तीस ग्रास न लेकर दो चार दश आदि ग्रास हो लेकर अल्प आहार लेना ।
२१ वृत्ति परिसंस्यान गुण- आशा का त्याग करने के लिये किसी धर का अन्न आदि का संकल्प कर ( यदि ऐसा घर होगा वा ऐसा दाता होगा या एसा अन्न होगा तो आहार लूंगा नहीं तो ऐसा मंका कर आहार के लिये निकलना ।
२२ रसपरि त्याग- दूध दही घी मीठा आदी रसों का त्याग करना ।
२३ विविक्तशय्यासन तप- जन्तुओं से रहित, स्त्रियों से रहित' मनमें विकार उत्पन्न करने वाले कारणों से रहित गुफा सूना घर आदि एकान स्थान मे शय्या आसन आदि धारण करना ।