Book Title: Bhav Sangrah
Author(s): Devsen Acharya, Lalaram Shastri
Publisher: Hiralal Maneklal Gandhi Solapur

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Page 502
________________ भाव-संग्रह २८७ अर्थ- ब के बली भगवान सदा काल मत भविष्यत् और वर्तमान तीनों कालों में हार का होने वाले समस्त पदार्थों को वा पदार्थों की पर्यायों को एक साथ देखते है और एक साथ जानते हैं। इसलिये परम पाणी गणधर देव उनको सर्वज्ञ और परमात्मा कहते है । तित्थयरत्तं पत्ता जे ते पायति समव सरणाई । सक्योषा कविहई पंचकल्लाण पुज्जाय ।। तीर्थफरत्वं प्राप्ता ये ते प्राप्नुवन्ति समवसरणादिकम् । शक्रेण कृतविभूति पंच कल्याण पूजां च ।। ६७५ ।। अर्थ- उन केवलियों में से जिनके तीर्थकर प्रकृति का उदय होत है ने इन्द्रों के द्वारा की हुई समवसरण आदि की महा विभूति को प्राप्त होते है तथा गर्भ कल्याणक जन आल्या. दीक्षा का ज्ञान कल्याणक और मोक्ष कल्याणक इन पांचों कल्याणकों में होने वाली परमोत्कृष्ट पूजा को प्राप्त होते है । सम्मुग्धाई किरिया गाणं तह दंसणं च सुक्खं च | सम्वेसि सामण्णं अरहताणं च इयराणं ।। समुद्धातक्रिया ज्ञान तथा वर्शनं च सुखं । सर्वेषां सम्मान अहंता चेतराणां च ।। ६७६ ।। अर्थ- जिनके तीर्थकर प्रकृति का उदय है ऐसे अरहंत केवली तथा जिनके तीर्थकर प्रकृति उदय नहीं है एमे सामान्य केवली इन दोनों प्रकार के केवली भगवान के समुद्धात क्रिया, अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत वीर्य ये सब समान होते है इसमे किसी प्रकार का अन्तर नहीं होता। जेंसि आयु समाणं णाम गोदं च बेयणीयं च । से अकय समुग्धाया सेसा य कर्यति समुग्धायं । येषां आयुः समान नाम गोत्रं च वेदनीयं च । ते अकृत समुद्धाताः शेषाश्च कुर्वन्ति समुद्धातम् ।। ६७७ ॥ अर्थ- जिन केवली भगवान के नाम कर्म गोत्र कर्म और वेदनीय

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