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भाव-संग्रह
ध्याता पुननि ध्येयं तथा बा फल च तस्सैव । एते चतुरधिकारा ज्ञातव्या भवन्ति नियमेन ।। ६१६ ।।
अर्थ- इस गुण स्थान में बार अधिकार वतलाये है ध्यान करने वाला ध्यास, चितवन करते रूप त्र्यान, जिसका चितवन किया जाय एसा आत्म। ध्येय और उस ध्यान का फल । यं चार अधिकार नियम पूर्वक इस गुण स्थान में होते है ।।
आने ध्यान का लक्षण कहते है। आहारासणणिहा विजओ तह इंदियाण पंचण्हं । बावीस परि सहाणं कोहाईणं कसायाणं ॥ णिस्संगी हिम्मोहो णिग्गय बावार करण सुत्तड्ढो । विढकाओ थिरचित्सो एरिसओ होइ मायारो ॥ ६१७ ।। आहारासननिद्राणां विजयस्तथा इन्द्रियाणां पंचानाम् । द्वाविंशति परिषहाना कोषाविना कषायाणाम् ।। निःसंगो निर्मोही निर्गतव्यापार करण सूत्राव्यः । दृढकायः स्थिरचित्तः एतादृशो भवति ध्याता ।। ६१८ ।।
अर्थ- जिने आहार का विजय कर लिया है निद्रा का विजय कर लिया है, पांचों इन्द्रि में का विजय कर लिया है, जो बाईस परिषहों के विजय करने में समर्थ है, जिसने क्रोधादिक समस्त कषायों का विजय कर लिया है दश प्रकार के बाह्य परिग्रह और चौदह प्रकार अन्तरंग परिग्रहों का सर्वथा त्याग कर दिया है, मोह का सर्वथा त्याग कर दिया है, जिसने अपने समस्त इन्द्रियों के व्यापार का त्याग कर दिया है, जो सिद्धांत सूत्रों का जानकार है, जिसका शरीर अत्यंत दुर
* खेत धन घर धान्य सोना चांदी दासी दास वर्तन कुप्य (वस्त्रादिक) देश वाह्य परिग्रह है। हास्य रति अरति शोक भय जुगुप्सा मिथ्यात्व स्त्रीवेद पुवेद नपुंसक वेद कोध मान माया लोभ ये चौदह अन्तरंग परिग्रह है।