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भाव - संग्रह
फल तोन प्रकार बतलाया है । पहला इसो भव मे होनेवाला फल दूसरा परलोक में होने वाला फल और तीसरा समस्त कर्मों का नाश होना । इस प्रकार ध्यान के फल तोन प्रकार के होते है ।
झाणस्स य सत्तीए जायंति अइसयाणि विविहाणी । दूरालोयण पहुई झाणे आएस करणं च ॥
ध्यानस्य च शक्त्या जायन्ते अतिशयानि विविधानि । दूरालोकन प्रभूतीनि ध्याने आवेश करणं च ।। ६३४ ।।
अर्थ - ध्यान की शक्ति से अनेक प्रकार के अतिशय प्राप्त हो जाते
है, हजारों कोस दूरके पदार्थ देख लेना, दूरके शब्द सुन लेना आदि रूप से इन्द्रिय ज्ञान की वृद्धी हो जाती है तथा आदेश करने की शक्ती प्रगट हो जाती है 1
महसुइ ओहीना मगरज्जय केवलं तहां पानं । रिद्धीओ सजाओ जइपूजा इह फलं झाणे ||
afar तावधि ज्ञानं मनः पर्ययः केवलं तथा ज्ञानम् । ऋद्धयः सर्वाः पतिपूजां वह फलं ध्याते ।। ६३५ ।।
अर्थ- मति ज्ञान श्रुत ज्ञान की वृद्धि वा पूर्णता हो जाती है अवधि ज्ञान मनः पर्यय ज्ञान प्रगट हो जाता है तथा केवल ज्ञान प्रगट हो जाता है, समस्त ऋद्धियां प्राप्त हो जाती है और यति पूजा भी होने लगती है अथवा केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर जिन पूजा भी होने लगती है । यह इतना फल तो इस लोक में मिल जाता है ।
आगे परलोक सम्बन्धी फल बतलाते है सक्काई इंदत्तं अहमिदत्तं च सग्गलोयाम्मि । लोयंति य देवत्तं तं परभवगयफलं झाणे || शादन्द्रत्वं अहनिन्द्रत्वं च स्वर्ग लोके । stefos daci तत्परभवगत फलं ध्याने ।। ६३६ ।।
अर्थ- स्वर्गी मे जाकर इन्द्र पद की प्राप्ति, अहमिन्द्र पद की प्राप्ति होना और लीकान्तिक पद की प्राप्ति होना आदि ध्यान क परलोक सम्यन्त्री फल समझना चाहिये ।