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भाव-संग्रह
अर्थ- जो छत्तीस गुणों से सुशोभित हो जो जाना वार, दर्शना-- चार, चारित्राचार, वीर्याचार, लष आचार इन पांचों आचारों का प्रति दिन पालन करते है तथा जो शिष्यों के अनुग्रह करने में अत्यंत कुशल होते है उनको आचार्य परमेष्ठी कहते है।
१.- बारह तप, दश धर्म, पान आचार, छह आवश्यक तीन गुप्ति यं छत्तीस गुण आचार्य परमेष्ठी के है ।
अथवा आचार्य परमेष्टी के ये भी उनीस गुण है।
पंचाचार * पालन करमा २ आघारबत्त्व ३ व्यवहारिव '४ प्रकारकत्व ५ अपायोपायोपदेशकत्व ६ उत्पीलक ७ अपरिश्राविता ८. निर्वापक ९ नग्नत्व १० उद्देशिकाहारत्यागत्व ११ शय्याध राशनविबजितवृत्तिता १२ राजपिडग्रह्णविजितवृत्तिता १३ कृतिकर्मनिरतन्त्र १४ व्रतारोपणयोग्यत्र १५ सर्वज्येष्ठता १६ प्रतिक्रमणपद्विताचार्यता १७ मासकवासिता १८ वार्षिकयोगयुक्तत्व १९ अनशनतपोः युक्तत्व २० अवमौदर्यतपोपुक्तता २१ वृत्तिपरिसंख्यानसहितन्व २२ रसपरित्यागपरिपुष्टता २३ विविक्तशय्यामनतपोयुक्तता २४ कायका तपोयुक्तता २५ प्रायश्चित्ताचार्यता २६ विनयनिरतत्त्व २७ बयावृत्तिसंयुक्ता २४. रवाध्यायधारकता २९ व्युत्सर्गसहितता ३० ध्याननिष्ठता ३१ सा. मायिकमाहितत्व ३२ स्तवननिरतता ३३ बंदनानिरतता ३४ प्रतिक्रमणनिग्नता ३५ प्रत्याख्याननिरतता ३६ कायोत्सर्गसंगन्छ ।
आचार्य परमेष्ठी के छत्तीस गुण
१ पंचाचार गुण- जो दर्शना चार, ज्ञाना चार, चरित्रा चार, तप अचार, और बीर्याचार इन पांचों आचारों को स्वयं पालन करें और अन्य मुनियों से पालन करावें ।
२ आधारवत्व गुण- जो ग्यारह अंग नौ पूर्व अथवा दश पूर्व अथवा चौदह पूर्व श्रुतज्ञान को जानने वाले वा धारण करने वाले हो ।