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भाव-सह
मोक्ष के कारण भूत ऐसे विशष पुण्य का उपार्जन करते रहना चाहिय ।
आग विशेष पुण्य के लिये और क्या क्या करना चाहिये मो कहते
है
भावह अणुन्वयाई पालह सोलं च कुणह उववासं । पम्वे पन्चे णियमं विज्जह अणवरय दाणाई ॥ भावयेत् अणुव्रतानि पालयेत् शोलं च कुर्यादुपवासम् । पर्वणि पर्वणि नियमं दद्यात् अनवरतं दानानि ।। ४८८ ॥
अर्थ- ऐसे विशेष पुण्य को उजन करने के लिये अगुव्रतों को पालन करना चाहिये, गुणव्रत शिक्षात्रत रूप शीलों का पालन करना चाहिये । प्रत्येक पर्व के दिन उपवास करना चाहिए और नियम पुवक निरन्तर दान देना चाहिये ।
अभय पयाणं पढम विवियं तह होइ सत्थ दाणं च । तइयं ओसह दाणं आहारदाणं चउत्थं च ।। अभयप्रदानं प्रथम द्वितीयं भवति शास्त्रदानं च । तृतीयं त्वौषदानं आहारदानंचतुर्थ च ॥ ४८९ ॥
अर्थ- दान के चार भेद है पहला अभयदान, दुखरा शास्त्रदान, तीसर। औषधदान और चौथा आहार दान ।
आग इन दानों का फल बतलाते है । सम्वेसि जोवाणं अभयं जो वेव मरणभोकाएं। मो णिभओ तिलोए उत्तस्सो होइ ससि ।। सर्वेषां जीवानां अभयं यो ववाति मरण भीक्षणाम् । स निर्भयः त्रिलोके उत्कृष्टो भवति सर्वेषाम् ।। ४९० ।।
अर्थ- जो जीव अपने मरने से भयभीत हो रहे है ऐसे समस्त जीवों को जो अभयदान देता है वह पुरुष तीनो लोकों में निर्भय होता है और सब मनुष्यों में उत्कृष्ट होता है।