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भाव-सग्रह
मुलगणों को धारण करता है और बारह बतों से विभूषित रहता है । मद्य का त्याग, मास का त्याग, शहद का त्या त्रिभोजन का त्याग, वडफल, पीपलफल, गूलर, पाकर फल, अंजीर फल इन पांचों उदंबरो का त्याग, प्रतिदिन प्रातः काल पंच परमेष्ठी को नमस्कार करना, जीवों की दया पालन करना और पानी छान कर पीना ये आठ मूल गुण कहलाते है । श्रावकों के लिय इनका पालन करना अत्यावश्यक है।
आग अनुक्रम में बारह वतों का स्वरूप कहते है । हिसाविरई सच्चं अद्दत्तपरिवजणं व यलबयं । परमहिलापरिहारो परिदमाणं परिग्गहस्सेव ।। हिंसाविरतिः सत्यं अदलपरिवर्जनं च स्थूलनतम् ।
पर महिलापरिहारः परिमाणं परिग्रहस्येव ॥ ३५३ ।।
अर्थ- स जीवों की हिंसा का त्याग करना, सत्य बोलना, बिना दिये हुए पदार्थ को कभी ग्रहण न करना, परस्त्री सेवन त्याग और परिग्रह का परिमाण करना ये पांच अगुवत कहलाते है।
विसिविदिसि पच्चखाणं अणत्यदंडाण होइ परिहारो। भोओपभोयतंखा ए एह गुणश्वया तिण्णि ।। दिग्विदिक प्रत्याख्यानं अनर्थदण्डानां भवति परिहारः ।
भोगोपभोगे संख्या एतानि हि मुणवतानि त्रीणि ।। ३५४ ।। अर्थ-- दिशा विदिशाओं में आने जाने का नियम धारण कर उनकी सीमा नियत कर शेष हिशा विदिशा में आने जाने त्याग करना, पांचो प्रकार के अनर्थ दंडों का त्याग करना, भोगोपभोग पदार्थों की संख्या नियत कर शेष भोगोप भोग पदार्थो का त्याग कर देना ये तीन गुण प्रत कहलाते है । भावार्थ-चार दिशाएं, चार विदिशाएं, ऊपर नीचे ये दश दिशाए कहलाती है इनकी सीमा की मर्यादा नियतकर उसके बाहर नहीं जाना चाहिये 1 पाप रूप कार्यों का उपदेश देना, हिंसा करने के उपकरणों या दान देना, दूसरे का बुरा चितन करना, मिथ्याशास्त्रों का पढना सुनना और पंच स्थावरों को व्यर्थ हिंसा करना ये