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भाव-संग्रह
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प्रकार अन्तर्मुहुर्त के अनंतर ही उन सातों प्रकृतियों का उदय हो जात हैं और वह शमिक सम्यग्दर्शन नष्ट हो जाता है। इसी प्रकार जिस वर्तन का पानी निर्मल होगया है मिट्टी पूर्ण रूप से नीचे बैठ गई है उसका पानी यदि किसी दूसरे बर्तन मे ले लिया जाय तो उस निर्मल पानी में थोड़ा सा भी गदलापन नहीं रहता वह पानी पूर्ण रूप से निर्मल हो जाता है इसी प्रकार क्षायिक सम्यग्दर्शन पूर्ण रूप से निर्मल होता है ! उसमें फिर कभी भी गदलापन वा अशुद्धता नहीं आती। जिस गंदले पानी की अधिकतर मिट्टी नीचे बैठ गई है और थोडासा गदलापन उस पानी में रहगया है उसी पानी को दूसरे वर्तन में लेलिया जाय तो उसमें थोडा गदलापन रहताही है इसी प्रकार क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन अत्यंत निर्मल और शुद्ध नहीं होता किंतु उसमें चल पलिन अगाढ दोष रहते है । सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व प्रकृति का उदय होने से ये दोष हो जाने है । तथापि इस क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन के प्रगट हो जानेपर सदाकाल कर्मों का क्षय होता ही रहता है । अन्य सम्यग्दर्शनों के समान यह सम्यग्दर्शन भी कर्मों के क्षय होने का कारण है ।
आगे जो इस क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन को नहीं मानता वह अज्ञानी है ऐसा दिखलाते है ।
जो ण हि मण्णइ एयं वय उवसम भावजो य सम्मत्तं । सो अण्णानी मूढो तेण ण णायं समयसारं ॥ २७० ॥
यो नहि मन्यते एतत् क्षयोपशम भावजं च सम्यक्त्वम् । स अज्ञानी मढस्तेन न ज्ञातं समयसारम् ॥ २७० ॥ जम्हा पंच पहाणा भावा अस्थिति सुत्त णिहिठ्ठा । तम्हा खथ उचसमिए भावे जायं तु तं जाणे ॥। २७१ ।।
यस्मात्पंच प्रधाना भावाः सन्तीति सूत्र निविष्टाः तस्मात्क्षयोपशमेन भावेन जातं तु तत् ज्ञातव्यम् ।। २७१ ।।
अर्थ- जो पुरुष इस क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन से उत्पन्न होने वाले परिणामों को नहीं मानता, समझना चाहिये कि वह अज्ञानी और मूर्ख है, तथा वह पुरुष आत्मा के स्वरूप को भी नहीं जानता । इस का