________________
भाव-संग्रह
मे भ्रष्ट न होने देना स्थिति करण गण वा अंग है । धर्मात्मा पुस्थों में रत्नत्रय धारण करनेवाले पुरुषों में अनुराग न रखना दोष है और अनुराग रखना वात्सल्य नाम का गण वा अंग है। धर्म की प्रभावना नहीं करना दोष है और धर्म को प्रभावना करना प्रभावना गण है। इस प्रकार संक्षेप से आठ दोष और आठ गुण बतलाये । यही आठ गण सम्यग्दर्शन के आठ अग कहलाते है।
इसके सिवाय सम्यग्दर्शन में आठ मद तीन मूढता और छह अनायतन य सत्रह दोष और तथा इनका त्याग सत्रह जण हो जाते है इस प्रकार सम्यग्दान पन्नीस दोष और पच्चीस गण कहलाते है। संक्षेप से इनका स्वरूप इस प्रकार । ज्ञान का अभिमान करना, अपने वड़प्पन का मद करना, कुल का मद, जाति का मद, बल का मद, ऋद्धि वा विभूतियों को मद करना, तपश्चरण का मद करना, और अपने गरीर का मद करना ये मद दोष है तथा इन आठों का मद न करना आठ गण हो जाते है । देव महता गुरु मढ़ता और लोक महता य तीन मूढता है । कुदेवों की मेवा करना बालू पत्थर के ढेर लगाकर पूजना देव मुढता है, निग्रंथ मुनियों को छोडकर अन्य रागी द्वेषी गुरुओं को मानना गुरु मूढ़ता है और नदी समुद्र में नहाना, पर्बत में गिरकर नदी में डूबकर मर जाना मनी होना आदि सब लोक मुढता है ।
इन तीनों महताओं का त्याग कर देना तीन गुण हो जाते है । कुदेव कुशास्त्र और गहओं को मानना नथा उनकी सेवा करने वालों का मानना छह अनायतन है और इन छहों का त्याग कर देना छह आयतन सम्यग्दर्शन के गुण हो जाते है। इस प्रकार सम्यग्दर्शन के पच्चीस दोष और पच्चीस गुण बतलाये ।
आगं सम्यग्दर्शन के आठ अंगो मे प्रसिद्ध होनेवाले पुरुषों के नाम कहते है।
रामगिहे णिस्सको चोरो गामेण अंजणो भणिओ । चंपाए णिक्कखा वणिधूबाणंतमहणामा || राजगृहे निःशंकश्वोरो नाम्ना अंजनो भणित: ।। सम्पायां निष्कांक्षा वणिक्सुताऽनन्तमती नाम्नी ।। २८० ॥